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तेरसमं अज्झयणं : तेरहवां अध्ययन
मंडुक्के : मण्डूक
उक्खे व-पदं १. जइ णं भते! समणेणं भगवया महावीरेणं बारसमस्स नायज्झयणस्स
अयमढे पण्णत्ते, तेरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अढे पण्णत्ते?
उत्क्षेप-पद १. भन्ते! यदि श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञाता के बारहवें अध्ययन का यह
अर्थ प्रज्ञप्त किया है, तो भन्ते! उन्होंने ज्ञाता के तेरहवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है?
२. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे।
गुणसिलए चेइए। समोसरणं। परिसा निग्गया।
२. जम्बू! उस काल और उस समय राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य
था। समवसरण जुड़ा। जन-समूह ने निर्गमन किया।
३. तेणं कालेणं तेणं समऐणं सोहम्मे कप्पे ददुरवडिंसए विमाणे ३. उस काल और उस समय सौधर्म-कल्प, दर्दुरावतंसक विमान और
सभाए सुहम्माए ददुरंसि सीहासणंसि दवरे देवे चउहिं सुधर्मा-सभा में दर्दुर-सिंहासन पर दर्दुर नाम का देव चार-हजार सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिसाहिं एवं जहा सामानिक देवों तथा सपरिषद् चार अग्र-महीषियों के साथ सूर्याभदेव सूरियाभे जाव दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ । इमं च णं की भांति यावत् दिव्य भोगार्ह भोगों को भोगता हुआ विहार कर रहा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे जाव
था। वह इस परिपूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप को विपुल अवधि-ज्ञान से देखता नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगए, जहा--सूरियाभे॥
हुआ यावत् नाट्य विधि का प्रदर्शन कर चला गया, जैसे--सूर्याभ ।
गोयमस्स गुच्छा-पदं ४. भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता
नमंसित्ता एवं क्यासी--अहोणं भते! ददरे देवे महिड्डिए महज्जुईए महब्बले महायसे महासोक्खे महाणुभागे।।
गौतम का पृच्छा-पद ४ भन्ते! इस प्रकार भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना
की। नमस्कार किया। वन्दना-नमस्कार कर इस प्रकार कहा--अहो भन्ते! दर्दुरदेव महान ऋद्धि, महान द्युति, महान बल, महान यश, महान सुख और महान अनुभाग वाला है।
५. दद्द्वरस्स णं भंते! देवस्स सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभावे कहिं गए? कहिं अणुपविढे?
गोयमा! सरीरं गए सरीरं अणुपविढे कूडागारदिटुंतो।।
५. भन्ते! दर्दुरदेव की वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति और दिव्य देवानुभाव कहां गया? कहां अनुप्रविष्ट हो गया?
गौतम! वह शरीरगत हो गया। शरीर में अनुप्रविष्ट हो गया। यहां कूटागार' दृष्टान्त ज्ञातव्य है।
६. दद्दुरेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे
देवाणुभावे किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमण्णागए?
६. भन्ते! दुर्दुरदेव को वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देव-द्युति और दिव्य देवानुभाव
कैसे उपलब्ध हुआ? कैसे प्राप्त हुआ? कैसे अभिसमन्वागत हुआ?
भगवओ उत्तरे दगुरदेवस्स नंदभव-पदं ७. एवं खलु गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे।
गुणसिलए चेइए । सेणिए राया।
भगवान का उत्तर, दर्दुर देव का नन्दभव-पद ७. गौतम ! इसी जम्बूद्वीप द्वीप और भारतवर्ष में राजगृह नगर,
गुणशिलक चैत्य और श्रेणिक राजा।
८. तत्थ णं रायगिहे नदे नामं मणियारसेट्ठी--अड्ढे दित्ते।।
८. उस राजगृह नगर में 'नन्द' नाम का मणिकार श्रेष्ठी रहता था। वह
आढय और दीप्त था।
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