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प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'मंडुक्के' है। सूत्र ३२ से अग्रिम अनेक सूत्रों में दर्दुर शब्द का प्रयोग मिलता है । मण्डूक और दर्दुर एकार्थक हैं पर मूल अध्ययन का नाम दर्दुर नहीं है। समवायांग सूत्र में जहां ज्ञातधर्मकथा के १९ अध्ययनों के नाम बतलाए गए हैं वहां तेरहवें अध्ययन का नाम 'मण्डुक्क' है।
आमुख
प्रस्तुत अध्ययन में नन्द मणिकार के जीवन के दो पक्षों का निरूपण है
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१. वापी का निर्माण और उसके प्रति ममत्व ।
२. दर्दुर के भव में व्रत स्वीकार ।
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नन्द मणिकार ने भगवान महावीर से श्रावक व्रत ग्रहण किया। पर कालान्तर में वह सम्यक्त्व से च्युत हो गया। मिथ्यात्व
की प्रतिपत्ति हो गई। सूत्रकार ने उसके चार कारण बतलाए हैं
१. साधुओं के दर्शन का अभाव
२. साधुओं की पर्युपासना का अभाव
३. शुश्रूषा का अभाव
४. अनुशासन का अभाव।
तेले की तपस्या में पौषध अवस्था में क्षुधा और पिपासा परीषह से अभिभूत होकर उसने पुष्करिणी के निर्माण का संकल्प कर लिया। पुष्करिणी, उसके चारों ओर वनखण्ड तथा उनमें क्रमशः चित्रसभा, महानसशाला, चिकित्सा शाला और अलंकार सभा का निर्माण करवाया। जन-जन के मुख से प्रशंसा सुन वह उस वापी में अत्यन्त आसक्त हो गया ।
नन्द मणिकार ने मनुष्य जन्म में व्रतों की सम्यक् आराधना नहीं की फलतः उसे तिर्यक् योनि में जाना पड़ा। मेंढ़क के भव में जातिस्मृति प्राप्त की। शुभ परिणामधारा के क्षण में उसकी मृत्यु हुई। उसने देवयोनि प्राप्त की।
प्रस्तुत अध्ययन में नन्द मणिकार के दो जन्मों की आसक्ति और अनासक्ति का सुन्दर चित्रण है। इसमें हमारे चिन्तन मनन की पर्याप्त सामग्री है।
१. समवाओ १९ / १ २. नायाधम्मकहाओ १/१३/१३.
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