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________________ नायाधम्मकहाओ २११ अष्टम अध्ययन : सूत्र १८१-१८८ जियसत्तुपामोक्खाणं जाइसरण-पदं जितशत्रु प्रमुखों का जाति-स्मरण-पद १८१. तए णं तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं मल्लीए १८१. विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली से यह अर्थ सुनकर, अवधारण विदेहरायवरकन्नाए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म सभेणं कर, शुभ परिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय और विशुद्यमान लेश्याओं के परिणामेणं पसत्थेणं अज्झवसाणेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं कारण तदावरणीय (जाति-स्मृति के आवारक) कर्मों का क्षयोपशम तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं होने से ईहा, अपोह, मार्गणा और गवेषणा करते-करते जितशत्रु प्रमुख करेमाणाणं सण्णिपुव्वे जाइसरणे समुप्पण्णे, एयमटुं सम्म उन छहों राजाओं को समनस्क जन्मों को जानने वाला जाति स्मरण अभिसमागच्छति॥ ज्ञान उत्पन्न हो गया। उन्होंने यह अर्थ भली-भांति जान लिया। मल्लीए पव्वज्जा-पदं मल्ली की प्रव्रज्या-पद १८२. तए णं मल्ली अरहा जियसत्तुपामोक्खे छप्पि रायाणो १८२. जितशत्रु प्रमुख छहों राजाओं को जाति-स्मरण-ज्ञान समुत्पन्न हुआ समुप्पण्णजाईसरणे जाणित्ता गम्भघराणं दाराइं विहाडेइ।। जानकर अर्हत मल्ली ने तलघरों के द्वार खोल दिए। १८३. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मल्ली १८३. जितशत्रु प्रमुख वे छहों राजा जहां अर्हत मल्ली थी, वहां आए। अरहा तेणेव उवागच्छति ।। १८४. तए णं महब्बलपामोक्खा सत्तवि य बालवयंसा एगयओ १८४. महाबल प्रमुख सातों ही बालवयस्य एकत्र अभिसमन्वागत हो गए। अभिसमण्णागया वि होत्था। १८५. तए णं मल्ली अरहा ते जियसत्तुपामोक्खे छप्पि रायाणो एवं वयासी--एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! संसारभउब्विग्गा जाव पव्वयामि । तं तुम्भे णं किं करेह? किं ववसह? किं वा भे हियइच्छिए सामत्थे? १८५. अर्हत मल्ली ने जितशत्रु प्रमुख उन छहों राजाओं से इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! मैं इस संसार के भय से उद्विग्न हूं यावत् प्रव्रजित होती हूं। तुम क्या करते हो? क्या निश्चय करते हो अथवा तुम्हारे अन्तर्मन की अभ्यर्थना क्या है? १८६. तए णं जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो मल्लि अरहं एवं वयासी--जइ णं तुन्भे देवाणुप्पिया! संसारभउब्विग्गा जाव पव्वयह, अम्हंणं देवाणुप्पिया! के अण्णे आलंबणे वा आहारे वा पडिबंधे वा? जह चेव णं देवाणुप्पिया! तुन्भे अम्हं इओ तच्चे भवग्गहणे बहूसु कज्जेसु य मेढी पमाणं जाव धम्मधुरा होत्था, तह चेव णं देवाणुप्पिया! इण्हिं पि जाव धम्मधुरा भविस्सह। अम्हे वि णं देवाणुप्पिया! संसारभउव्विग्गा भीया जम्मणमरणाणं देवाणुप्पिया-सद्धिं मुंडा भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वयामो॥ १८६. जितशत्रु प्रमुख उन छहों राजाओं ने अर्हत मल्ली से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिये! यदि तुम संसार के भय से उद्विग्न हो यावत् प्रव्रजित होती हो तो देवानुप्रिये! हमारा अन्य कौन आलम्बन, आधार अथवा प्रतिबन्ध है? देवानुप्रिये! जैसे इससे पूर्व तीसरे भव में तुम ही हमारे बहुत से कार्यों में मेढ़ी, प्रमाण यावत् धर्म की धुरा थी। वैसे ही देवानुप्रिये! इस जन्म में भी यावत् धर्म की धुरा बनोगी। देवानुप्रिये! हम भी संसार के भय से उद्विग्न और जन्म-मरण से भीत हैं। अत: देवानुप्रिया के साथ मुण्ड हो अगार से अनगारता में प्रवजित होते हैं। १८७. तए णं मल्ली अरहा ते जियसत्तुपामोक्खे छप्पि रायाणो एवं वयासी--जइणं तुब्भे संसारभउव्विगा जाव मए सद्धिं पव्वयह, तं गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! सएहि-सएहिं रज्जेहिं जेट्ठपुत्ते ठावेह, ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ दुरुहह, मम अंतियं पाउब्भवह॥ १८७. अर्हत मल्ली ने जितशत्रु प्रमुख उन छहों राजाओं से इस प्रकार कहा--यदि तुम संसार के भय से उद्विग्न हो यावत् मेरे साथ प्रव्रजित होते हो तो देवानुप्रियो! तुम जाओ, अपने-अपने राज्यों में ज्येष्ठ पुत्रों को स्थापित करो। उन्हें स्थापित कर हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविकाओं पर आरोहण करो और मेरे समीप उपस्थित हो जाओ। १८८. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो मल्लिस्स अरहओ १८८. जितशत्रु प्रमुख उन छहों राजाओं ने अर्हत मल्ली के इस अर्थ को एयमद्वं पडिसुणेति ।। स्वीकार किया। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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