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________________ नायाधम्मकहाओ १८७ अष्टम अध्ययन : सूत्र ५३-५९ ५३. तए णं सा पउमावई देवी अंतो अंतेउरंसि बहाया जाव धम्मियं ५३. पद्मावती देवी ने अपने अन्त:पुर के भीतर स्नान किया यावत् जाणं दुरूढा॥ धार्मिक यान पर आरूढ़ हुई। ५४. तए णं सा पउमावई देवी नियग-परियाल-संपरिवुडा सागेयं नयरं मझमज्झेणं निज्जाइ, जेणेव पोक्खरणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोक्खरणिं ओगाहति, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ जाव परमसुइभूया उल्लपडसाडया जाइं तत्थ उप्पलाई जाव ताई गेण्हइ, जेणेव नागघरए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। ५४. पद्मावती देवी अपने परिकर से संपरिवृत हो साकेत नगर के बीचोंबीच से गुजरती हुई निकली। जहां पुष्करिणी थी, वहां आयी। आकर पुष्करिणी में अवगाहन किया। अवगाहन कर जल में मज्जन किया यावत् परम शुचिभूत होकर गीले कपड़े पहने ही वहां जो उत्पल यावत् सहस्रपत्र थे, उन्हें ग्रहण किया और जहां नागघर था उधर जाने का संकल्प किया। ५५. तए णं पउमावईए देवीए दासचेडीओ बहूओ पुप्फपडलग- हत्थगयाओ धूवकडच्छुय-हत्थगयाओ पिट्ठओ समणुगच्छंति॥ ५५. पद्मावती देवी की बहुत सी दासियां हाथों में पुष्प-पटल और धूपदानियां लिए हुए उसके पीछे-पीछे चल रही थी। ५६. तए णंपउमावई देवी सव्विड्डीए जेणेवनागघरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नागघरं अणुप्पविसइ, लोमहत्थगं परामुसइ जाव धूवं डहइ, पडिबुद्धिं पडिवालेमाणी-पडिवालेमाणी चिट्ठइ। ५६. पद्मावती देवी अपनी सम्पूर्ण ऋद्धि के साथ जहां नागघर था, वहां आयी। वहां आकर नागघर में प्रवेश किया। प्रमार्जनी को हाथों में लिया यावत् धूप खेया और प्रतिबुद्धि की प्रतीक्षा करने लगी। ५७. तए णं से पडिबुद्धी हाए हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे हय-गयरह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिडे महया भड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते सागेयं नगरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव नागघरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता आलोए पणामं करेइ, करेत्ता पुप्फमंडवं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता पासइ तं एगं महं सिरिदामगंडं। ५७. प्रतिबुद्धि राजा ने स्नान कर प्रवर हस्तिस्कन्ध पर आरूढ़ हो कटसरैया के फूलों से बनी मालाओं से युक्त छत्र धारण किया और प्रवर श्वेत चामरों से वीजित होता हुआ वह अश्व, गज, रथ और प्रवर पदाति योद्धाओं से कलित चतुरंगिणी सेना से संपरिवृत हो, महान सुभटों की विभिन्न टुकड़ियों और पथदर्शक वृन्द से घिरा हुआ साकेत नगर के बीचोंबीच से गुजरता हुआ निकला। जहां नागघर था, वहां आया। वहां आकर हस्ति-स्कन्ध से उतरा। उतर कर नाग प्रतिमा को देखते ही प्रणाम किया। प्रणाम कर पुष्प-मंडप में प्रवेश किया। प्रवेश कर उसने एक महान श्रीदामकाण्ड नाम की माला को देखा। ५८. तए णं पडिबुद्धी तं सिरिदामगंडं सुचिरं कालं निरिक्खइ। तसि सिरिदामगंडसि जायविम्हए सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी--तुम देवाणुप्पिया! मम दोच्चेणं बहूणि गामागर जाव सण्णिवेसाई आहिंडसि, बहूण य राईसर जाव सत्थवाहपभिईणं गिहाई अणुप्पविससि, तं अत्थि णं तुमे कहिंचि एरिसए सिरिदामगडे दिट्ठपुव्वे, जारिसए णं इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगडे? ५८. प्रतिबुद्धि ने उस श्रीदामकाण्ड माला को सुचिर काल तक निहारा। उस श्रीदामकाण्ड माला पर अनुरक्त होकर उसने अमात्य सुबुद्धि को इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम हमारे दौत्य कर्म के लिए ग्राम, आकर यावत् सन्निवेशों में घूमते हो और बहुत से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि के घरों में प्रवेश करते हो, तो क्या तुमने ऐसी श्रीदामकाण्ड नाम की माला कहीं पहले देखी है, जैसी कि इस पद्मावती देवी की यह श्रीदामकाण्ड नाम की माला है। ५९. तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धिं रायं एवं वयासी--एवं खलु सामी! अहं अण्णया कयाइ तुब्भं दोच्चेणं मिहिलं रायहाणिं गए। तत्थ णं मए कुंभयस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए संवच्छर-पडिलेहणगंसि दिव्वे सिरिदामगडे दिट्ठपव्वे । तस्स णं सिरिदामगंडस्स इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगडे सयसहस्सइमपि कलंन अग्घइ॥ ५९. सुबुद्धि ने प्रतिबुद्धि राजा से इस प्रकार कहा--स्वामिन् ! किसी समय मैं आपके दौत्य कर्म के लिए मिथिला राजधानी गया था। वहां मैंने कुम्भ राजा की, प्रभावती देवी की आत्मजा मल्ली के जन्म दिवस के दिन दिव्य श्रीदामकाण्ड माला देखी थी। पद्मावती देवी की यह श्रीदामकाण्ड माला उस श्रीदामकाण्ड माला के लक्षांश में भी नहीं आती। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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