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________________ अष्टम अध्ययन : सूत्र ६०-६६ १८८ नायाधम्मकहाओ ६०. तए णं पडिबुद्धी सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी--केरिसिया णं ६०. प्रतिबुद्धि ने सुबुद्धि अमात्य से इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय! कैसी है देवाणुप्पिया! मल्ली विदेहरायवरकन्ना, जस्स णं संवच्छर- वह विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली, जिसके जन्म-दिन पर निर्मित पडिलेहणयंसि सिरिदामगंडस्स पउमावईए देवीए सिरिदामगडे श्रीदामकाण्ड माला के पद्मावती देवी की श्रीदामकाण्ड माला लक्षांश सयसहस्सइमपि कलंन अग्घइ? में भी नहीं आती? ६१. तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धिं इक्खागरायं एवं वयासी--एवं खलु सामी! मल्ली विदेहरायवरकन्ना सुपइट्ठियकुम्मुण्णय-चारुचरणा जाव पडिरूवा।। ६१. सुबुद्धि ने इक्ष्वाकुराज प्रतिबुद्धि से इस प्रकार कहा--स्वामिन्! विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली सुप्रतिष्ठित, कुर्मोन्नत, सुन्दर चरणों वाली यावत् असाधारण है। ६२. तए णं पडिबुद्धी सुबुद्धिस्स अमच्चस्स अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म सिरिदामगंड-जणियहासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छाहि णं तुमं देवाणुप्पिया! मिहिलं रायहाणिं । तत्थ णं कुंभगस्स रण्णो घूयं पभावईए अत्तयं मल्लिं विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि यणं सा सयं रज्जसुंका।। ६२. अमात्य सुबुद्धि के पास यह अर्थ सुनकर, अवधारण कर प्रतिबुद्धि ने उस श्रीदामकाण्ड माला पर प्रमुदित होकर दूत को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम मिथिला राजधानी जाओ। वहां राजा कुम्भ की पुत्री, प्रभावती की आत्मजा, विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली का मेरी भार्या के रूप में वरण करो। फिर उसका मूल्य राज्य जितना भी क्यों न हो। ६३. तए णं से दूए पडिबुद्धिणा रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुढे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटे आसरहं पडिकप्पावेइ, पडिकप्पाक्ता दुरुढेहय-गय-रह-पवर-जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे महया भड-चडगरेणं साएयाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव विदेहजणवए जेणेव मिहिला रायहाणी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। ६३. राजा प्रतिबुद्धि के ऐसा कहने पर दूत ने हृष्ट तुष्ट होकर उसे स्वीकार किया। स्वीकार कर जहां अपना घर था, जहां चार घंटों वाला अश्व-रथ था, वहां आया। वहां आकर चार घंटो वाले अश्व-रथ को सजाया। सजाकर उस पर आरूढ़ हुआ। अश्व, गज, रथ और प्रवर पदाति योद्धाओं से कलित चतुरंगिणी सेना से संपरिवृत होकर महान सैनिकों की विभिन्न टुकड़ियों से घिरे हुए उसने साकेत नगर से निर्गमन किया। निर्गमन कर जहां विदेह जनपद था। जहां मिथिला राजधानी थी, उधर जाने का संकल्प किया। चंदच्छाय-राय-पदं ६४. तेणं कालेणं तेणं समएणं अंगनामंजणवए होत्था। तत्थ णं चंपा नाम नयरी होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए चंदच्छाए अंगराया होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए अरहण्णगपामोक्खा बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति--अड्डा जाव बहुजणस्स अपरिभूया। चन्द्रच्छायराज-पद ६४. उस काल और उस समय अंग नाम का जनपद था। उसमें चम्पा' नाम की नगरी थी। उस चम्पा नगरी में अंग देश का राजा चन्द्रच्छाय था। उस चम्पानगरी में अर्हन्नक प्रमुख सांयात्रिक पोतवणिक रहते थे। वे आढ्य यावत् बहुत व्यक्तियों से अपराजित ६५. तए णं से अरहण्णगे समणोवासए यावि होत्था-- अहिगयजीवाजीवे वण्णओ।। ६५. अर्हन्नक श्रमणोपासक भी था। वह जीव-अजीव को जानने वाला था--वर्णक। ६६. तए णं तेसिं अरहण्णगपामोक्खाणं संजत्ता-नावावाणियगाणं अण्णया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा समुल्लावे समुप्पज्जित्था-सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुदं पोयवहणेणं ओगाहित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमढे पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता गणिमं च धरिमं च मेजं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गेण्हंति, गेण्हित्ता ६६. किसी समय एकत्र सम्मिलित अर्हन्नक प्रमुख सांयात्रिक पोतवणिकों में परस्पर इस प्रकार वार्तालाप हुआ--हमारे लिए उचित है, हम गणनीय, धरणीय, मेय और परिच्छेद्य-क्रयाणक (किराने) को लेकर, पोतवहन से लवण समुद्र का अवगाहन करें। सबने परस्पर इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। स्वीकार कर गणनीय, धरणीय, मेय और परिच्छेद्य-कयाणक लिया। लेकर बहुत से छोटे-बड़े वाहन तैयार Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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