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________________ अष्टम अध्ययन : सूत्र ४७-५२ १८६ नायाधम्मकहाओ दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी--एवं खलु सामी! मम कल्लं नागजण्णए भविस्सइ । तं इच्छामि णं सामी! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी नागजण्णयं गमित्तए। तुब्भे वि णं सामी! मम नागजण्णयसि समोसरह। निष्पन्न संपुट आकार वाली अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर जय-विजय की ध्वनि से राजा का वर्धापन किया। वर्धापन कर इस प्रकार कहा--स्वामिन् ! कल मेरे नागपूजा होगी, इसलिए स्वामिन्! मैं चाहती हूं तुमसे अनुज्ञा प्राप्त कर नागपूजा में जाऊं ! स्वामिन्! तुम भी मेरी नागपूजा में चलो। ४८. तए णं पडिबुद्धी पउमावईए एयमट्ठ पडिसुणेइ।। ४८. प्रतिबुद्धि ने पद्मावती के इस अर्थ को स्वीकार किया। पणहा ४९. तए णं पउमावई पडिबुद्धिणा रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी हट्ठतुट्ठा कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! मम कल्लं नागजण्णं भविस्सइ, तं तब्भे मालागारे सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं वदाह--एवं खलु पउमावईए देवीए कल्लं नागजण्णए भविस्सइ, तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया! जल-थलयभासरप्पभूयं दसद्धवण्णं मल्लं नागघरयंसि साहरह, एगं च णं महं सिरिदामगंडं उवणेह। तए णं जल-थलय-भासरप्पभूएणं दसद्धवण्णेणं मल्लेणं नाणाविह-भत्ति-सुविरइयं हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारसचक्कवाय-मयणसाल-कोइल-कुलोववेयं ईहामिय-उसभ-तुरयनर-मगर-विहग-बालग-किंनर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजरवणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं महग्धं महरिहं विउलं पुष्फमंडवं विरएह । तस्स णं बहुमज्झदेसभाए एगं महं सिरिदामगंडं जाव गंधद्धणिं मुयंतं उल्लोयंसि ओलएह, पउमावइं देविं पडिवालेमाणा चिट्ठह ।। ४९. प्रतिबुद्धि राजा से अनुज्ञा प्राप्त कर हृष्ट तुष्ट हुई, पद्मावती देवी ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। उन्हें बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! कल मेरे नाग पूजा होगी, अत: तुम माली को बुलाओ। उसे बुलाकर ऐसा कहो--कल पद्मावती देवी के नागपूजा होगी। अत: देवानुप्रिय! तुम जल और स्थल में खिलने वाले प्रभूत पंचरंगे पुष्प समूह को नागघर में लाओ और एक विशाल श्री दामकाण्ड नाम की माला भी उपस्थित करो। ____ जल और स्थल में खिलने वाले प्रभूत पंचरंगे पुष्प समूह की नाना भांतों से सुविरचित, हंस, मृग, मयूर, कोंच, सारस, चक्रवाक, मदन-सारिका और कोकिल कुल से युक्त, भेड़िये, बैल, घोड़े, मनुष्य, मगरमच्छ, पक्षी, सर्प, किन्नर, मृग, अष्टापद, चमरीगाय, हाथी तथा अशोक आदि की लता और पद्मलता--इनके भांत चित्रों (विविध भांत के पंक्तिबद्ध चित्रों) से युक्त महामूल्य और महान अर्हता वाले विपुल पुष्प-मंडप की रचना करो। उस पुष्प मंडप के ठीक मध्य भाग में घ्राण को महान तृप्ति देने वाले गन्धमय परमाणुओं को बिखेरती हुई एक महान श्रीदामकाण्ड नाम की माला को चन्दोवे के नीचे लटकाओ और वहां पद्मावती देवी की प्रतीक्षा करो। ५०. तए णं ते कोडुबिया जाव पउमावतिं देविंपडिवालेमाणा चिटुंति॥ ५०. उन कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् पद्मावती देवी की प्रतीक्षा की। ५१. तए णं सा पउमावई देवी कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते कोडुबिए पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सागेयं नयरं सब्भितरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओवलित्तं जाव गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चपिणह । ते वि तहेव पच्चपिणंति॥ ५१. उषाकाल में पौ फटने पर यावत् सहस्ररश्मि दिनकर तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के कुछ ऊपर आ जाने पर उस पद्मावती देवी ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। उन्हें बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! शीघ्र ही साकेत नगर के बाहर और भीतर जल का छिड़काव कर, बुहार-झाड़, गोबर लीप, साफ-सुथरा कराओ यावत् उसे सुगन्धित गन्धवर्तिका जैसा करो और कराओ। इस आज्ञा को मुझे प्रत्यर्पित करो। उन्होंने भी वैसे ही प्रत्यर्पित किया। ५२. तए णं सा पउमावई देवी दोच्चंपि कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! लहुकरणजुत्तं जाव धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेह । ते वि तहेव उवट्ठति ।। ५२. पद्मावती देवी ने दूसरी बार भी कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! गतिक्रिया की दक्षता से युक्त यावत् धार्मिक यान प्रवर को तैयार कर शीघ्र उपस्थित करो। उन्होंने भी वैसे ही उपस्थित किया। Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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