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________________ १८३ नायाधम्मकहाओ संखे कासिराया, रुप्पि कुणालाहिवई, अदीणसत्तू कुरुराया, जियसत्तू पंचालाहिवई॥ अष्टम अध्ययन : सूत्र २७-३२ काशीराज शंख। कुणाला का अधिपति रुक्मी। कुरुराज अदीनशत्रु। पाञ्चाल का अधिपति जितशत्रु । २८. तए णं से महब्बले देवे तिहिं नाणेहि समग्गे उच्चाट्ठाणगएK गहेसुं, सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु, जइएसु सउणेसु पयाहिणाणुकूलसि भूमिसपिसि मास्यसि पवायंसि, निष्फण्ण-सस्समेइणीयसि कालसि पमुइय-पक्कीलिएसु जणवएसु अद्धरत्तकालसमयंसि अस्सिणीनक्खत्तेणं जोगमुवागएणं जे से हेमंताणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे, तस्स णं फग्गुणसुद्धस्स चउत्थीपक्खेणं जयंताओ विमाणाओ बत्तीसं सागरोवमठिइयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मिहिलाए रायहाणीए कुंभस्स रण्णो पभावतीए देवीए कुच्छिसि आहारवक्कंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए गब्भत्ताए वक्कते।। २८. उस समय ग्रह उच्चस्थानीय थे। दिशाएं सौम्य, तिमिररहित और निर्मल थी। शकुन विजय सूचक थे। दक्षिणावर्त और अनुकूल हवाएं भूमि का स्पर्श करती हुई बह रही थी। धरती पर पकी हुई फसलें लहलहा रही थी। जनपद प्रमुदित और नाना प्रकार की क्रीड़ाओं में निरत थे। अर्धरात्रि का समय था, अश्विनी नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग था। हेमन्त का चौथा महिना, आठवां पक्ष, फाल्गुन शुक्ल पक्ष और चतुर्थी तिथि थी। उस समय वह महाबल देव आहार-अवक्रांति, भव-अवक्रांति और शरीर-अवक्रांति के अनन्तर बत्तीस सागरोपम स्थिति वाले जयन्त विमान से च्युत हो, इसी जम्बूद्वीप द्वीप भारतवर्ष और मिथिला राजधानी में कुम्भराजा की प्रभावती देवी की कुक्षि में तीन ज्ञान के साथ गर्भ रूप में उत्पन्न हुआ। २९. जं रयणिं च णं महब्बले देवे पभावतीए देवीए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते, तं रयणिं च णं सा पभावती देवी चोद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा । भत्तार-कहणं । सुमिणपाढगपुच्छा जाव विपुलाई भोगभोगाइं जमाणी विहरइ॥ २९. जिस रात्रि में महाबल देव प्रभावती देवी की कुक्षि में गर्भ रूप में उत्पन्न हुआ, उस रात्रि में प्रभावती देवी चौदह महास्वप्न देखकर प्रतिबुद्ध हुई। उसने पति से कहा। स्वप्न पाठकों से पूछा--यावत् वह विपुल भोगार्ह भोगों को भोगती हुई विहार करने लगी। ३०. तए णं तीसे पभावईए देवीए तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमेयारूवे डोहले पाउन्भूए--धण्णाओणं ताओ अम्मयाओ जाओ णं जल-थलय-भासरप्पभूएणं दसद्धवण्णेणं मल्लेणं अत्थुय-पच्चत्थुयंसि सयणिज्जसि सण्णिसण्णाओ निवण्णाओ य विहरति, एगं च मह सिरिदामगंडं पाडल-मल्लिय-चंपग-असोगपुन्नाग-नाग-मख्यग-दमणग-अणोज्जकोज्जय-पउरं परमसुहफासं दरिसणिज्जं महया गंधद्धणिं मुयंत अग्घायमाणीओ डोहलं विणेति ॥ ३०. पूरे तीन माह बीत जाने पर प्रभावती देवी को यह विशेष प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ--धन्य हैं वे माताएं जो उस प्रकार के शयनीय में बैठी हुई और सोई हुई विहरण करती हैं जिस पर जल, स्थल में खिले हुए प्रभूत पंचरंगे पुष्प बिछे हुए हैं। वे पाटल, मोगरा (मल्लिका) चम्पक, अशोक, पुन्नाग, नाग, मरुवा, दमनक, निर्दोष-कुज्जक आदि पुष्प समूह से निर्मित, परम-सुखद स्पर्श वाले, दर्शनीय और घ्राण को महान तृप्ति देने वाले गन्धमय परमाणुओं को बिखेरती हुई एक महान श्री दामकाण्ड नाम की माला को सूंघती हुई अपना दोहद पूरा करती ३१. तए णं तीसे पभावईए इमं एयारूवं डोहलं पाउब्भूयं पासित्ता अहासण्णिहिया वाणमंतरा देवा खिप्पामेव जल-थलय-भासरप्पभूयं दसद्धवण्णं मल्लं कुंभग्गसो य भारग्गसा य कुंभस्स रण्णो भवर्णसि साहरंति, एगं च णं महं सिरिदामगंडं जाव गंधद्धणिं मुयंतं उवणेति॥ ३१. प्रभावती देवी को इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ है--यह जानकर आस-पास के वानव्यंतर देव तत्काल जल और स्थल में खिलने वाले प्रभूत कुम्भ परिमित और भार परिमित पंचरंगे पुष्प समूह कुम्भ राजा के घर में लाए और यावत् घ्राण को महान तृप्ति देने वाले गंधमय परमाणुओं को बिखेरती हुई एक महान श्रीदामकाण्ड नाम की माला भी लाए। ३२. तए णंसा पभावई देवी जल-थलय-भासरप्पभूएणं दसद्धवण्णेणं मल्लेणं दोहलं विणेइ॥ ३२. प्रभावती देवी ने जल और स्थल में खिलने वाले प्रभूत पंचरंगे पुष्प समूह से अपना दोहद पूरा किया। Jain Education Interational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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