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अष्टम अध्ययन : सूत्र ३३-४०
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नायाधम्मकहाओ ३३. तए णं सा पभावई देवी पसत्थदोहला सम्माणियदोहला ३३. प्रभावती देवी ने दोहद को प्रशस्त किया। उसका सम्मान किया, विणीयदोहला संपुण्णदोहला संपत्तदोहला विउलाई माणुस्सगाइं उसका विनयन किया, उसे पूरा किया और संप्राप्त किया। वह मनुष्य भोगभोगाइं पच्चणुभवमाणी विहरइ।।
संबंधी विपुल भोगार्ह भोगों का अनुभव करती हुई विहार करने लगी।
३४. तए णं सा पभावई देवी नवण्हं मासाणं (बहुपडिपुण्णाणं?) अट्ठमाण य राइंदियाणं (वीइक्कंताणं?) जे से हेमंताणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे मग्गसिरसुद्धे, तस्स णं एक्कारसीए पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयंसि अस्सिणीनक्खत्तेणं (जोगमुवागएणं?) उच्चट्ठाणगएसुं गहेसु जाव पमुइय-पक्कीलिएसु जणवएसु आरोयारोयं एगूणवीसइमं तित्थयरं पयाया।
३४. पूरे नौ मास और साढ़े सात दिन रात बीतने पर हेमन्त ऋतु के प्रथम मास दूसरा पक्ष मृगसर शुक्ल एकादशी तिथि को मध्यरात्रि के समय जब अश्विनी नक्षत्र के साथ (चन्द्र का योग) था, ग्रह उच्चस्थानीय थे, यावत् जनपद प्रमुदित और नाना प्रकार की क्रीड़ाओं में निरत थे, उस समय स्वस्थ प्रभावती देवी ने स्वस्थ उन्नीसवें तीर्थंकर को जन्म दिया।
३५. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीम- हयरियाओ जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए जम्मणुस्सवं, नवरं मिहिलाए कुंभस्स पभावईए अभिलाओ संजोएयव्वो जाव नंदीसरवरदीवे महिमा॥
३५. उस काल और उस समय अधोलोक निवासिनी आठ प्रधान दिशा
कुमारियों ने जन्मोत्सव किया, जैसे--जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में जन्मोत्सव का वर्णन है। विशेष इतना है--यथास्थान मिथिला, कुम्भ और प्रभावती के नाम संयोजनीय हैं--यावत् नंदीश्वर द्वीप में महिमा।
३६. तया णं कुंभए राया बहूहिं भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-
वेमाणिएहिं देवेहिं तित्थयर-जम्मणाभिसेयमहिमाए कयाए समाणीए पच्चूसकालसमयंसि नगरगुत्तिए सद्दावेइ जायकम्म जाव नामकरणं--जम्हा णं अम्हं इमीसे दारियाए माऊए मल्लसयणिज्जसि डोहले विणीए, तं होउ णं (अम्हं दारिया?) नामेणं मल्ली।
३६. तब बहत से भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक और वैमानिक देवों
द्वारा तीर्थंकर की जन्माभिषेक महिमा सम्पन्न हो जाने पर राजा कुम्भ ने प्रभातकाल में नगर-आरक्षक-दल को बुलाया। जातकर्म यावत् नामकरण संस्कार सम्पन्न किया, जैसे हमारी इस बालिका की. माँ का माल्यशयनीय का दोहद पूरा हुआ है, अत: (हमारी इस बालिका) इसका नाम 'मल्ली' हो।
३७. तए णं सा मल्ली पंचधाईपरिक्खित्ता जाव सुहंसुहेणं परिवड्डई।
३७. वह मल्ली पांच धाय-माताओं से घिरी हुई यावत् सुखपूर्वक बढ़ने
लगी।
३८. तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना उम्मुक्कबालभावा विण्णय- परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य अईव-अईव उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था॥
३८. विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली शैशव को लांघकर विज्ञ और कला
की पारगामी बनकर यौवन में प्रविष्ट हुई। वह रूप, यौवन और लावण्य से अतिशय उत्कृष्ट एवं उत्कृष्ट शरीर वाली हुई।
३९. तए णं सा मल्ली देसूणवाससयजाया ते छप्पि य रायाणो विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी-आभोएमाणी विहरइ, तं जहा-पडिबुद्धिं इक्खागरायं, चंदच्छायं अंगरायं, संखं कासिरायं, रुप्पिं कुणालाहिवई, अदीणसत्तुं कुरुरायं, जियसत्तुं पंचालाहिवई॥
३९. वह मल्ली कुछ कम सौ वर्ष की हुई तब अपने विपुल अवधिज्ञान से
इक्ष्वाकुराज प्रतिबुद्धि, अंगराज चन्द्रच्छाय, काशीराज शंख, कुणाला के अधिपति रुक्मी, कुरुराज अदीनशत्रु और पांचाल देश के अधिपति जितशत्रु इन छहों राजाओं के विषय में जानने लगी।
मल्लिस्स मोहणघर-निम्माण-पदं ४०. तए णं सा मल्ली कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं
वयासी--तुब्भे णं देवाणुप्पिया! असोगवणियाए एगं महं मोहणघरं करेह--अणेगखंभसयसण्णिविटुं । तस्स णं मोहणघरस्स बहुमझदेसभाए छ गन्भघरए करेह । तेसि णं गब्भघरगाणं बहुमज्झदेसभाए जालघरयं करेह। तस्स णं जालघरयस्स
मल्ली के रतिघर का निर्माण-पद ४०. मल्ली ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार
कहा--"देवानुप्रियो ! तुम अशोक वनिका में एक विशाल रतिघर का निर्माण कराओ, जो अनेक शत खम्भों पर सन्निविष्ट हो। उस रतिघर के ठीक मध्यभाग में छह तलघर बनाओ। उन छहों तलघरों के ठीक मध्यभाग में जालक-गृह बनाओ। उस जालक-गृह के ठीक
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