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आमुख
आगम साहित्य में तीर्थंकरों का जीवन चरित्र उल्लिखित है। कल्पसूत्र में भगवान महावीर का विस्तार व शेष तीर्थंकरों का संक्षिप्त में वर्णन मिलता है।
__ भगवान ऋषभ का जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में, महावीर का आयारो व आयारचूला में वर्णन है। प्रश्न उठता है ज्ञातधर्मकथा में अन्य तीर्थंकरों का जीवनवृत्त नहीं, केवल मल्लिनाथ पर ही विवेचन क्यों? अनुमान किया जा सकता है कि चौबीस ही तीर्थंकरों का जीवन-चरित्र लिखा गया होगा। अन्य तीर्थंकरों का अन्य आगमों में विवेचन होने से ज्ञातधर्मकथा में नहीं दिया गया और मल्लिनाथ का वर्णन अन्यत्र विस्तार से न होने के कारण ज्ञातधर्मकथा में दे दिया गया है।
प्रस्तुत अध्ययन के केन्द्र में विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली है। मल्ली का जीव गर्भ में आने पर रानी प्रभावती को माल्य-शयनीय का दोहद उत्पन्न हुआ। रानी के दोहद की पूर्ति होने से इस अध्ययन का नाम भी मल्ली रख दिया गया।
२३६. सूत्रों में आवंटित यह अध्ययन जितना विस्तृत है, उतना ही प्रेरणादायी और सरस । प्रतिबुद्धि, चन्द्रच्छाय, शंख, रुक्मी, अदीनशत्रु और जितशत्रु राजा किस प्रकार राजकुमारी मल्ली के प्रति अनुरक्त होते हैं और मल्ली किस प्रकार उनके राग को विराग में बदलती है। इसका मनोवैज्ञानिक व प्रयोगात्मक ढंग से बहुत ही सुन्दर विश्लेषण किया गया है।
मल्ली के विषय में एक बड़ा विवाद है। १९ वें तीर्थंकर मल्लीनाथ स्त्री थे। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार स्त्री की मुक्ति हो सकती है किन्तु दिगम्बर परम्परा में स्त्री की मुक्ति मान्य नहीं है।
प्रस्तुत अध्ययन की संग्रहणी गाथा में उल्लेख है--महाबल के भव में तीर्थंकर नाम गोत्र का बंधन होते हुए भी तप विषयक अल्प माया मल्ली के स्त्रीत्व का कारण बन गयी।' प्रस्तुत गाथा पर मनन करने से एक प्रश्न उभरता है कि माया स्त्री बंध का कारण है, इसका हेतु क्या है? माया करने से तिर्यञ्च योनि का बंध होता है ऐसा ठाणं सूत्र व तत्त्वार्थ सूत्र में उल्लेख है किन्तु माया करने से स्त्री गोत्र का बंध होता है यह आज भी शोध का विषय है। उत्तराध्ययन सूत्र में उल्लेख है--'ऋजुभाव से युक्त अमाई स्त्रीवेद और नपुंसक वेद का बंधन नहीं करता किन्तु माया से स्त्री गोत्र का बंध होता है ऐसा उल्लेख वहां भी नहीं है।
प्रस्तुत अध्ययन का प्रतिपाद्य है--तपस्या की आराधना में भी माया का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उत्कृष्ट तप करने वाले के लिए भी माया अनर्थ का हेतु बन जाती है।
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