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________________ अट्ठमं अज्झयणं : आठवां अध्ययन मल्ली उक्खेव-पदं १. जइणं भते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अटे पण्णते? उत्क्षेप पद १. भन्ते! यदि धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञाता के सातवें अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है, तो भन्ते! उन्होंने ज्ञाता के आठवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? बलराज पद बलराय-पदं २. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सीओदाए महानदीए दाहिणेणं, सहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्यिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पण्णत्ते। २. जम्बू! उस काल और उस समय इसी जम्बूद्वीप द्वीप और महाविदेह वर्ष में मन्दर पर्वत के पश्चिम में निषध नाम के वर्षधर पर्वत के उत्तर में, सीतोदा महानदी के दक्षिण में, सुखावह नाम के वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में और पश्चिमी लवण-समुद्र के पूर्व में सलिलावती नाम की विजय थी। ३. तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नाम रायहाणी-- नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोगभूया। ३. उस सलिलावती विजय की वीतशोका नाम की राजधानी थी। वह नौ योजन चौड़ी यावत् प्रत्यक्ष देवलोक तुल्य थी। ४. तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे नामं उज्जाणे॥ ४. उस वीतशोका राजधानी के ईशानकोण में इन्द्रकुंभ नाम का उद्यान था। ५. तत्थ णं वीयसोगाए रायहाणीए बले नामं राया। तस्स धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे होत्था ।। ५. उस वीतशोका राजधानी में बल नाम का राजा था। उसके अन्त:पुर में धारिणी प्रमुख हजार देवियां थीं। ६. तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ सीहं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा जाव महब्बले दारए जाए--उम्मुक्कबालभावे जाव भोगसमत्थे। ६. किसी समय धारिणी देवी सिंह का स्वप्न देखकर प्रतिबुद्ध हुई यावत् उसने महाबल बालक को जन्म दिया। वह शैशव को लांघकर यावत् पूर्ण भोग-समर्थ हुआ। ७. तए णं तं महब्बलं अम्मापियरो सरिसियाणं कमलसिरिपामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकन्नासयाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेंति। पंच पासायसया। पंचसओ दाओ जाव माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ॥ ७. महाबल के माता-पिता ने कमलश्री प्रमुख एक जैसी पांच सौ प्रवर राजकन्याओं के साथ एक ही दिन में महाबल का पाणिग्रहण करवा दिया। पांच सौ प्रासाद। पांच सौ (वस्तु-श्रेणियों) का प्रीतिदान यावत् वह मनुष्य संबंधी काम-भोगों का अनुभव करता हुआ विहार करने लगा। ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं इंदकुंभे उज्जाणे थेरा समोसढा । परिसा निग्गया। बलो वि निग्गओ। धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुटे थेरे तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता ८. उस काल और उस समय इन्द्रकुम्भ उद्यान में स्थविर समवसृत हुए। परिषद ने निर्गमन किया। बलराजा ने भी निर्गमन किया। धर्म को सुनकर, अवधारण कर हृष्ट तुष्ट हुए बल ने स्थविरों को Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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