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नायाधम्मकहाओ
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सप्तम अध्ययन : सूत्र ३४-४० ३४. तए णं से धणे सत्थवाहे रक्खियाए अंतियं एयमढे सोच्चा ३४. रक्षिता से यह अर्थ सुनकर हृष्ट तुष्ट हुए धन सार्थवाह ने रक्षिता
हट्ठतुढे तस्स कुलघरस्स हिरण्णस्स य कंस-दूस-विपुल-धण-कणग- को उस घर की चांदी तथा कांस्य, दूष्य, विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार- मौक्तिक, शंख, शिला, प्रवाल, पद्मराग मणियां, श्रेष्ठ सुगन्धित द्रव्य सावए-ज्जस्स य भंडागारिणी ठवेइ।
और दान भोग आदि के लिए स्वापतेय के खजाने की स्वामिनी के रूप में नियुक्त कर दिया।
३५. एवामेव समणाउसो! जो अहं निग्गंथो वा निग्गंथी वा
आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, पंच य से महव्वयाइंरक्खियाई भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव चाउरंतं संसारकतारं वीईवइस्सइ--जहा व सा रक्खिया॥
३५. आयुष्मन् श्रमणो! इसी प्रकार हमारा जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी
आचार्य-उपाध्याय के पास मुण्ड हो, अगार से अनगारता में प्रव्रजित होता है और उनके पांच महाव्रत सुरक्षित रहते हैं तो वह इस भव में भी बहुत श्रमणों, बहुत श्रमणियों, बहुत श्रावकों और बहुत श्राविकाओं द्वारा अर्चनीय होता है यावत् वह चार अन्त वाले संसार कान्तार का पार पा लेता है जैसे--वह रक्षिता।
३६. रोहिणीया वि एवं चेव, नवरं--तुब्भे ताओ! मम सुबहुयं
सगडि- सागडं दलाह, जा णं अहं तुब्भं ते पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएमि॥
३६. रोहिणी का भी ऐसा ही वर्णन है। इतना विशेष है। उसने पिताजी
से कहा-पिताजी! तुम मुझे छोड़े-बड़े वाहन दो जिससे मैं तुम्हारे वे पांच शालिकण लाऊँ।
३७. तए णं से धणे सत्थवाहे रोहिणिं एवं वयासी--कहं णं तुम
पुत्ता! ते पंच सालिअक्खए सगडि-सागडेणं निज्जाइस्ससि?॥
३७. तब धन सार्थवाह ने रोहिणी से इस प्रकार कहा--बेटी! तू उन पांच
शालिकणों को छोटे-बड़े वाहनों से कैसे लाएगी?
३८. तए णं सा रोहिणी धणं सत्थवाहं एवं वयासी--एवं खलु ताओ। तुब्भे इओ अतीते पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्त-नाइ- नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ पंच सालिअक्खए गेण्हह, गेण्हित्ता ममं सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं वयासी--तुम णं पुत्ता मम हत्थाओ इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि । जया णं अहं पुत्ता! तुम इमे पंच सालिअक्खए जाएज्जा, तया णं तुम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएज्जासि ति कटु मम हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयह। तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं । तं सेयं खलु मम एए पंच सालिअक्खए सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए संवड्ढेमाणीए जाव बहवे कुंभसया जाया तेणेव कमेण। एवं खलु ताओ! तुब्भे ते पंच सालिअक्खए सगडि-सागडेणं निज्जाएमि।
३८. रोहिणी ने धन सार्थवाह से इस प्रकार कहा--पिताजी! आपने आज से पांच वर्ष पहले इन्हीं मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी, परिजन
और चारों बहुओं के पीहर वालों के सामने पांच शालिकण लिए। लेकर मुझे बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा--बेटी! तू मेरे हाथ से ये पांच शालिकण ले और क्रमश: इनका संरक्षण, संगोपन करती रह । बेटी! जब मैं तुझसे ये पांच शलिकण मागू तब तू मुझे ये पांच शालिकण लौटा देना--ऐसा कहकर आपने मेरे हाथ में पांच शालिकण दिये थे। यहां कोई न कोई कारण होना चाहिए अत: मेरे लिए उचित है--मैं इन पांच शालिकणों का संरक्षण, संगोपन और संवर्द्धन करती हुई विहार करूं यावत् उसी क्रम से शालि के अनेक शत कुम्भ भर गये। इसलिए पिताजी मैं आपके उन पांच शालिकणों को छोटे-बड़े वाहनों से लाऊँगी।
३९. धन सार्थवाह ने रोहिणी को बहुत सारे छोटे-बड़े वाहन दिये।
३९. तए णं से घणे सत्थवाहे रोहिणीयाए सुबहुयं सगडि-सागडं
दलाति।।
४०. तए णं से रोहिणी सुबहुं सगडि-सागडं गहाय जेणेव सए कुलघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोट्ठागारे विहाडेइ, विहाडित्ता पल्ले उभिदइ, उभिदित्ता सगडि-सागडं भरेइ, भरेत्ता रायगिह नगरं मझमझेणं जेणेव सए गिहे जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ।।
४०. रोहिणी बहुत सारे छोटे-बड़े वाहन लेकर जहां उसका पीहर था, वहां
आयी। वहां आकर कोष्ठागारों को खोला। खोलकर कोठों का उद्भेदन किया। उद्भेदन कर छोटे-बड़े वाहनों को भरा। उन्हें भरकर राजगृह नगर के बीचोंबीच होती हुई जहां अपना घर था, जहां धन सार्थवाह था, वहां आयी।
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