SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नायाधम्मकहाओ सेलगस्स रोगातंक - पदं १०६. तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहिं अतहि य पंतेहि व तुच्छेहि व लूहेहि य अरसेति य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि व कालाइवकतेहि य पमाणाइक्कतेहि व निच्चं पाणभोयणेहि व पयइ- सुकुमालरस सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउन्भूया - उज्जलाविला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा । कंडुदाह-पित्तज्जर-परिगयसरीरे बावि विहरह ।। १०७. तए णं से सेलए तेणं रोयायंकेणं सुक्के भुक्खे जाए या होत्या ॥ १०८. तए णं से सेलए अण्णया कयाइ पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं इज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सेलगपुरे नवरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उपागच्छद्द, उवागच्छिता अहापडिरूवं ओहं ओगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। १५३ १०९. परिसा निग्गया । मंडुओ वि निग्गओ सेलगं अणगारं वंदइ नमंसइ पज्जुवासइ ।। सेलगस्स तिगिच्छा-पदं ११०. तए गं से मंहुए राया सेलगस्स अनगारस्स सरीरगं सुवर्क भुवखं सव्वाबाहं सरोगं पासइ, पासित्ता एवं वयासी-- अहण्णं भंते! तुब्भं अहापवत्तेहिं तेगिच्छिएहिं अहापवत्तेणं ओसह-भेसज्जभत्तपाणेण तेगिच्छं आउट्टावेमि। तुम्मे णं भत! मम जाणसालासु समोसरह, फासू- एसणिज्जं पीढ़-फलग सेज्जा-संचारगं ओगिन्हित्ता गं विहरह || १११. तए णं से सेलए अणगारे मंहयस्स रन्गो एयम तह 'त्ति' परिसुणे ।। ११२. तए णं से मंडुए सेलगं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूतामेव दिसिं पडिगए ।। ११३. तए गं से सेलए कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते सभंडमत्तोवगरणमायाए पंथगपामोक्स्लेहिं पंचहिं अणगारसहिं सद्धिं सेलगपुरमगुप्पविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव मंडुयस्स रण्णो जाणसाला तेणेव उवागच्छ, उवागच्छत्ता फास - एसणिज्जं पीढ़-फलग सेज्जा- संधारगं ओमित्ताणं विरह ।। - Jain Education International पांचवां अध्ययन : सूत्र १०६-११३ शैलक का रोगातंक - पद १०६. प्रशैलक राजर्षि के सहज सुकुमार और सुख भोगने योग्य शरीर में नित्य-सेवित अन्त प्रान्त, निस्सार र अरस, विरस, शीत, उष्ण, कालातिक्रांत और प्रमाणातिक्रान्त पान - भोजन के कारण उज्ज्वल, विपुल, कर्कश, प्रगाढ़, चण्ड, दुःखद और दुःसह वेदना प्रादुर्भूत हुई। उसका शरीर कण्डू, दाह और पित्तज्वर से आक्रांत हो गया । १५ ד १०७. शैलक उस रोग और आतंक से सूखा और रूखा हो गया । १०८. किसी समय शैलक क्रमशः विहरण करता हुआ, ग्रामानुग्राम परिव्रजन करता हुआ सुखपूर्वक विहार करता हुआ जहाँ शैलकपुर नगर था जहाँ सुभूमिभाग उद्यान था वहाँ आया। वहाँ आकर आवास योग्य स्थान की अनुमति प्राप्त कर संयम और तप से स्वयं को भावित करता हुआ विहार करने लगा । १०९. जन-समूह ने निर्गमन किया। मण्डुक ने भी निर्गमन किया। शैलक अनगार को वन्दना की, नमस्कार किया और पर्युपासना करने लगा। शैलक की चिकित्सा पद मैं ११०. मण्डुक ने राजा शैलक अनगार के शरीर को सूखा, रूखा तथा व्याधि और रोग से ग्रस्त देखा देखकर वह इस प्रकार बोला- भन्ते! यथाप्रवृत्त चिकित्सकों और यथाप्रवृत्त औषध, भेषन्य तथा भक्तपान से आपकी चिकित्सा करवाता हूँ। भन्ते! आप मेरी यानशाला में आएं। वहाँ प्रासुक (अभिलषणीय) एवं एषणीय पीठ, फलक, शय्या और संस्तारक को ग्रहण कर विहार करें। १११. ऐसा ही हो--इस प्रकार शैलक अनगार ने राजा मण्डुक के इस को स्वीकार किया। ११२. मण्डुक ने शैलक को वन्दना - नमस्कार किया। वन्दना - नमस्कार कर, वह जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में चला गया। For Private & Personal Use Only ११३. उषाकाल में पौ फटने पर यावत् सहस्ररश्मि दिनकर तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के कुछ ऊपर आ जाने पर शैलक ने अपने भाण्ड, पात्र आदि उपकरण ले पंथक प्रमुख पांच सौ अनगारों के साथ शैलकपुर नगर में प्रवेश किया। प्रवेश कर जहाँ मण्डुक राजा की यानशाला थी, वहाँ आया। वहाँ आकर प्रासुक, एषणीय, पीठ, फलक, शय्या और संस्तारक को ग्रहण कर विहार करने लगा। www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy