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________________ नायाधम्मकहाओ १४७ असत्थपरिणया ते णं समणाणं निग्गंधाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते सत्थपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा--फासुया य अफासुया य। अफासुया णं सुया! (समणाणं निग्गंथाणं?) नो भक्खेया । तत्थ णं जेते फासुया ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा--एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य । तत्थ णं जेते अणेसणिज्जा ते (णं समणाणं निग्गंथाणं?) अभक्खेया। तत्थ णं जेते एसणिज्जा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--जाइया य अजाइया य। तत्थ णं जेते अजाइया ते (णं समणाणं निग्गंथाण?) अभक्खेया। तत्थ णं जेते जाइया ते विहा पण्णत्ता, तं जहा--लद्धा य अलद्धा य । तत्थ णं जेते अलद्धा ते (णं समणाणं निग्गंथाणं?) अभक्खेया। तत्थ णं जेते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया। एएणं अद्वेणं सुया! एवं वुच्चइ--सरिसवया भक्खेया वि अभक्खेया वि॥ पांचवां अध्ययन : सूत्र ७३-७४ श्रमण निर्ग्रन्थों के अभक्ष्य हैं। उनमें वे जो शस्त्रपरिणत हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं--जैसे प्रासुक और अप्रासुक। अप्रासुक भक्ष्य नहीं हैं, उनमें वे जो प्रासुक हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे--एषणीय और अनेषणीय। उनमें वे जो अनेषणीय हैं वे (श्रमण-निर्ग्रन्थों के?) अभक्ष्य हैं। उनमें वे जो एषणीय हैं वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे याचित और अयाचित। उनमें वे जो अयाचित हैं, वे (श्रमण निर्ग्रन्थों के?) भक्ष्य नहीं हैं। उनमें वे जो याचित हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे--लब्ध और अलब्ध । उनमें जो अलब्ध हैं वे (श्रमण-निर्ग्रन्थों के?) अभक्ष्य हैं। उनमें वे जो लब्ध हैं, वे श्रमण निर्ग्रन्थों के भक्ष्य हैं। शुक! इस अर्थ से ऐसा कहते हैं--सरिसवय भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य भी हैं। कुलस्थों की भक्ष्याभक्ष्यता-पद ७४. भन्ते! तुम्हारे कुलथा भक्ष्य हैं या अभक्ष्य हैं? शुक! कुलथा भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य भी है। भन्ते! किस अर्थ से ऐसा कहते हैं--कुलथा भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य भी हैं? शुक! कुलथा दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे--स्त्रीकुलथा और धान्य कुलथा। उनमें वे जो स्त्रीकुलथा हैं, वे तीन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे--कुलवधू, कुलमाता, कुलपुत्री। वे श्रमण निर्ग्रन्थों के अभक्ष्य कुलत्थाणं भक्खाभक्ख-पदं ७४. कुलत्था ते भंते! किं भक्खेया? अभक्खेया? सुया! कुलत्था भक्खेया वि अभक्खेया वि। से केणटेणं भते! एवं कुच्चइ--कुलत्था भक्खेया वि अभक्खेया वि? सुया! कुलत्था दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--इत्थिकुलत्था य घण्णकुलत्था य। तत्थ णं जेते इत्थिकुलत्था ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--कुलवहुया इ य कुलमाउया इ य कुलधूया इय। ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते धण्णकुलत्था ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--सत्थपरिणया य असत्थपरिणया। तत्थ णं जेते असत्यपरिणया ते समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जेते सत्थपरिणया य। तत्थ णं जेते असत्थपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--फासुया य अफासुया य । अफासुया णं सुया! समणाणं निग्गंथाणं नो भक्खेया। तत्थ णं जेते फासुया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य। तत्थ णं जेते अणेसणिज्जा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते एसणिज्जा ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा--जाइया य अजाइया य। तत्थ णं जेते अजाइया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते जाइया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--लद्धा य अलद्धा य । तत्थ णं जेते अलद्धा ते अभक्खेया। तत्थ णं जेते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया। एएणं अटेणं सुया! एवं वुच्चइ--कुलत्था भक्खेया वि अभक्खेया वि॥ उनमें वे जो धान्यकुलथा हैं--वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त है, जैसे--शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरिणत। उनमें वे जो अशस्त्रपरिणत हैं वे श्रमण निर्ग्रन्थों के अभक्ष्य हैं। उनमें वे जो शस्त्रपरिणत हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे--प्रासुक और अप्रासुक । शुक! अप्रासुक श्रमण निर्ग्रन्थों के भक्ष्य नहीं है। उनमें वे जो प्रासुक हैं वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे--एषणीय और अनेषणीय । उनमें जो अनेषणीय हैं वे श्रमण निग्रन्थों के अभक्ष्य हैं। उनमें जो एषणीय हैं वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे--याचित और अयाचित । उनमें जो अयाचित हैं वे श्रमण निर्ग्रन्थों के अभक्ष्य हैं। उनमें जो याचित हैं वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- लब्ध और अलब्ध । उनमें जो अलब्ध हैं, वे अभक्ष्य हैं। उनमें वे जो लब्ध हैं वे श्रमण-निर्ग्रन्थों के भक्ष्य हैं। शुक! इस अर्थ से ऐसा कहते हैं--कुलथा भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य भी हैं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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