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________________ चतुर्थ अध्ययन : सूत्र २३ १२८ नायाधम्मकहाओ निक्खेव-पदं निक्षेप पद २३. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स २३. जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञाता के चौथे अध्ययन नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है। --त्ति बेमि। --ऐसा मैं कहता हूं। वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा-- विसएसु इंदियाई, रुंभंता राग-दोस-निम्मुक्का। पावेंति निव्वुइसुहं, कुम्मोव्व मयंगदहसोक्खं ।।१।। इयरे उ अणत्थ-परंपराओ पावेंति पावकम्मवसा। संसार-सागरगया, गोमाउग्गसियकुम्मोव्व।।२।। वृत्तिकार द्वारा समुद्धृत निगमन-गाथा १. विषय में प्रवृत्त इन्द्रियों का निरोध करने वाले राग-द्वेष से निर्मुक्त प्राणी मृतगंगातीर-हृद में सुख प्राप्त करने वाले, कछुए की भांति निवृतिसुख को प्राप्त करते हैं। २. इससे प्रतिकूल प्रवृत्ति करने वाले प्राणी पाप-कर्मों के अधीन और संसार-सागर में निमग्न हो शृगाल द्वारा ग्रसित कछुए की भांति अनर्थ-परम्परा को प्राप्त करते हैं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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