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नायाधम्मकहाओ
सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ। देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुई वा खुइं वा पउत्तिं वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव धणे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणं सत्थवाहं एवं वयासी--एवं खलु सामी! भद्दा सत्यवाही देवदिन्नं दारयं व्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं मम हत्थंसि दलयइ । तए णं अहं देवदिन्नं दारयं कडीए गिण्हामि, गिण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमामि, बहूहिं डिभएहि य डिभियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिखुडे जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं एगते ठावेमि, ठावेत्ता बहूहिं डिभएहि य जाव कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे पमत्ते यावि विहरामि। ___तए णं अहं तओ मुहुत्तंतरस्स जेणेव देवदिन्ने दारए ठविए तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे (विलवमाणे?) देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमि । तं न नज्जइणं सामी! देवदिन्ने दारए केणइ नीते वा अवहिते वा अक्खित्ते वा--पायवडिए घणस्स सत्थवाहस्स एयमढे निवेदेइ ।।
द्वितीय अध्ययन : सूत्र २९-३१ चारों ओर बालक देवदत्त की मार्गणा, गवेषणा करने लगा। उसे बालक देवदत्त का कहीं भी कोई सुराख, चिह्न अथवा वृतान्त नहीं मिला, तब वह जहां अपना घर था, जहां धन सार्थवाह था वहां आया। वहां आकर धन सार्थवाह से इस प्रकार बोला--
"स्वामिन्! भद्रा सार्थवाही ने बालक देवदत्त को नहलाकर यावत् सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित कर मेरे हाथ में सौंपा। मैंने बालक देवदत्त को गोद में लिया। लेकर अपने घर से बाहर निकला। बहुत सारे बालक-बालिकाओं, किशोर-किशोरियों और कुमार-कुमारियों के साथ उनसे संपरिवृत हो, जहां राजमार्ग था वहां आया। वहां आकर बालक देवदत्त को एकान्त में बिठा दिया, बिठाकर-स्वयं बहुत सारे बालकों यावत् कुमारियों के साथ, उनसे संपरिवृत हो खेलने में मस्त हो गया।"
इस घटना के मुहूर्त भर पश्चात् जहां बालक देवदत्त को बिठाया था, वहां आया। आकर उस स्थान में जब बालक देवदत्त मुझे दिखाई नहीं दिया, तब मैंने रोते, कलपते, (और विलपते?) हुए चारों ओर बालक देवतदत्त की मार्गणा, गवेषणा की। स्वामिन्! न जाने बालक देवदत्त को कौन ले गया? किसने उसका अपहरण कर लिया? किसने उसे प्रलोभन देकर उड़ा दिया ।इस प्रकार वह धन सार्थवाह के पैरों में गिर कर, सारी बात बताने लगा।
३०. तए णं धणे सत्यवाहे पंथयस्स दासचेडगस्स एयमढे सोच्चा निसम्म तेण य महया पुत्तसोएणाभिभूए समाणे परसु-णियत्ते व चंपगपायवे 'धसत्ति' धरणीयलंसि सव्वंगेहिं सण्णिवइए।।
३०. दासपुत्र पन्थक से यह बात सुनकर, अवधारण कर धन सार्थवाह उस
महान पुत्र शोक से अभिभूत हो उठा। वह कुल्हाड़ी से काटे गए चम्पकपादप की भांति, अपने सम्पूर्ण शरीर के साथ, धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा।
३१. तए णं से धणे सत्यवाहे तओ मुहत्तंतरस्स आसत्ये पच्चागयपाणे
देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ। देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुइंवा खुइंवा पउत्तिं वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महत्थं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता तं महत्थं पाहुई उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! मम पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए देवदिन्ने नाम दारए इढे जाव उंबरपुप्फ पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? तए णं सा भद्दा देवदिन्नं ण्हायं सव्वालंकारविभूसियं पंथगस्स हत्ये दलाइजाव पायवडिए तं मम निवेदेइ । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवसणं कयं।
३१. उसके मुहूर्त भर पश्चात् जब धन सार्थवाह आश्वस्त हुआ, उसकी
चेतना लौटी, तब उसने चारों ओर बालक देवदत्त की मार्गणा, गवेषणा प्रारम्भ कर दी। जब उसे बालक देवदत्त का कहीं भी कोई सुराख, चिह्न अथवा वृतान्त नहीं मिला, तब वह जहां अपना घर था वहां आया। घर आकर प्रचुर धन वाला उपहार लिया। उपहार लेकर जहां नगर आरक्षक थे, वहां आया, वहां आकर उन्हें प्रचुर धन वाला उपहार भेंट किया। उपहार भेंट कर वह इस प्रकार बोला--
देवानुप्रिय! मेरा पुत्र, भद्रा भार्या का आत्मज, देवदत्त नाम का बालक, हमें इष्ट यावत् उदुम्बर पुष्प के समान श्रवण दुर्लभ था। फिर दर्शन का तो प्रश्न ही कहां? उसे भद्रा ने नहला कर, सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित कर पन्थक के हाथों में दिया यावत् पन्थक ने मेरे पैरों में गिर कर, सारी बात कही।
अत: देवानुप्रियो! मैं चाहता हूं बालक देवदत्त की चारों ओर मार्गणा, गवेषणा की जाए।
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