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________________ द्वितीय अध्ययन : सूत्र २५-२९ देवदिन्नस्स क्रीडा-पदं २५. तए गं से पंथ दासचेहए देवदिन्नस दारगस्स बालग्गाही जाए, देवदन्नं दार कडीए गेन्हइ, गेण्हित्ता बहूहिं डिंभएहि य डिभियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे अभिरमइ ।। २६. तए णं सा भद्दा सत्यवाही अण्णया कयाइ देवदिन्नं दारयं ण्हायं कयबलिकम्मं कय- कोउय-मंगल- पायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता पंथयस्स दासचेडगस्स हत्थयंसि दलयइ ।। २७. तए णं से पंथ दासचेडए भद्दाए सत्यवाहीए हत्याओ देवदिन्नं दार कडीए गेves, गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, बहूहिं डिंभएहि व डिभियाहि य दारएहि व दारियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं एगंते ठाइ, ठावेत्ता बहूहिं डिंभएहि य जाव कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे पमत्ते यावि विहरइ ।। देवदिन्नरस अपहार-पदं २८. इमं च णं विजए तक्करे रायगिहस्स नगरस्स बहूनि (अइगमणाणि य निग्गमणाणि य ? ) वाराणि य अववाराणि य तहेव जाव सुन्नघराणि य आभोएमाणे मग्गेमाणे गवेसमाणे जेणेव देवदिन्ने दारए तेणेव उवागच्छद्द, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारणं सव्वालंकारविभूसियं पासइ, पासित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणालंकारेषु मुछिए गढिए गिद्धे अज्झोववणे पंचयं दासचेदयं पमत्तं पासद, पासिता दिसालोयं करेड करेता देवदिन्न दारणं गेues, गेण्हित्ता कक्खंसि अल्लियावेइ, अल्लियावेत्ता उत्तरिज्जेणं पिइ, पित्ता सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं रायगिहस्स नगरस्स अवद्दारेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव जिण्णुज्जाणे जेणेव भग्यकूबरतेगेव उवागच्छछ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं वारयं जीविधाओ ववरोवे, ववरोवेत्ता आभरणालंकारं गेण्हइ, गेण्हित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरं निष्पाणं निच्चेद्वं जीवविष्यजढं भगकूपए पक्लिव, पक्खिवित्ता जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मालुवाकच्छवं अणुष्पविसर, अणुप्यविसित्ता निच्चले निष्फदे तुसिणी दिवसं खवेमाणे चिट्ठइ ।। देवदिन्नस्स गवसणा-पदं २९. तए णं से पंचए दासचेहए तो महत्तंतरस्स जेणेव देवदिन्ने दारए ठविए तेणेव उवागच्छा, उपागच्छत्ता देवदिन्नं दारणं तसि ठाणसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे (वितयमाणे?) देवदिन्नस्स दारगस्त ९८ Jain Education International नायाधम्मकहाओ देवदत्त का क्रीड़ा पद २५. दास पुत्र पन्थक बालक देवदत्त की सेवा में नियुक्त हुआ। वह बालक देवदत्त को गोद में लेता। गोद में लेकर बहुत सारे बालक-बालिकाओं, किशोर-किशोरियों और कुमार कुमारियोग के साथ उनसे संपरिवृत हो, क्रीड़ा करता । २६. एक दिन उस भद्रा सार्थवाही ने बालक देवदत्त को स्नान, बलिकर्म और कौतुक मंगल रूप प्रायश्चित करा उसे सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित किया, विभूषित कर दासपुत्र पथक के हाथ में सौंपा। २७. उस दासपुत्र पन्थक ने भद्रा सार्थवाही के हाथ से बालक देवदत्त को अपनी गोद में लिया, गोद में लेकर अपने घर से बाहर निकला। बहुत सारे बालक-बालिकाओं, किशोर-किशोरियों और कुमार कुमारियों के साथ, उनसे संपरिवृत हो, जहां राजमार्ग था वहां आया, वहां आकर बालक देवदत्त को एकान्त में बिठा दिया। बिठाकर स्वयं बहुत सारे बालक-बालिकाओं यावत् कुमारियों के साथ, उनसे संपरिवृत हो, खेलने में मस्त हो गया। देवदत्त का अपहरण - पद २८. विजय तस्कर - राजगृह नगर के बहुत सारे ( प्रवेश मार्गों, निष्क्रमण मार्गों ?) दरवाजों, पार्श्वद्वारों और वैसे ही, यावत् सूने घरों को देखता हुआ उनकी मार्गणा और गवेषणा करता हुआ, जहां बालक देवदत्त था वहां आया। वहां आकर सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित बालक देवदत्त को देखा। देखकर बालक देवदत्त के आभरण और अलंकारों में मूर्च्छित ग्रथित, गृद्ध और अध्युपपन्न हो गया। उसने देखा दासपुत्र पन्धक (शिशुओं के साथ) खेलने में मस्त है। यह देख उसने इधर-उधर अवलोकन किया। अवलोकन कर बालक देवदत्त को उठाया, उठाकर बगल में दबाया। दबाकर उत्तरीय से ढका । ढककर शीघ्र त्वरित चपल और उतावलेपन से राजगृह नगर के पार्श्वद्वार से बाहर निकला। बाहर निकलकर जहां पुराना उद्यान था, जहां भग्नकूप था, वहां आया, वहां आकर बालक देवदत्त को मार डाला। मारकर उसके आभरण और अलंकार ले लिए। लेकर बालक देवदत्त के निष्प्राण निश्चेष्ट और निर्जीव शरीर को भन्नकूप में डाल दिया। डालकर स्वयं जहां मालुकाकक्ष था, वहां आया। आकर मालुकाकक्ष में प्रविष्ट हुआ। वहां प्रविष्ट हो, निश्चत, निःस्यन्द और मौन हो, दिन व्यतीत करता हुआ स्थित हो गया। देवदत्त का गवेषणा पद २९. इस घटना के मुहूर्त भर पश्चात् दासपुत्र पन्थक, जहां बालक देवदत्त को बिठाया था, वहां आया। वहां आकर उस स्थान पर बालक देवदरा को नहीं देखा। तब वह रोता, कलपता ( और विलपता?) हुआ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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