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प्रथम अध्ययन : टिप्पण ५७-६७
मान देखते ही प्रणाम करना । सत्कार -- फल, वस्त्र आदि प्रदान करना । सम्मान उचित प्रतिपत्ति, अभ्युत्थान आदि --
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सूत्र २९
५८. विमान भवन (विमाण भवण)
अर्हत अथवा चक्रवर्ती के गर्भ में आने पर उनकी माता जिन १४ महास्वप्नों को देखती है उनमें १२वां स्वप्न है- विमान भवन । यह वैकल्पिक है, जब अर्हत या चक्रवर्ती का जीव स्वर्ग से आकर उत्पन्न होता है तब उसकी मां विमान का स्वप्न देखती है और जब वह नरक से आता है तब उसकी मां भवन का स्वप्न देखती है।
५९. भावितात्मा अणगार (अणगारे वा भावियप्पा )
भावियप्पा अणगार का विशेषण है। इसका अर्थ है--अध्यात्म से जिसकी आत्मा भावित-वासित या संस्कारित हो गई है वह अणगार । अगस्त्यसिंह स्थविर के अनुसार ज्ञान, दर्शन, चारित्र और विविध प्रकार की अनित्य आदि भावनाओं से जिसकी आत्मा भावित हो चुकी है उसे भावितात्मा कहा जाता है।
ऋषिभाषित में आत्मा को भावित कैसे किया जाए इसका बहुत सुन्दर चित्र प्रस्तुत हुआ है। '
सूत्र ३१
६०. स्वप्न शास्त्र में (सुमिणसत्यसि )
अष्टांगनिमित्त में स्वप्न विद्या का आठवां स्थान है। सूत्र २९ और ३१ में स्वप्न विज्ञान की मौलिक सामग्री उपलब्ध है।
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सूत्र ३३
६१. दोहद (दोहले )
दोहद का अर्थ है--गर्भवती स्त्री के मन में किसी पदार्थ विशेष को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा--लालसा । ४
गर्भवती स्त्रियों के मन में उत्पन्न प्रशस्त और अप्रशस्त दोहद भावी शिशु की सुभगता और दुर्भगता का सूचक है।
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६२. जब आकाश . बरसने को हो (अब्भुग्गएसु. अब्भुट्ठिएस) इन शब्दों से बादल की क्रमभावी पर्यायों का बोध होता हैअभ्युद्गत- अंकुर रूप में उत्पन्न बादल ।
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१. वही ---अर्चिता: - चर्चिताश्चन्दनादिना वन्दिताः सद्गुणोत्कीर्तनेन पूजिता:पुष्पैमनिताः दृष्टिप्रणागतः सरकारिताः फलवस्त्रादिदानतः सम्मानिता:तथाविधया प्रतिपत्तया ।
२. दशकालिक अगस्त्य चूर्णि पृ. २५-- सम्मदंसणेण बहुविपि तवोजोगेहि अणिच्चयादि भावणाहि य भावितप्पा ।
३. इसिभासियाई अध्ययन ३५
४. अभिधान चिन्तामणि ३ / २०५
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अभ्युद्यत विस्तार पाते हुए बादल ।
अभ्युन्नत - आकाश में छाए हुए, ऊपर उठे हुए बादल। अभ्युत्थित बरसने को उद्यत बादल।
६३. लाल दुपहरिया ( रत्तबन्धुजीवग )
नायाधम्मकहाओ
दुपहरिया फूल पांच वर्ण का होता है। यहां रक्त विशेषण दिया
गया है।
६४. सम्पूर्ण ऋद्धि समुदय (सव्विदीए ....सव्वसमुदाए) ऋऋद्धि युति आदि शब्द अर्थ वैशिष्ट्य के वाहक है-ऋद्धि--छत्र आदि राजचिह्न ।
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द्युति-- शारीरिक और आभरण जनित कान्ति। इसका संस्कृत रूपान्तर युक्ति हो तो उसका अर्थ है--इष्ट वस्तु की उचित संघटना | बल-सेना समुदय पौरजनों आदि का सम्मिलन !"
राजमार्गों (सिघांडग
६५. दोराहों महापहपहेसु) सिंघाडग, लिंग आदि शब्द विशिष्ट मार्ग के बोधक हैंसिंघाडग-दोराहा । शृंगाटक का अर्थ है जलज बीज, फल विशेष । उसकी आकृति वाले पथ से युक्त स्थान। यह दो कोणों से आकर मिलने वाले मार्गों से ही सम्भव है।
तिग-तिराहा चच्चर--चौक
महापह राजमार्ग
चउक्क -- चौराहा चउम्मुह-- चतुर्मुख देवकुल पह-- सामान्य मार्ग |
सूत्र ४४ ६६. मन के अन्तराल में छिपा हुआ दुःख (मणोमाणसियं दुक्खं ) वह दुःख, जो भीतर में ही भोगा जाता है, वाणी से व्यक्त नही किया जाता।
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सूत्र ५३
६७. महर्द्धिक ....... महासुख सम्पन्न है (महिड्डिए ..... महासोक्खे) अभय के पूर्व सांगतिक देव के ये सात विशेषण हैं-१. महिड्दिए -- महर्द्धिक - महान ऋद्धि सम्पन्न |
यहां ऋद्धि से तात्पर्य है- विमान परिवार आदि की प्रचुर सम्पदा ।
२. महज्जुइए - - महद्युतिक, शरीर सम्पदा और आभरण ति से दीप्तिमान
५. ज्ञातावृत्ति पत्र २८
६. वही-बन्धुजीव हि पंचवर्ग भवतीति रक्तत्वेन विशिष्यते। ७. वही, पत्र ३०
८. वही संघाइ जलजबीज फलविशेषः तदाकृतिपययुक्तं स्थानं सिंमाटकं, त्रिपययुक्तं स्थानं त्रिकं चतुष्यदुक्तं चतु त्रिपथमेदि चत्वर चतुर्मुख देवकुलादिमहापयो राजमार्गः पयः पयमात्रम्।
९. ज्ञातावृत्ति, पत्र- ३७
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