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________________ ७१. एवं जाव अणंतपदेसिए। (श. २५।१८३) ७०. त्रिण बे इक नभ मांहि, चिहुं प्रदेशिको खंध रह्या। योज द्वापरजुम्म ताहि, कलि प्रदेश अवगाढ । ७१. *एवं जावत जाणवं रे, अनंत प्रदेशिक खंध । इक वचने ए आखियो, हिवै बहुवचन प्रबंध ।। ७२. बहु वच प्रभु ! परमाणुआ रे, स्यूं कडजुम्म प्रदेश । अवगाढक ह छै तिके ? इत्यादिक पूछेस ।। ७३. जिन कहै ओघ सामान्य थी रे, कडजम्म गगन प्रदेश । अवगाढक है छै तिके, नहीं है त्रिण पद शेष ।। ७२. परमाणपोग्गला गं भंते ! कि कडजुम्मपदेसोगाढा--- ७३. गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढा, नो तेयोगपदेसोगाढा, नो दावरजुम्मपदेसोगाढा, नो कलियोगपदेसोगाढा, सोरठा ७४. ओघ थकी परमाणु, सकल लोक व्यापक थकी। सकल लोक नं जाण, प्रदेश असंखपणां थकी ।। ७५. अवस्थित थी फेर, नभ प्रदेश सहु लोक नां । चिहुं अपहरवै हेर, च्यार ईज रहै शेष तसु ।। ७६. *विधान ते भेदे करी रे, धुर त्रिण पद नहिं होय । इक कलियोग प्रदेश नं, अवगाढा कै सोय ।। ७४,७५. तत्रौषतः परमाणवः कृतयुग्मप्रदेशावगाढा एव भवन्ति सकललोकव्यापकत्वात्तेषां, सकललोकप्रदेशानां चासङ्ख्यातत्वादवस्थितत्वाच्च चतुरग्रतेति, (वृ. ८८३) ७६. विहाणादेसेणं नो कडजुम्मपदेसोगाढा, नो ते योगपदेसोगाढा, नो दावर जुम्मपदेसोगाढा. कलियोगपदेसोगाढा । (श. २५।१८४) बा...-विधानतस्तु कल्योजः प्रदेशावगाढा: सर्वेषामेकैकप्रदेशावगाढत्वादिति, (व. प. ८८ ) ७७. दुप्पदेसिया णं-पुच्छा। वा०-विधान ते भेद थकी एक-एक प्रदेश गिणवा थकी कलियोग प्रदेश अवगाढा हुवै सर्व नै एक-एक प्रदेश अवगाढपणां थकी। ७७. बह वचने दुप्रदेशिया रे, स्यं कडजुम्म प्रदेश। अवगाढा है छै तिके ? इत्यादिक पूछेस ।। ७८. जिन कहै ओघ सामान्य थी रे, नभ कडजुम्म प्रदेश। अवगाढाज ह तिके, शेष तीन न कहेस ।। वा०-द्विपदेशिक खंध द्विप्रदेश अवगाढा वलि सामान्य थकी च्यार ईज शेष रहै, पूर्वे कही ते युक्ति थकी। ७९. विधान ते भेदे करी रे, जे कडजुम्म प्रदेश । अवगाढा नहि है तिके, योज ओगाढ न लेश ।। ८०. द्वापरयुग्म प्रदेश ने रे, अवगाढा पिण होय । फून कलियोग प्रदेश में, अवगाढा पिण जोय ।। वा०-जे द्विप्रदेशिक खंध दोय आकाश प्रदेश में रह्या ते आकाशास्तिकाय नां द्वापरयुग्मा हुवै अनै द्विप्रदेशिक खंध एक आकाश प्रदेश में रह्या ते कल्योजा हुवै। ८१. बह वच तीन प्रदेशियो रे, स्यं कडजुम्म प्रदेश । अवगाढा है छै तिके ? इत्यादिक पूछस ।। ८२. जिन कहै ओघ सामान्य थी रे, कडजुम्म नभ अवगाह । नहीं व्योज द्वापर नहीं, कलि अवगाहै नांह ।। ८३. विधान भेद करी तिके रे, इक-इक गिणवै जेह । कडजम्म गगन प्रदेश ने, अवगाहै नहिं तेह ।। *लय : सुण बाई सुवटी कहै ए कोई इचरज बात ८. भगवती जोड़ ७८. गोयमा ! ओघादेसेणं कडजम्मपदेसोगाढा, नो तेयोगपदेसोगाढा, नो दावरजम्मपदेसोगाढा, नो कलियोगपदेसोगाढा, __वा० ---द्विप्रदेशावगाढास्तु सामान्यतश्चतुरग्रा एवोक्तयुक्तितः, (बृ. प. ८८३) ७९ विहाणादेसेण नो कडजुम्मपदेसोगाढा, नो तेयोग पदेसोगाढा, ८०, दावरजुम्मपदेसोगाढा वि, कलियोगपदेसोगाढा वि । (श. २५।१८५) वा० -विधानतस्तु द्विप्रदेशिकाः, ये द्विप्रदेशावगाढास्ते द्वापरयुग्माः ये त्वेकप्रदेशावगाढास्ते कल्योजाः। (वृ. प. ८८३) ८१. तिप्पदेसिया णं- पुच्छा। ५२. गोयमा ! ओघादेसेणं कडजम्मपदेसोगाढा, नो तेयोगपदेसोगाढा, नो दावरजुम्मपदेसोगाढा, नो कलियोगपदेसोगाढा, ८३. विहाणादेसेणं नो कडजुम्मपदेसोगाढा. Jain Education Intenational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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