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५४. एवं असंखेज्जपदेसिया वि, अणंतपदेसिया वि ।
(श. २५।१७९)
५४. एवं असख प्रदेशिया रे, अनंत प्रदेशिया एम ।
बहु वचने ए आखिया, प्रदेश थी धर प्रेम ।। क्षेत्र की अपेक्षा से पुद्गल की पृच्छा कृतयुग्म आदि के संदर्भ में ५५. इक वच परमाणु प्रभु ! रे, स्यं कडजुम्म प्रदेश ।
अवगाही में ते रह्यो ? इत्यादिक पूछेस ।। ५६. जिन कहै धुर पद त्रिहुं नहीं रे, इक कलियोग प्रदेश ।
अवगाही ने जे रा, एकपणां थी एस ।।
५५. परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं कडजुम्मपदेसोगाढे
पुच्छा । ५६. गोयमा ! नो कडजुम्मपदेसोगाढे, नो तेयोगपदेसोगाढे नो दावरजुम्मपदेसोगाढे, कलियोगपदेसोगाढे ।
(श. २५।१८०) ५७. दुपदेसिए णं-पुच्छा ।।
गोयमा ! नो कडजुम्मपदेसोगाढे, नो तेयोगपदेसोगाढे, ५८. सिय दावरजुम्मपदेसोगाढे, सिय व लियोगपदेसोगाढे ।
(श. २५।१८१)
५९-६१ द्विप्रदेशिकस्तु द्वापरयुग्मप्रदेशावगाढो वा कल्योजः प्रदेशावगाढो वा स्यात् परिणामविशेषात्, एवमन्यदपि सूत्र नेयम् ।
(वृ. प. ८८३)
५७. इक वच द्विप्रदेशिक पृच्छा रे? जिन कहै कडजुम्म ताह ।
प्रदेश अवगाहै नहीं, त्र्योज नहीं अवगाह ।। ५८. द्वापरयुग्म प्रदेश नं रे, कदाचित अवगाह । कदा कल्योज प्रदेश पिण, अवगाहै छै ताह ।।
सोरठा ५९. द्विप्रदेशिको खंध, बे नभ प्रदेश में रह्या ।
तब द्वापरजुम्म खंध, प्रदेश प्रति अवगाढ हुवै ।। ६०. द्विप्रदेशिक खंध, इक नभ प्रदेश में रह्या । ___ तब कलियोगज संध, प्रदेश प्रति अवगाढ है। ६१. ए परिणाम विशेख, तेह थकीज हुवै अछै ।
अन्यत्र पिण इम देख, न्याय विचारी लीजिये ।। ६२.*इक वच तीन प्रदेशिको रे, प्रश्न कियो फुन ताह ।
जिन भाखै कृतयुग्म नभ, प्रदेश नहिं अवगाह ।। ६३. कदा तेयोग प्रदेश में रे, कदा द्वापरजुम्म जेह । कदा कल्योज आकाश नां, प्रदेश अवगाहेह ।।
सोरठा ६४. तीन प्रदेशिक खंध, त्रिण नभ प्रदेश में रह्या ।
तब तेओग प्रबंध, प्रदेश प्रति अवागाढ है।। ६५. तीन प्रदेशिक खंध, बे नभ प्रदेश में रह्या ।
तब द्वापुरजुम्म संध, प्रदेश प्रति अवगाढ है ।। ६६. तीन प्रदेशिक खंध, इक नभ प्रदेश में रह्या ।
तब कलियोगज संध, प्रदेश प्रति अवगाढ ह। ६७. *इक वच च्यार प्रदेशिको रे, स्यूं कडजुम्म प्रदेश ।
अवगाढक कै छै जिको? इत्यादिक पूछेस ।। ६८. जिन भाखै कडजुम्म कदा रे, प्रदेश ओगाढेह ।
जाव कदा कलियोग लग, प्रदेश अवगाहेह ।।
६२. तिपदेसिए णं-पुच्छा।
गोयमा ! नो कडजुम्मपदेसोगाढे , ६३. सिय तेयोगपदेसोगाढे सिय दावरजुम्मपदेसोगाढे,
सिय कलियोगपदेसोगाढे। (श. २५।१८२)
६७. चउप्पदेसिए णं-पुच्छा ।
६८. गोयमा ! सिय कडजुम्मपदेसोगाढे जाव सिय
कलियोगपदेसोगाढे ।
सोरठा ६९. च्यार प्रदेशिक खंध, चिहं नभ प्रदेश में रह्या।
तब कडजुम्म प्रबंध, नभ प्रदेश अवगाढ़ है। *लय : सुण बाई सुवटी कहे ए कोई चरज बात
श. २५, उ०४, ०१
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