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________________ एवं लोकसंबंधिनी पिण ४, अलोक संबंधिनी पिण ४ कहिवी। तिहां सामान्य श्रेणी नों प्रश्न कहै छ ४. जिन कहै संख्याती नहीं, असंख्यात नहिं कोय। श्रेणि अनंती द्रव्य थी, सामान्य थी ए होय ।। वा...सामान्य आकाशास्तिकाय नी श्रेणि नां वंछवा थकी एतले सामान्य कहि लोक-अलोक बिहुं नी श्रेणि वंछी ते माट अनंती कहिये । दक्षिणोत्तरायताः ३ ऊर्वाधआयताः ४, एवं लोकसम्बन्धिन्योऽलोकसम्बन्धिन्यश्चेति, तत्र सामान्ये श्रेणीप्रश्ने (व. प. ८६५) ४. गोयमा ! नो संखेज्जाओ, नो असंखेज्जाओ, अणंताओ। (श. २५१७३) वा.---'अणंताओ' त्ति सामान्याकाशास्तिकायस्य श्रेणीनां विवक्षितत्वादनन्तास्ता:, (वृ. प. ८६५) ५. पाईणपडीणायताओ णं भंते ! सेढीओ दव्वट्ठयाए कि संखेज्जाओ? एवं चेव । ६. एवं दाहिणुत्तरायताओ वि। एवं उड्ढमहायताओ वि। (श. २५७५) ५. पूर्व पश्चिम हे प्रभु ! आयत लांबी श्रेण । __ स्यू संख्याती आदि जे? एवं चेव कहेण ।। ६. दक्षिण उत्तर आयत पिण, इमहिज श्रेणि अनंत । ऊंची नीची आयत पिण, श्रेणि अनंती मंत ।। वा०-इहां च्यार प्रश्नोत्तर कह्या । प्रथम समुच्चय सामान्य थी लोकालोक आकाशास्तिकाय नी श्रेणि द्रव्य थकी अनंती कही १। सामान्य थकी लोकालोक नीं पूर्व पश्चिमे लांबी श्रेणि द्रव्य थकी अनंती कही २ । सामान्य थकी लोकालोक नीं दक्षिण उत्तरे लांबी श्रेणि द्रव्य थकी अनंती कही ३। सामान्य थकी लोकालोक नी ऊंची नीची लांबी श्रेणि द्रव्य थकी अनंती कही ४ । हिवै ए च्यार प्रश्नोत्तर लोकाकाश नीं श्रेणि आश्री द्रव्यार्थपणे करी कहिय छ *श्रेणि विस्तार सुणों जन श्रोता!(ध्रुपद) ७. लोकाकाश नी श्रेणी प्रभुजी! द्रव्य अर्थ करितेहो जी। स्यूं संख्याती के असंख्याती छ, अथवा अनंती एहो जी? ८. श्री जिन भाखै नहि संख्याती, असंख्याती कहिवायो जी। वलि द्रव्य थकी श्रेणी नहि छै अनंती, लोक असंख रै न्यायो जी।। ९ पूर्व पश्चिम लांबी प्रभुजी ! लोकाकाश नी श्रेणो जी । द्रव्य अर्थ करि स्यूं संख्याती, एवं चेव असंख्याती कहेणी जी।। १०. इमहिज दक्षिण उत्तर लांबी, ऊंची नीची इम लंबी जी। असंख्याती श्रेणी द्रव्य थकी छै, ए जिन वाणी अदंभी जी ।। हिवै ए च्यार प्रश्नोत्तर अलोक आश्री द्रव्याथिकपणे करि कहियै छ - ११. अलोकाकाश नी श्रेणि प्रभुजी ! द्रव्य अर्थ करि तेही जी। स्य संख्याती के असंख्याती छै, अथवा अनंती जेही जी? १२. श्री जिन भाखै नहीं संख्याती, असंख्याती नहिं होई जी। द्रव्य अर्थ करि श्रेणि अनंती, अनंत अलोक सूजोई जी ।। १३. पूर्व पश्चिम लांबी पिण इम, लांबी दक्षिण उत्तर एमो जी। इमहिज ऊंची नीची लांबी, श्रेणि अनंती तेमो जी ।। हिवै सामान्य थी ए ४ प्रदेशार्थिकपणे करी कहै छै --- १४. प्रदेश अर्थ करि श्रेणि प्रभुजी ! स्यं संख्याती कहिये जी ? द्रव्य अर्थ करिने जिम आखी, तिमज प्रदेश थी लहिये जो ।। १५. जाव ऊंची नीची आयत लांबी, प्रश्न च्यारूंइ मांही जी। श्रेणि अनंती प्रदेश थकी छै, पिण संख असंख न थाई जी।। ७. लोगागाससेढीओ णं भंते ! दब्वट्ठयाए कि संखे___ ज्जाओ? असंखेज्जाओ? अणंताओ? ८. गोयमा ! नो संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, नो ___ अणंताओ। (श. २५७५) ९. पाईणपडीणायताओ णं भंते ! लोगागाससेढीओ दव्वट्ठयाए कि संखेज्जाओ? एवं चेव । १०. एवं दाहिणुत्तरायताओ वि। एवं उड्ढमहायताओ (श. २५७६) वि। ११. अलोगागाससेढीओ णं भंते ! दव्वट्ठयाए कि संखेज्जाओ ? असंखेज्जाओ? अणंताओ? १२. गोयमा ! नो संखेज्जाओ, नो असंखेज्जाओ, अणंताओ। १३. एवं पाईणपडीणायताओ वि । एवं दाहिणत्तरायताओ वि । एवं उड्ढमहायताओ वि । (श. २५७७) १४. सेढीओ णं भंते ! पएसट्टयाए कि संखेज्जाओ? जहा दव्वट्ठयाए तहा पएसट्ठयाए वि १५. जाव उड्ढमहायताओ वि । सव्वाओ अणंताओ। (श. २५७८) *लय : चतुर विचार करी में देखो। श० २५, उ०३ ढा०४३८ ३७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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