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देखो ।
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२. बुकस उत्तर गुण नै दोष लगाये, दस पचखाणां में पंच महाव्रत मूल थी नहीं खंड, भगवंत भाख्यो लेखो || ३. पटिसेवणाकुसील नेवठो तीजो मूल उत्तर गुण दोष लगावे तीनांइ में लेश्या तीन-तीन कही छै, दोष उसुभ जोग आश्री थावे ॥ ४. कषायकुसील अपडिसेवी को छं, तिण रो पेटो छ भारी । दोष नहीं लगावै ते च्यार गुणठाणा, सुभ जोग लेश्या सुखकारी ॥ ५. छठो गुणठाणी पिण अडियो ते सुभ जोग आधी जाणो । आश्री असुभ जोग रो कथन न दीस, कड़ी म करो ताणो ॥ ६. आयारंभी परारंभी तदुभयारंभी, असुभ जोग आश्री कहीजै ।। प्रमादी साधू ने प्रभु को छे, स्थाय होया में धरीजं ॥ कह्यो ७. बले प्रमादी साधू छठे गुणठाणे, सुभ जोग आश्री साचो । अणारंभी कायों अरिहंते, रह्यो ग्यान ध्यान में
उद्देशो जोय
राचो ॥ लोजे ।
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८. ए भगोती सूत्र पहले सत बंधे, पहलो सुभ जोग आश्री दोष न लागे, चोथे ९. चोथे नेयठे लेश्या छह कही छे, तिण ने
नेयठे न्याय
मेलीजे ॥
वले को अपडिसेवी ।
१०. के
वले च्यार ग्यान कह्या तिण मांहे. तिण रो न्याय हिरदा में वेवी ॥ खधारी कह पायकुसील नेवठो, अपडिसेवी कह्यो ताहि । ददमस्थ भगवंत देव न चूकै च्यार ग्यान मांहि || ११. इम अनेक कपट
त्यां
कर-कर लोकां नै, झूठी बातां
धरावं ।
जाये ||
लागो ।
प्रश्न पूछयां जाव जयातय नावे, भाषा बोलो बोली फिर १२. च्यार ग्यान थकां भगवंत नहीं चूके, किंचत मात्र पाप न सूत्र नो नाम ले-ले झूठ बोले, भेखधारयां बगायो ठागो || १३. कदे आचारंग से नाम से ने कहे से, किंचत मात्र न सेव्यो पाप ।
कुपात्र ने बचायां धर्म कहे छे, स्वार खोटी सरधा री थाप ॥ १४. प्रमाद ने व्रत साधू आहार कीया में सर से भेषधारी ।
साधु नदी उतरीयां में पाप कहै छे, प्रभु सूधी पूगा दुखकारी ॥ १५. भगवंत आहार कीयो छदमस्थपणां में, केवली थका दिन कीधो आहार | बजे नदीयां अनेक उतरीया जेणां सूं, तिनमें पाप कह भेखधार ॥ १६. ये कहता भगवंत पाप न सेव्यो छदमस्थपणां रे काल । आहार नदी में पाप कह नै, कांय दीयो शिर आल ।। १७. तिल बताया नै लेश्या सीखाई, वले कह्या नीपनां तिल सात । तिने कां थकां ति सावज सेव्यो हृदमस्थपणां री छे बात ।। १८. असंयती गोसालो कुपातर तिण ने लबध फोड़ी ने बचायो ।
ते पिण छदमस्थपणां थी जाणो, पिण केवलीयां नहीं सरायो || १९. पाप नहीं जागो तिहां पाप बताओ, पाप लागो तिहां कहो नांही । इसड़ी अंधी सरधा मत राखो विचार करो घट मांही ॥ २०. नच्चा कहतां जाणी प्रभु पाप न करता, करावता पिण नांही । पाप करें तिनं भलो न जाये को आचारंग मांही ॥ २१. ए तो आचार छे सर्व साधा से, भगवंत से पिण इम जाणो । किंचित मात्र पाप न लागो कह ने, कांय बूडो कर-कर ताणो ॥ २२. दमस्थ चूके छे सात प्रकारे, कह्यो ठाणांग सातमे ठाणे ।
लब्धि फोरणी भगोती में वरजी, तिण रो न्याय समदिष्टी विद्वा ॥
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नियंठा नीं जोड़, डा० २
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