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________________ ६२. उक्कोसेणं अणंतपदेसिए असंखेज्जपदेसोगाढे। ६२. उत्कृष्ट अनंतप्रदेशिको, जे आकाश प्रदेश । असंख्यात अवगाढ छ, एह प्रतर विशेष ।। घन परिमंडल ६३. घन परिमंडल जे तिहां, जघन्य थकी कहिवाह । तेह चालीस प्रदेश नों, नभ चालीस ओगाह ।। घन परिमंडल ४० प्रदेश नी स्थापना ६३. तत्थ णं जे से घणपरिमंडले से जहण्णेणं चत्तालीसइ पदेसिए चत्तालीसइपदेसोगाढे पण्णत्ते, चूडी आकार धन परिमंडले प्रदेश ४० नीं स्थापना हा ६४. उत्कृष्ट अनंत प्रदेशिको, ते आकाश प्रदेश। असंख्यात अवगाढ छ, घन परिमंडल एस ।। वा० ---इहाँ परिमंडल नां ओज अनै युग्म ए बे भेद न कह्या ते किण कारण -युग्म रूपपण करी एक रूपवान परिमंडल छै पिण ओज रूप नथी। ते माट ओज अनै युग्म ए बे भेद परिमंडल नां न किया। ६५. बे सौ तेपन नं देश ए, चिउं सौ छतीसमी ढाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' हरष विशाल ।। ६४. उक्कोसेणं अणंतपदेसिए असंखेज्जपदेसोगाढे पण्णत्ते । (श. २५।५५) वा.-इह ओजोयुग्मभेदी न स्तः, युग्मरूपत्वेनैकरूपत्वात्परिमण्डलस्येति, (वृ. प. ८६२) ढाल:४३७ १. अनन्तरं परिमण्डलं प्ररूपितम् , अथ परिमण्डलमेवादी कृत्वा संस्थानानि प्रकारान्तरेण प्ररूपयन्नाह--- (वृ. प. ८६२) १. अनंतरे जे आखियो, परिमंडल प्रति तेह । ___ अथ परिमंडल आदि जे, अन्य प्रकार कहेह ।। संस्थानों के कृतयुग्म आदि २. इक परिमंडल हे प्रभु ! दवट्ठयाए जेह । ___ द्रव्य अर्थ करिकै तसु, स्यूं कृतयुग्म कहेह? ३. के तेयोए त्र्योज छै, कै दाबरजुम्म होय । के कलिओगे है तिको? ए चिहुं प्रश्नज जोय ।। ४. जिन भाखै कृतयुग्म नहीं, तेओगे नहीं होय । द्वापरयुग्म नहीं तिको, कलिओगे है सोय।। २. परिमंडले णं भंते ! संठाणे दब्वट्ठयाए कि कडम्मे? ३. तेओए ? दावरजुम्मे ? कलिओए? ४. गोयमा ! नो कडजुम्मे, नो तेयोए, नो दावरजुम्मे, कलियोए। (श. २५१५६) ३० भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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