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________________ २८. प्रथम चरिम समय कडजुम्म जुम्म एकेंद्रिया भगवंत | किहां की ऊपजे से आवी ? जिन भाखं सुण संत ॥ वा०- पढग चरिम समय कहितां प्रथम ते विवक्षित संख्यानुभूति ने प्रथम समयवर्त्तीणां थकी अन चरम समया ते मरण समयवर्ती परिशाटस्था । एतले कृतयुग्मादि संख्या विशेष नों तो प्रथम समय अनं एकेंद्रिय नां भव नुं चरिम समय । इहां चरिम शब्दे मरण समय वांद्र्य ते मार्ट परभव नां आउखा नूं ए प्रथम समय जाणवं । इति प्रथम चरम समया तेहिज कृतयुग्म कृतयुग्म एकेंद्रिय हे भगवन ! किहां थकी ऊपजै ? २९. चरम उद्देश विषे जिम आख्यो, तिमहि कहियो सेवं भंते! स्वामी, अष्टमुद्दे ॥३५।१२।। ३०. पढम अचरिम समय कडजम्म विशेष रहोतं प्रतीत || कडम्म एकेंद्रिया भगवंत ! किहां थकी अपने छे आवी ? स्वाम कहै सुण संत || वा०-- प्रथम अचरिम समय कहितां प्रथम तिमहिज अचरिम समय तो एकेंद्रिय उत्पाद अपेक्षाये प्रथम समयवर्ती दहां विवक्षित चरमत्व निषेध न ते प्रथम समयवर्त्ती नै विषे विद्यमानपणां थकी । एतले इहां अचरिम शब्दे एकेंद्रिय ऊपजवानों प्रथम समय वांछ्यो ते एक नै चरमपणों न हुवै ते भणी प्रथम समय मैं अचरिम समय कह्यं । अने इहां अचरिम शब्दे छेहला समय विना अन्य सर्व समय नैं अचरिम कहै तो बीजे उद्देशे अवगाह्नादिक १० णाणत्ता कह्या । तेह समपणुं कह्यं ते न हुव ते भणी | अचरिम समय शब्दे इहां प्रथम एक समय जाणवूं । ते प्रथम अचरिम समय कृतयुग्म कृतयुग्म एकेंदिय हे भगवन ! किहां थकी ऊपजै ? ३१. प्रथम उद्देश विधे जिम आयो, तिमज विशेष रहीत। सेवं भंते! यावत विचरै, नवम उद्देश वदीत || ।।३५।१।६॥ ३२. चरम चरिम समय कउजुम्म कजुम्म एकेंद्रिया भगवंत ! कहां की ऊपजे से आयो ? जिन भाखे सुण संत || Jain Education International वा० - चरिम चरिम समय कहितां चरिमते विवक्षित संख्यानुभूति चरम समयवर्त्तीपणां थकी । अन चरम समय ते पूर्वोक्त स्वरूप ते परभव नुं चरम समयवर्त्ती इति । चरम-चरम समय कृतयुग्म कृतयुग्म एकेंद्रिय हे भगवन ! किहां थकी ऊपजै ? इत्यादि । " ३३. चोचे उद्देश विषे जिम आयो तिमहिज कहिवो एह सेवं भंते ! अर्थ अनोपम, दशम उद्देशक लेह ॥ ।।३५।१।१०।। २.म्म्मए गिदिया पं भते ! कओ उबवण्जंति ? वा०-- ' पढमचरमसमय कड जुम्मकडजुम्मएगिदिय' त्ति, प्रथमाश्च ते विवक्षितसङ्ख्यानुभूतेः प्रथमसमयवत्तित्वात् चरमसमयाश्च मरणसमयवत्तिनः परिशास्था इति प्रथमचरमसमयास्ते च ते कृतयुग्मकृतवेति विग्र (बृ. प. ९६९) २९. जहा रिस तहेब निरवसे सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति । ३०. परिजुम्मकडजुम्मए गिदिया णं भंते ! कओ उववज्जंति ? (३५/३५) (m. 22144) वा०—'पढमअचरमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिय' त्ति, प्रथमास्तथैव अचरमसमयास्त्वे केन्द्रियोत्पादापेक्षा प्रथमसमयवर्तिन इह विवक्षिताश्चरमत्वनिषेधस्य तेषु विद्यमानत्वात् अन्यथा हि द्वितीयो कोक्तानामवगाहनादीनां यदिह समत्वमुक्तं तन्न स्यात् (वृ. प. ९६९ ) ३१. जहा बीओ उद्देसओ' तहेव निरवसेसं । (श. ३५।३७ ) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ । (न. २५/३०) ३२. चरिमचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओ उववज्जंति ? २३. जहा उद्देओ सहेब निरवसे सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति । वा० 'चरमचरमसम्यक जुम्मनए गिदिय ति चरमाश्वते विवक्षितसानुभूतेश्वरमसमयवत्तित्वात् चरमसमयाश्च प्रागुक्तस्वरूपा इति चरमचरमसमयाः शेषं प्राग्वत् (बु. १.९६९) For Private & Personal Use Only (. १५०३९) (श. ३५/४० ) १. जोड़ में प्रथम उद्देशक विधे जिम आयो' के सामने जहा बीओ उद्देसओ पाठ की संगति नहीं बैठती । पर अंगसुत्ताणि में 'पढम उद्देसओ' पाठान्तर में रखा है। इसलिए यहां मूल का पाठ लिया गया है । श० ३५, उ० १, ढा० ४९२ ४११ www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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