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________________ ४७. जिन कहै इस निश् करी जी, म्है श्रेणि परूपी सात । ऋजुआयत यावत कही जी, अधचक्कवाल विख्यात || ४८. एक वक श्रेणि करी जी ऊपजतो अवधार दोष समय विग्रह करी जी, ऊपजे तेह तिवार॥ ४९. दोय व श्रेणी करी जी, ऊपजतो धको जीव । त्रिण समय विग्रह करि ऊपज जी, तिण अर्थेज कहीव || ५०. एम पज्जत्त बादर तिको जी, तेउ विषे पिण ताहि । पूर्व विधि उपजाविवो जी, समयक्षेत्र रे मांहि ॥ ५१. वायू वनस्पतिपर्णं जी, चउक्क भेद करि छाण । उपजाव्यो जिम अपपणे जी, तिम उपजावियो जाण || ५२. इम अपज्जत्त सूक्ष्म मही तणों जी, जेम गमो आख्यात | इम पज्जत सूक्ष्म महीनों अपि जी, कहियो छ अवदात || उपजाविवो जगीस | जी, कह्या आलावा चालीस || ५४. अधोलोक क्षेत्र नाहि ने जो, बाहिरला क्षेत्र विषेह | समुद्घात मारणांतिकी जी, कियो अंत समयेह ॥ ५५. इम बादर महो नैं विषे अपि जी, अपज्जत्त नैं अवधार । अथवा पर्याप्त जो कहिवो सर्व विचार ॥ ५६. इम अप चविध ने अपि जो, भणिवो सूक्ष्म तेककाय में जी, द्विविध नं तिमहीज। इमहीज || ॥ ५३. तिमज बीस स्थानक विषे जी, ए अपजत पज्जत्त पृथ्वी तणां ५७. पर्याप्त बलि समयक्षेत्र विषे , जाणवो जो तिको जो ५८. लोक क्षेत्र नादि में जो अपज्जत सूक्ष्म महीपण जो, ५९. हे प्रभुजी ! ते जीवड़ो जी, विग्रह करिनें ऊपजै जी ? ६०. दोय समय विग्रह करी जी बादर तेऊकाय । समुद्घात करि ताय ॥ बाहिरला क्षेत्र विषेह जोग्य ऊपजवा जेह ॥ किता समय नैं जाण । तब भाखे जगभाण ॥ वा विग्रह त्रिण समयेह । उपजै जंतू जेह ॥ अर्थ इत्पादिक ख्यात । वा च्यार समय विग्रह करी जी, ६१. प्रभु ! कि अर्चे आखिये जो जिम रत्नप्रभा नैं विषे कह्यं जी, तिम कहिवी श्रेणिज सात' ॥ ६२. इम यावत' अपज्जत प्रभुजी ! बादर तेजकाय । समयक्षेत्र विषे तिको जी, समुद्धात करि ताय ॥ ६३. लोक क्षेत्र नाड़ि ने जो बाहिर क्षेत्र विषेह | अपज्जत सूक्ष्म महीपणं जी, योग्य ऊपजवा जेह ॥ १. ढाल ४८६ गाथा ५७ से ६१ तक की जोड़ का संवादी पाठ अंगसुत्ताणि भाग २ में नहीं है । २. 'एवं जाव' यह पाठ अंगसुत्ताणि भाग २ में नहीं है । ३७० भगवती जोड़ Jain Education International ४७. एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेढीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - उज्जुयायता जाव अद्धचक्कवाला । ४८. एगओवंकाए सेढीए उववज्जमाणे दुसमदए विमा ४९. का दीए उमाने म बिग्महे जेवा से ते ५०. एवं पज्जत्तएसु वि बादरते उकाइएस वि वायव्वो । ५१. वाउक्काइय वणस्स इकाइयत्ताए चउक्कएणं भेदेणं जहा आउक्काइयत्ताए तहेव उववाएयव्वो । १२. एवं जहा अपामाय गमो भणिओ पत्तागमास वि एवं भाणि ५३. तब बसाए ठाणेसु उदवाएपम्बो (. २४/१७) ५४. अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए ? ५५. एवं बादरपुढविकाइयस्स वि अपज्जत्तगस्स पज्जत्तगस्स य भाणियध्वं । ५६. एवं आउक्काइयस्स चउब्विहस्स वि भाणियव्वं । मनाइयस्स दुहित एवं पेय (प्र. ३४०१८) ६२. अपज्जत्तावादरते उक्काइए णं भंते! समयखेत्ते समोहए, समोहणित्ता १२. जे एनोरतनामी वाहिले ते विकासा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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