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४६. तेहथी बेइंद्रिय जीव नों जो अपर्याप्तानों आम । उत्कृष्ट जोग छै जेहनों जी, ते असंख्यातगुणो ताम ॥ ४७. तेहषी तेइंद्रिय जीव नों जी, अपर्याप्ता न तेह।
उत्कृष्ट जोग छै जेहनों जी, ते असंख्यातगुणो लेह || ४८. तेही चरिद्रय जीव नों जी, अपर्याप्तानों एम। उत्कृष्ट जोग छ जेहनों जी ते असंख्यातगुणो तेम ॥ ४९. तेही असन्नी पंचिद्रिय तणों जी, अपर्याप्ता नों जाण । उत्कृष्ट जोग जेहनों जी ते असंख्यातगुणो पहिचाण ।। ५०. तेही सन्नी पंचिद्रिय वणों जी, अपर्याप्तानों जोय । उत्कृष्ट जोग छै जेहनों जी, ते असंख्यातगुणो सोय || ५१. तेहथी बेइंद्रिय तणों जी, पर्याप्ता नों पिछाण । उत्कृष्ट जोग छे जेहनों जी ते असंख्यातगुणो जाण ।। ५२. तेही इंद्रिय तणों जी पर्याप्त नो पेख ।
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उत्कृष्ट जोग छै जेहनों जी, ते असंख्यातगुणो लेख ।। ५३. तेही चरिदिय तणों जी पर्याप्ता न जाण । उत्कृष्ट जोग जेनों जी ते असंख्यातगुणो माण | ५४. तेहथी असन्नी पंचिद्रिय तणो जी, पर्याप्ता नों पाय । उत्कृष्ट जोग छै जेहनों जी, ते असंख्यातगुणो ताय ॥ ५५. तेही सन्नी पंचिद्रिय तणों जी, पर्याप्ता न विरंच । उत्कृष्ट जोग है जेहनों जी ते असंख्यातगुणो संच ॥
वा - इहां यद्यपि तेइंदिय पर्याप्ता नों उत्कृष्ट काय जोग अपेक्षया पर्याप्ता बेइंद्रियनों वलि सन्नी असन्नी पंचिद्रिय नों उत्कृष्ट काय जोग संख्यातगुणो हुवै, तेहनी काया संख्यात जोजन प्रमाण छं ते भणी । तथा पिण जोग नों चंचल वीर्य नों विवक्षितपणां थकी ते योग नां क्षयोपशम विशेषपणां थकी असंख्यात गुणपणां प्रतं विरुद्ध न थाये ।
अल्पकाय नै अल्प स्पंद ते अल्प वीर्य नों चंचलपणों हीज हुवं । अने महाकाय नैं महास्पंद हीज हुवै, एहवूं नियम नथी । तेनां विपर्यय नां देखवा थी । जिम हाथी नों शरीर मोटो ने सिंह नों शरीर छोटो, पिण शक्ति हाथी थकी सिंघ नीं अधिक प्रगट दीर्स छँ 1
दूहा
५६. जोग तां अधिकार थी, जोग तणोंज विचार। कहिये छे ते सांभलो जिन वच महा जयकार २४ दंडकों में समयोगी विषमयोगी
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५७. *हे भगवंत ! बे नेरइया जी प्रथम समय उत्पन्न । नारक क्षेत्र विषे रह्या जी, धुर समय प्राप्ततया जन्न ||
सोरठा
५८. ते विहं नी उत्पत्त, विग्रह गति करिके थई । अथवा दोनं तत्थ सम गति करिकं उपनां ॥
* लय : पंथीड़ो बोलं अमृत वाणी
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४६. १९. बेंदियस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए असंखेज्जगुणे
४७. २०. एवं तेंदियस्स वि
४८-५०. एवं जाव २३. सणिपंचिदियस्स अपज्जत्तगस्स उस्कोसए जोए असंज्
५१. २४. बेंदियस्स असगुणे
५२. २५. एवं तेइं दियस्स वि,
पज्जत्तगस्स
बोए
५३-५५. एवं जाव २८. सणिपंचिदियस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए भज्जगुणे । (श. २५/३ )
५६. योगाधिकारादेवेदमाह-
उक्कोसए जोए
वा. - इह न यद्यपि पर्याप्त
कायापेक्षया पर्याप्तकानां द्वीन्द्रियाणां सञ्ज्ञिनामपञ्चेन्द्रियाणामुत्कृष्टः काय: सातगुणो भवति सङ्ख्यातयोजनमाचत्यात् तथामीह योगस्य परिस्पन्दस्य वित्तस्य च क्षयोपशमविशेषसामर्थ्याद् यथोक्तमसङ्ख्यातगुणत्वं न विरुध्यते
न ह्यल्पकायस्याल्प एव स्पन्दो भवति महाकायस्य वा महानेव, स्वस्ययेनापि तस्य दर्शनादिति
( वृ. प. ८५३,८५४)
(बृ. प. ५४)
५७. दो भंते ! नेरइया पढमसमयोववन्नगा
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५८. उपपत्तिश्चेह नरकक्षेत्र प्राप्तिः सा च द्वयोरपि विग्रहेण ऋजुगत्या वा (यू.प. ५४)
श० २५, उ० १, ढा० ४३३ ७
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