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________________ प्रशस्त काय विनय हुवै तो जिन आज्ञा सहित गमनादिक करें तो ते पिण मिल, ते कहिये छे जे साधु ने वंदना ने अर्थे अथवा बहिरावा ने अर्थों उपयोग सहित - जयणा सहित गमनादिक करें, तिहां जिन आज्ञा छ । जे साधु ने वहिरावा जयणा सहित पगला भरिया ते गमन १ । तथा वंदना, बहिरावा ने अर्थ ऊभो रहिवुं २ | इम वंदना बहिरावा हेठो बेसवुं ३ । इम वंदना ने अर्थ अधो थइ पगां में मस्तक देह कहेम्हारे बहिरो ४ इमहिन साधु ने बांदवा तथा बहिरावा डेली प्रमुख उल्लंघयं । इमहिन साधु ने वंदना तथा बहिराचा विस्तीर्ण भूमिका बाड प्रमुख विशेष उप ६ इमहिज साधु ने बंदवा तथा बहिरावा सर्व इंद्रिय व्यापार नां प्रयोग नीं योजना करवी ए सातूंइ उपयोग सहित जयणा सहित इम इत्यादिक जिन आज्ञा सहित निरवद्य काया नां जोग प्रवर्त्तावं, ते पिण प्रशस्त कार्याविनय जाण, पिण ग्रहस्थ व्यापारादिक सावद्य कार्य नैं अर्थे जयणा सहित जे काय नां जोग प्रवर्त्तावं त्यां तीर्थंकर नीं आज्ञा नथी । ते प्रशस्त कायविनय न कहिये, जे आगलो निरवद्य कार्य वंदना करिवा रूप तथा साधु नैं दान देवादिक नों छे तेहने अर्थे जयणा सूं गमनादिक करें तथा भो बेस बहिरा, बैठो हवं ते कमी व बहिरा, ए गमनादिक निरवद्य है तेहने साधु चाल, ऊभो था तथा बैस इम न कहै संभोग नहीं ते मार्ट पिण गमनादिक कार्य नी आज्ञा देवं जे साहमो असणादिक पडियो ते बहिरावे । तथा रसतादिक बतावै इण रसत होय बहिरावे तो अटकाव नहीं, उण रसते होय न जाणो सचित है ते मार्ट, सचित नहीं ए रखते होव ने बहिराव, त्यां बात दाणो लगे तो ते घर असूझतो हुवं तेनुं चालणो अंगीकार कियो मा तथा कुड़छी सूं बहिराव इम कह्यां जयणा सहित कुड़छी हाथ में लेणी ठांम में घालणी इत्यादिक सर्व नीं आज्ञा थइ तथा पांचू अंग नमाय वंदना करणी तथा पडिकमणा री विध सिखाव अहोकायं कायसंफासं इहां हाथ जोड़ने वंदना करणी, इम पंच पदां री वंदना करणी, काउसग्ग करणो इम नमोत्थुणं गुणणो, पोत कायरा जोग प्रवर्त्तावी बतावै इम निरवद्य कार्य मांहि घाली आज्ञा दे तिहां गमनादिक नीं आज्ञा थइ । - जे ग्रहस्थ पूछे - मन, वचन, काया राजोग भला प्रवर्त्तावु तिवारी ? साधु कहै प्रवर्त्ता । इम साधु आज्ञा देव, ते काया भली किम प्रवत्तं । ऊभो हुवै तो बैस बहिरा, बेठो हुवे तो ऊभो थइ बहिरावं, साहमी वस्तु पड़ीं तो चालन बहरावं इत्यादिक निरवद्य चालवो प्रमुख आज्ञा मांहि आयो, इम उपयोग सहित निरवद्य गमनादिक प्रशस्त कार्याविनय जाणवो । अने व्यापारादिक सावज्ज कार्य अर्थे जयणा सहित जोय-जोय ने चाले ते चालवो सावज्ज छे। अने रसत में जीव ऊपर पग न दियो तो ते हिंसा नों पाप न लागो, पिण ते पगलो भरं ते छ । | पगले पगले व्यापार रूप सावज्ज सावज्ज कार्य नजदीक करें छं ते भणी ए गमनादिक प्रशस्त कार्याविनय नथी ।' हि अपसत्थ कार्याविनय कहै - ' ( ज. स. ) ८५. अथ स्यूं ते अपसत्थ- कार्याविनय कहिवाय ? अपसत्थ तनु-विनयो, सप्त प्रकारे ताय ॥ ८६. 'अणाउत्तं गमणं, गमन उपयोग रहीत । घुर भेद कह्यो ए. अर्थ वा नों संगीत || ८७. जावत अणाउत्तं, सर्व इंद्रिय व्यापार । तेनांज प्रयोग नीं, संयोजना अवधार ॥ भगवती जोड़ २२६ Jain Education International ८५. से कि अपत्य कायविए ? अध्ययत्यकारविर सत्तविहे पत्ते, जहा ८६. अणाउत्तं गमणं ८०. जाब अणाउतं सन्विदियजोगणा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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