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५८. * तेहथी कषायकुशील तहतीक, संख्यातगुणा सधीक । इह नियंठे संत उत्कृष्ट पृथक सहस्र को इष्ट ।
धर्मसी कृत प्रथम प्रमाणद्वार ३५ मों । तेनां मूल भेद ४ - वर्तमान समय आश्री जघन्य ( १ ) अने उत्कृष्टा (२) । पूर्वपडिवज्या आश्री जधन्य (३) अनं उत्कृष्टा (४) । अनैं उत्तर भेद तो इम वत्र्तमान समय नां छ ही नियंठा नां जो जीव जघन्य ६ हुवे (१) अनैं वर्त्तमान समय नां उत्कृष्ट जीव छही नियंठा नां ११ हजार ९ सौ ७० हुवे (२) अनै पूर्वपडिवज्या आश्री छ ही नियंठा नां जघन्य जीव २ हजार ४ सौ २ कोड़ि पामै (३) अन पूर्वपडिवज्या आश्री उत्कृष्ट छ ही नियंठा नां जीव हवे तो नवस को हुई साधुजी एह तो समुच्चय श्री का
हिवै प्रत्येक नियंठा आश्री कहै छे पुलाक नियंठा मांहै वर्तमान नवा प्रव्रज्या पडिवज्या आश्री एक समय मांहै द्रव्य अन भावे कदाचित हुवै, कदाचित हुवै। जो हुवे तो जघन्य १,२,३ जीव अनें उत्कृष्टा हुवै तो दोय सभी में नबसवतां हुवे ते पृथक कहिये जने पूर्वपविण्या आधी किवारे हुवे, किवारे न हुवे । अनें जो हुवे तो जघन्य १, २, ३, यावत उत्कृष्टा हु तो पृथक सहस्र हुवै दोय सहस्र थी मांडी नव सहस्र तांइ जावणा | १| हिवे बकुश नियंठो वर्तमान एक समय नवी द्रव्य अने भाव प्रव्रज्या पविण्या आधी तो कदापि हुने, कदाचि न हुवै १,२,३ जाव उत्कृष्टा हुवै तो दोय सय थी मांडी नैं पृथक कहिये । अ पूर्वपड़िवज्या आश्री ते द्वितीयादि देश ऊणां पूर्व कोड़ि नां हुवे तो जघन्य २०० कोड़ि हुवे अने उकृष्टा हुवे तो साढा च्यार सय कोड़ि हुवें । ओछा नैं पिण पृथक सय कोड़ कहिये अन इहां नव पकोड़ नहीं कहिये |२|
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जो हुवे तो न्य
सय तांइ हुवै ।
समय वाला लेइ यावत
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हि पडि सेवणाकुशीलवर्त्तमान एक समय नां द्रव्ये, भावे अन प्रव्रज्या नवी पड़िया आधी कदाचित वे कदाचित न हुवे। अने जो हु तो जपन्य १,२,३ यावत उत्कृष्ट हुवै तो दोय सय थी मांडी नैं नव सय तांइ हुने छं । ते पृथक सय कहियै । अनं पूर्वपड़िवज्या आश्री द्वितीयादि समय वाला लेइ नैं यावत देश ऊणां पूर्व कोड़ि न आउ नां जघन्य २०० कोड़ि हुवै अने उत्कृष्टा नव सय कोडि ते पृथक कोहि कहिये |२|
हिर्व कषायकुशील वर्त्तमान एक समय में द्रव्ये, भावे रूप नवी प्रव्रज्या पड़िवजतां थकां तो कदाचित हुवै, कदाचित न हुवै विरह पड़िवा आश्री । जो हुवै जघन्य १,२,३ यावत उत्कृष्टा नव सहस्र हुवै ते पृथक सहस्र कहियै । अ पूर्वपड़िवज्या आश्री जघन्य २००० कोड़ि एह चारित्र नां धणी अन उत्कृष्टा हुवै तो इम छं- जे बीजा ५ संजया नां उत्कृष्टा हुवे तो एहनां उत्कृष्टा ७ हजार ६ सौ ४० कोड ९९ लाख ९० हजार अने १ सौ इम पिण हुवै। अनं बीजा पांच संजया नां जघन्य हुवै तिवारै एहनां उत्कृष्टा ८ हजार ५ सौ ९८ कोड़ हु |४|
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हिर्व निर्ग्रथ नियंठो वर्त्तमान एक समय नां द्रव्य अनं भाव प्रव्रज्या नवी विज्या आश्री कदाचि हुवै, कदाचि न हुवे। अने जो हुवै तो जघन्य १, २, ३ यावत उत्कृष्ट १६२ । इम ५४ जीव उपशम श्रेणि ११ मां गुणठाणा वाला अ १०८ क्षपक श्रेणि १२ मां गुणठाणा वाला - एवं १६२ जीव हुवै १ । अनें
५८. सायकुसीला सज्जनुगा ।
(२५४५१) कषायिणां तु सङ्ख्यातगुणत्वं व्यक्तमेवोत्कर्षतः कोटीसहस्रपृथक्त्वमानया तेषामुक्तत्वादिति ।
(बृ. प. ९०९ )
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श० २५, उ० ६, डा० ४५२ १५७
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