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पूणः स्यादत न्यूनमिति ।
आह- 'देसूण' ति देशेन भागेन
(वृ. प. ९०७)
देसूर्ण कहिता देश भागे करी ऊणों एतले देश ऊणों अर्द्ध पुद्गलपरावर्त्त क्षेत्र थकी उत्कृष्ट इक वचने पुलाक नों अंतर हुदै । इम जाव निग्रंथ नुं अंतर जाणवू । ६. स्नातक नीं पूछा कियां, भाखै तब भगवंत ।
तेह तणुं अंतर नथी, स्नातक नहीं पड़त ।।
दूहा ७.हे प्रभु ! घणां पुलाक नों, अंतर कितरो थात? जिन कहै समय एक धुर, जेष्ठ वर्ष संख्यात ।।
६. सिणायस्स-पुच्छा।
गोयमा ! नत्थि अंतरं। (श. २५॥४३१) 'सिणायस्स नत्थि अंतरं' ति प्रतिपाताभावात् ।
(वृ. प. ९०७) ७. पुलायाणं भंते ! केवतियं कालं अंतर होइ? गोयमा ! जहण्णणं एक्कं समय, उक्कोसेण संखेज्जाई वासाई।
(श. २५।४३२)
वा०-बहुवचने पुलाक नों अंतर जघन्य एक समय नों उत्कृष्ट संख्याता वर्ष । पछै तो कोई पुलाक लब्धि फोड़वं हीज । बहुवचने ते घणा जीव आश्रयी। ८.हे प्रभु ! बहु बकुश पृच्छा, जिन कहै अंतर नांहि।
एवं यावत जाणवू, कषायकुशील ताहि ।।
८. बउसाणं भंते !-पुच्छा। गोयमा! नत्थि अंतरं । एवं जाव कसायकुसीलाणं ।
(श. २५४३३)
वा-बकुश, पडिसेवणाकुशील, कषायकुशील सदा शाश्वता घणां लाध ते माट एहनों अंतर नथी। ९.प्रश्न घणां निग्रंथ नों, जिन कहै जघन्य विमास । एक समय नों अंतरो, उत्कृष्टो षट मास ।।
९. नियंठाणं-पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं छम्मासा।
एक्कं समयं, उक्कोसेण
वा०--घणां जीव आश्रयी निग्रंथ नुं अंतर जघन्य एक समय, ते एक समय नों विरह थइ कोइ जीव इग्यारमों तथा बारमों गुणस्थान फर्श ते माटै जघन्य एक समय, उत्कृष्ट थकी षट मास । ते षट मास तांइ कोइ जीव इग्यारमों तथा बारमों गुणस्थान न फर्श । अनै छ मास पछै तो अवश्यमेव फर्शहीज ते माट उत्कृष्ट छ मास नुं अंतर। १०. बहवचने स्नातक तणं, बकूश जेम कहिवाय ।
घणां केवली शाश्वता, तिणसूं अंतर नांय ।। निर्ग्रन्थों में समुद्घात
*सुणज्यो भव्य प्राणी ! नियंठा षट भाख्या नाणी ।। (ध्रुपदं) ११. प्रभु ! समुद्घात किति पुलाक मांय?जिन कहै तीनज पाय ।
प्रथम वेदना नैं दूजी कषाय, मारणांतिक फुन थाय ।।
१०. सिणायाणं जहा बउसाणं ।
(श. २५॥४३४)
११. पुलागस्स णं भंते ! कति समुग्धाया पण्णत्ता?
गोयमा ! तिण्णि समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा--- वेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए।
(श. २५॥४३५)
सोरठा १२. पुलाक नैं इहां ख्यात, मरण अभावे पिण तस ।
मारणांतिक समुद्घात, आखी तेह विरुद्ध नहीं। १३. समुद्घात थी वादि, निवृत्त नैं ए आखियो ।
कषायकुशील आदि, परिणामे मृत्यु हुवै ।। *लय : पुन्यवंतो जीव
१५२ भगवती जोड़
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