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________________ २१. अथवा कल्पातीत विषे होय, इहां वृत्ति विषे अवलोय रे । छद्मस्थ जिन जे कषाय सहीत, ते कषायकुशील कल्पातीत रे ।। २२. निग्रंथ पूछयां कहै जिनराय, जिनकल्पे नहीं थाय रे । स्थविरकल्पे पिण नहीं निग्रंथ, कल्पातीत विषे हंत रे ।। २१. कप्पातीते वा होज्जा। (श. २५।३०२) कल्पातीते वा कषायकुशीलो भवेत्, कल्पातीतस्य छद्मस्थस्य तीर्थकरस्य सकषायित्वादिति । (वृ. प. ८९४) २२. नियंठे णं--पूच्छा । गोयमा ! नो जिणकप्पे होज्जा, नो थेरकप्पे होज्जा, कप्पातीते होज्जा। सोरठा २३. पंचम ए निग्रंथ, जिनकल्प स्थविरजकल्प नों। तास धर्म नहिं हुंत, कल्पातीत विषेज है। २३ 'नियंठे ण' मित्यादी 'कप्पातीते होज्ज' त्ति निग्रंथः कल्पातीत एव भवेद् यतस्तस्य जिनकल्पस्थविर कल्पधा न सन्तीति । (वृ. प. ८९४) २४. एवं सिणाए वि। (श. २५।३०३) २५. पुलाए णं भंते ! कि सामाइयसंजमे होज्जा? छेओवट्ठावणियसंजमे होज्जा? परिहारविसुद्धियसंजमे होज्जा ? २६. सुहमसंपरागसंजमे होज्जा ? अहक्खायसंजमे होज्जा ? २७. गोयमा ! सामाइयसंजमे वा होज्जा, छेओवट्ठा वणियसंजमे वा होज्जा, २८. नो परिहारविसुद्धियसंजमे होज्जा, नो सुहमसंपराग संजमे होज्जा, नो अक्खायसं जमे होज्जा। २४. *स्नातक पिण इमहिज कहिवाय, धुर बिहुं कल्पे नांय रे। एपिण कल्पातीत विषेह, तेरम चवदम गुण गेह रे ।। निर्ग्रन्थ में चारित्र २५. हे भगवंत ! पुलाक स्यूं तेह, हुवै सामायिक चारित्र विषह रे । के छेदोपस्थापनिक पावै, कै पडिहारविशुद्ध में थाव रे ? २६. के सूक्ष्मसंपराय जे चरित्त, तेह विषे सुकथित्त रे? __ कै यथाख्यात चारित्र विषे जाणी, पुलाक नियंठो पिछाणी रे ? ।। २७. जिन कहै सामायिक में थाय, वलि छेदोपस्थापनिक मांय रे । पुलाक लब्धि फोड़े ए दोइ, जद पुलाक नियंठो होइ रे ।। २८. परिहारविशुद्ध विषे नहिं थाय, सूक्ष्मसंपराय विषे नाय रे । यथाख्यात चारित्र विषे न होइ, पुलाक लब्धि न फोड़े तीनोंइ रे ।। २९. बकुश नैं पिण कहिवं एम, कुशील पडिसेवणा पिण तेम रे। है धुर दोय चारित्र विषे एह, नहीं ह त्रिण चरित्त विषेह रे ।। ३०. कषायकुशील पूछयां जिन कहिये, सामायिक नै विषे लहिये रे । जाव सूक्ष्मसंपराय में थाय, यथाख्यात चारित्र विष नांय रे ।। ३१. निग्रंथ पूछयां कहै जिनराय, सामायिक नै विष नाय रे । जाव सूक्ष्मसंपराय में नाय, ___ यथाख्यात चारित्र विषे पाय रे ।। वा० इग्यारमें गुणस्थाने उपशम चारित्र छै अनै बारमें गुणस्थाने क्षायिक चारित्र छ ए बिहं निग्रंथ छै ते यथाख्यातचारित्रिया छ ते माट निग्रंथ यथाख्यात *लय : समजू नर विरला २९. एवं बउसे वि । एवं पडिसेवणाकुसीले वि । (श, २५।३०४) ३०. कसायकुसीले णं - पुच्छा । गोयमा ! सामाइयसंजमे वा होज्जा जाव सुहुमसंपरागसंजमे वा होज्जा, नो अहक्खायसंजमे होज्जा। (श. २५॥३०५) ३१. नियंठे णं पुच्छा। गोयमा ! नो सामाइयसंजमे होज्जा जाब नो सुहुमसंपरागसंजमे होज्जा, अहक्खायसजमे होज्जा । (श. २५।३०६) ११२ भगवती जोड़ Jain Education Intenational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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