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आचार्य वर के निर्देशानुसार इस श्रृंखला में एक खण्ड और तैयार किया जाएगा। उस खण्ड में अनेक परिशिष्टों के साथ जोड़ का समीक्षात्मक अध्ययन भी रहेगा।
जोड़ के मुद्रण में राजस्थानी, संस्कृत और प्राकृत-इन तीनों भाषाओं को कंपोज करना काफी जटिल काम था। जैन विश्व भारती प्रेस के कंपोज कर्मियों ने पूरी निष्ठा के साथ काम किया, इस कारण 'भगवती जोड़' का मुद्रण समीचीन रूप में हो सका । अन्यथा प्रकाशन कार्य और अधिक विलम्बित हो जाता।
प्रस्तुत ग्रन्थ की सम्पादन यात्रा में साध्वी जिनप्रभाजी अभिन्न रूप से साथ रही ही हैं। मुनि हीरालालजी, साध्वी स्वर्णरेखाजी और साध्वी स्वस्तिकाश्रीजी की संभागिता ने भी यात्रापथ को सुगम बनाया है। जोड़ में प्रयुक्त ग्रन्थों के सन्दर्भ-स्थल खोजने का काम मुनि हीरालालजी ने किया । इस क्षेत्र में उन्होंने अपनी जो पहचान बनाई है, वह उनकी अध्यवसायिता का फलित है। साध्वी स्वर्णरेखाजी ने जोड़ के समानान्तर रखे गए मूलपाठ और वृत्तिवाले भाग की शुद्ध प्रतिलिपि तैयार की और साध्वी स्वस्तिकाश्रीजी ने साध्वी जिनप्रपाजी के साथ प्रूफ निरीक्षण में श्रम किया। सहभागिता और श्रमशीलता हमारी संस्कृति के हिस्से हैं । हम जब तक इनसे जुड़कर रहेंगे. हमारे जीवन से संस्कृति का पल्लवन होता रहेगा। यही हमें अभीष्ट है। पूज्यवरों का आशीर्वाद और अनुग्रह हमें वांछित मंजिल की दिशा में आगे बढ़ाएगा, ऐसा विश्वास है।
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा
१५ अगस्त, १९९७
गंगाशहर
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