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१५७. १८. ते चेव पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा
१५८. १९. असंखेज्जपदेसिया निरेया दब्वट्ठयाए
असंखेज्जगुणा १५९. ६. ते चेव पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा ।
(श. २५॥२३९)
१५७. तेहिज संख प्रदेशिया, अचलित जेह पिछाण ।
प्रदेश-अर्थपणे करी, संखगुणा ते जाण ।। १५८. तेहथी असंख प्रदेशिया, अचलित ते अवलोय ।
द्रव्य-अर्थपणे करी, असंख्यातगुणा होय ।। १५९. तेहिज असंख प्रदेशिया, अचलित जे आख्यात । प्रदेश-अर्थपणे करी, असंख्यातगुणा थात ।।
सोरठा १६०. प्रदेश थी कहि ताय, अस्तिकाय पुद्गल प्रतै ।
अथ अन्य अस्तिकाय, प्रदेश थी कहियै अछै ।। अस्तिकाय के मध्यप्रदेश १६१. *प्रभु ! धर्मास्ति नां किता, मध्यप्रदेश कहेस ? श्री जिन भाखै तेहनां, छै अठ मध्य प्रदेश ।।
सोरठा १६२. धर्मास्ति नां इष्ट, अठ मध्यप्रदेश छै तिके।
रुचक प्रदेशज अष्ट, ते अवगाहक चूणि इम ।।
१६०. अनन्तरं पुद्गलास्तिकाय: प्रदेशतश्चिन्तितः अथान्यानप्यस्तिकायान् प्रदेशत एव चिन्तयन्नाह..
(वृ. प. ८८७)
१६१. कति णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा
पण्णत्ता ? गोयमा ! अटू धम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा पण्णत्ता।
(श. २५।२४०) १६२. 'अद्वै धम्मत्थिकायस्स मज्झपएस' ति, एते च रुचकप्रदेशाष्टकावगाहिनोऽवसेया इति चूणिकार: ।
(वृ. प. ८८७) १६३.१६४. इह च यद्यपि लोकप्रमाणत्वेन धर्मास्तिकायादेमध्यं रत्नप्रभावकाशान्तर एव भवति न रुचके
(वृ. प ७८७)
१६३. वृत्तिकार संवादि, यद्यपि लोक प्रमाण करी ।
धर्मास्तिकायादि, मध्य रत्नप्रभा तले ।। १६४. रत्न सक्कर रै बीच, अवकाशांतर में विषे ।
है तस् मध्य समीच, पिण रुचक विषे ते है नथी ।। १६५. तथापि दिशि नों जेह, ऊपजवो वलि विदिशि नों।
हवै रुचक थी तेह, ते कारण इम जाणियै ।। १६६. धर्मास्तिकायादि, तास मध्ये वंछचो तिहां ।
चूणि विषे संवादि, आख्यो एम संभावियै ।। १६७. *प्रभु ! अधर्मास्तिकाय नां, कितरा मध्य प्रदेश ?
एवं चेव अहीजिये, जिन वच अमल अशेष ।।
१६५,१६६. तथाऽपि दिशामनूदिशां च तत्प्रभवत्वाद्धर्मास्तिकायादि मध्यं तत्र विवक्षितमिति संभाव्यते,
(वृ. प. ८८७)
१६८. प्रभु ! आगासत्थिकाय नां, मध्य प्रदेश कति ख्यात?
इम गोयम पूछय छत, अष्ट कहे जगनाथ ।।
१६९. प्रभु ! जीवास्तिकाय नां, कितरा मध्य प्रदेश ?
जिन कहै आठ परूपिया, मध्य प्रदेश विशेष ।।
१६७. कति णं भंते ! अधम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा
पण्णता ? एवं चेव ।
(श. २५२४१) १६८. कति णं भंते ! आगासत्थिकायस्स मज्भपदेसा
पण्णता? एवं चेव ।
(श. २५।२४२) १६९. कति णं भंते ! जीवस्थिकायस्स मज्झपदेसा
पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ जीवस्थिकायस्स मज्झपदेसा पण्णत्ता ।
(श. २५।२४३) १७०. 'जीवत्थि कायस्स' त्ति प्रत्येक जीवानामित्यर्थः, ते
च सर्वस्यामवगाहनायां मध्य भाग एव भवन्तीति मध्यप्रदेशा उच्यन्ते,
(व. प. ८८७) १७१. एए णं भते ! अट्ट जीवस्थिकायस्स मज्झपदेसा
कतिसु आगासपदेसेसु ओगाहंति ?
सोरठा १७०. इक-इक जीव तणांज, अठ-अठ मध्य प्रदेश छै।
निज-निज अवगाहनाज, तेहनै मध्य भागेज छै ।।
१७१.*ए प्रभु ! जीवास्ति तणां, जे मध्य अष्ट प्रदेश ।
किता आकाश प्रदेश नं, अवगाह्या सुविशेष ? *लय : वेग पधारो महिल थी
९४ भगवती जोड़
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