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________________ ३८५. सिय कालगा य नीलगा य लोहियगा य हालिद्दगा य य सुक्किलए य, ३८६,३८७. एए एकत्तीसं भंगा, एवं एक्कग-दुयग-तियग चउक्कग-पंचगसंजोएहिं दो छत्तीसा भंगसया भवंति। ३८८, गंधा जहा अट्टपएसियस्स । रसा जहा एयस्स चेव वण्णा । फासा जहा चउपएसियस्स । (श० २०१३४) ३८०. कदा कृष्ण बहु वचनेह, नील बहु वच बहु नभ लेह । लाल पील एक वच थाय, सुक्किल बहु वच बहु नभ पाय ।। ३८१. कदा कृष्ण नील बहु वच होय, लाल इक वचने अवलोय । पीलो बहु वच बहु नभ मांय, सुक्किल इक वचने कहिवाय ।। ३८२. कदा कृष्ण नील बहु होय, लाल इक वचने अवलोय । पील सुक्किल बहु वच देख, अठवीसमों भंग विशेख ।। ३८३. कदा कृष्ण नील बहु होय, लाल बहु वच बहु नभ जोय। पील सुक्किल एक वचनेह, गुणतीसमों भांगो एह ।। ३८४. कदा कृष्ण नील बहु जान, लाल बहु वच बहु नभ मान । पीलो इक वचने कहिवाय, सुक्किल बहु वच बहु नभ पाय ।। ३८५. कदा कृष्ण नील लाल पील, चिहुं बहु वच बहु नभ मील । सुक्किल इक वचने कहिवाय, इकतीसमों भंग ए थाय ।। ३८६. इम एक संयोगे पंच, द्विक संयोगे चालीस संच। त्रिक संयोगे असी कहाय, चउक्क संयोगे असी थाय ।। ३८७. पंच संयोगे भंग इकतीस, सर्व दोयसौ में षट तीस । पंच वर्ण तणां अवलोय, नव प्रदेशिक नां जोय ॥ ३८८. गंधा जिम अष्ट प्रदेशिक जाण, रसा जिम एहनां वर्ण पिछाण । फासा जिम चउप्पएसियस्स, सहु भंगा भणवा अवस्स ।। नव प्रदेशिक खंधे वर्णादिक नां ५१४ मांगा नों यन्त्र२३६ नवप्रदेशिक खंधे वर्ण नां २३६ भांगा एकसंयोगे ५ भांगा पूर्ववत द्विकसंयोगे ४० भागा पूर्ववत त्रिकसंयोगे ८० भांगा पूर्ववत चतुष्कसंयोगे ८० भांगा पूर्ववत पंचसंयोगे ३१ भांगा, ते कहै छै१ कालए १ नीलए १ लोहियए १ हालिद्दए १ सुक्किलए १ २ कालए १ नीलए १ लोहियए १ हालिद्दए १ सुक्किलगा ३ ३ कालए १ नीलए १ लोहियए १ हालिद्दगा ३ सुक्किलए १ ४ कालए १ नीलए १ लोहियए १ हालिद्दगा ३ सुक्किलगा ३ ५ कालए १ नीलए १ लोहियगा ३ हालिद्दए १ सुक्किलए १ ६ कालए १ नीलए १ लोहियगा ३ हालिद्दए १ सुक्किलगा ३ ७ कालए १ नीलए १ लोहियगा ३ हालिद्दगा ३ सुक्किलए १ ८ कालए १ नीलए १ लोहियगा ३ हालिद्दगा ३ सुक्किलगा ३ ९ कालए १ नीलगा ३ लोहियए १ हालिद्दए १ सुक्किलए १ १० कालए १ नीलगा ३ लोहियए १ हालिद्दए १ सुक्किलगा ३ ११ कालए १ नीलगा ३ लोहियए १ हालिद्दगा ३ सुक्किलए १ १२ कालए १ नीलगा ३ लोहियए १ हालिद्दगा ३ सुक्किलगा ३ १३ कालए १ नीलगा ३ लोहियगा ३ हालिद्दए १ सुक्किलए १ १४ कालए १ नीलगा ३ लोहियगा ३ हालिद्दए १ सुक्किलगा ३ श० २०, ३०५, ढा. ०२ २९३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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