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________________ २१७. रसा जहा वण्णा । फासा जहा चउप्पएसियस्स । (श० २०१३०) २२०. छप्पएसिए णं भंते ! खंधे कति वण्णे ? एवं जहा पंचपएसिए जाव सिय चउफासे पण्णत्ते । २२१. जइ एगवण ? एगवण्ण-दुवण्णा जहा पंचपए सियस्स। २२२. जइ तिवण्णे ? सिय कालए य नीलए य लोहियए य, एवं जहेव पंचपएसियस्स सत्त भंगा २२३. जाव सिय कालगा य नीलगा य लोहियए य, २२४,२२५. सिय कालगा य नीलगा य लोहियगा य, एए अट्ठ भंगा, २१७. रस नां भांगा वर्ण जेम, इकसौ इकताली तेम। फर्श नां भांगा षट तीस, चिहं प्रदेशिक जेम कहीस ।। २१८. वर्ण नां इकसौ इकताली, भंग गंध तणां षट भाली। रस नां इकसौ इकताली, फर्श नां षट तीस निहाली ।। २१९. पंच प्रदेशिया नां पेख, वर्णादिक नां सुविशेख । सह तीनसी ने चउवीस, भांगा भाख्या जगदीश ।। षटप्रदेशिक स्कन्ध में वर्णादि भंग २२०. षट प्रदेशिक खंध जान, तिणमें वर्ण किता भगवान ? जिम पंच प्रदेशिक जोय, च्यार फर्श कदा जाव होय ।। २२१. जो एक वर्ण हुवै संच, एक वर्ण तणां भंग पंच । दोय वर्ण नां भंग चालीस, पंच प्रदेशिक जेम कहीस ।। त्रिकयोगिक ८० भांगा२२२. जो तीन वर्ण तिणमें होय, कदा कृष्ण नील लाल जोय । कह्या पंच प्रदेशी नां सात, तिम भणवा सप्त विख्यात ।। २२३. जाव कदा कृष्ण ने नील, बिहं बहु वचनेज समील । अने लाल एक वचनेह, ए सातमों भांगो कहेह ।। २२४. कदा कृष्ण नील लाल जान, त्रिहुं बहु वचने करि मान । भंग अष्टम संभव एह, षट प्रदेश माटै लेह ।। २२५. कृष्ण नील लाल नां भंग, एक बहु वचने करि चंग । इम भांगा आठ सुघट, ए त्रिक योग एक नां अठ ।। २२६. इहां छै दश त्रिक संयोग, एक-एक संयोग प्रयोग। अष्ट-अष्ट भांगा इम थाय, अस्सी सह त्रिकसंयोग मांय ।। २२७. कदा कृष्ण नील ने पील, दूजो त्रिकसंयोग समील । इक बहु वच करि अष्ट भंग, करिवा पूर्वली परै चंग ।। २२८. कृष्ण नील धवल र संघात, भणवा अष्ट भंग विख्यात । एत्रिकसंयोगे तीजो, इम आगल पिण गिण लीजो॥ २२९. कृष्ण लाल पील संग पेख, भणवा भंग अष्ट विशेख । कृष्ण लाल शुक्ल संग ताम, ए पिण अष्ट भंग अभिराम।। २३०. कृष्ण पील सुक्किल संग तास, पवर भंग अष्ट सुप्रकाश। नील लाल पील वर्ण साथ, वारू भांगा अष्ट विख्यात ।। २३१.नील लाल सूक्किल वर्ण संग, ए तो भणवा अष्ट सुभंग। नील पील सुक्किल सहचार, ए तो भांगा अष्ट उचार ।। २३२. लाल पील धवल संग जोग, वारू भांगा अष्ट प्रयोग । दशमों त्रिकसंयोग एह, धुर संयोग थी गिण लेह ।। २३३. पंच वर्ण तणों पहिछाण, दश त्रिकसंयोग ए जाण । एक-एक नां अठ-अठ भंग, दश अठ गुणां अस्सी चंग ।। हिवं च्यार वर्ण नै विषे १६ भांगा हुवै । ते माहिला आठमो, बारमो, चउदमों, पनरमों, सोलमों-ए ५ वर्जी शेष ११ भांगा हवं, ते कहै छ मान, २२६, एवमेते दस तियासंजोगा, एक्केक्कए संजोगे अट्ट भंगा, एवं सव्वे वि तियगसंजोगे असीति भंगा। श० २०, उ० ५, डा० ४०२ १७९ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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