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________________ तथा तीन कृष्ण ते एक आकाश प्रदेश में रह्या, एक नील ते दूजा आकाश प्रदेश में रह्यो, एक लाल ते तीजा आकाश प्रदेश में रह्यो । ए सर्व एक-एक प्रदेशे रह्या, ए तीनूं एक वचन हुवै तथा ए सर्व इमहिज दोय प्रदेशिक विषे रह्यां एक वचन हुवै, पिण कृष्णादिक बहु वर्णं ते एक प्रदेश नैं विषे कहिणा । तथा ए सर्व एक आकाश प्रदेशे रह्या, एकवचन हुवै इम अनेरे स्थानके पिण विचारी कहियो । १९०. कदा कृष्ण एक सुविशेष, नील वर्णे एक प्रदेश लाल वर्ण बहु वचने, रह्यो बहु प्रदेश १९१ का कृष्ण एक वच जेह, नील बहु वचने में एह ॥ करि तेह। लाल इक वचने करि न्हाल, ए तृतीय भंग सुविशाल || १९२. कदा कृष्ण वर्ण हुवै एक, बहु वच नील वर्ण बे देख | बहु वच लाल दोय प्रदेश, रह्या पंच नभ मांहि अशेष || १९३. कदा बहु वच कृष्णज होय, रह्या बहु प्रदेश में सोय । इक वच नील लाल वच एक, रह्या इक इक प्रदेश पेख || १९४. कदा बहुवच कृष्णज दोय, नील एक प्रदेशज होय । दोय प्रदेश लाल विशेष, रह्या पंच आकाश प्रदेश || १९५. कदा बहु वच कृष्णज दोय, दोय प्रदेश नीला होय । एक प्रदेश लाल कहाय, रह्या पंच प्रदेश ₹ मांय || १९६. कृष्ण नील ने लाल संघात, एक बहुवचने अवदात | भांगा तप्त का ए सोय, संभवे जिम करिया जोय || १९७. कदा कृष्ण नील ने पील, हिं एक वचनेज सलील । वहां पण भंग सप्त भणेह, पूर्वली पर करि लेह || १९८. इम कृष्ण नील धवल साथ, एपिण भणवा भांगा सात । कृष्ण लाल पील संग पेख, भणवा भांगा सप्त विशेख || १९९. कृष्ण लाल शुक्ल संग ताम, ए विण भंग सप्त अभिराम । कृष्ण पील शुक्ल संग तास, पवर भंग सप्त सुप्रकाश ॥ २००. नील लाल पील वर्ण साथ, कहिवा सप्त भंग विख्यात । नील लाल शुक्ल वर्ण संग, ए तो भणवा सप्त सुभंग ॥ २०१. नील पील शुक्ल सहचार, वर भांगा सप्त उचार । बाल पोल धवल संग जोग, वारू भांगा सप्त प्रयोग || २०२. पंच वर्ण तणां पहिखाण, दश विक संयोग ए जान । त्रिक एक-एक नां भंग सात-सात दश सप्त गुणां सित्तर ख्यात ।। चतुष्कयोगिक २५ भांगा 1 २०३. कदा कृष्ण नील लाल पील, चिहुं दक वचनेज समील । नभ प्रदेश नीं पेक्षाय, कहियो इक वचने वर न्याय || २०४. कदा कृष्ण नील रक्तवान, त्रिहुं इक वचने करि जान । दोष नभ में वे पील प्रदेश, ए बहु वचने सुविशेष || २०५. कदा. कृष्ण नील वच एक, लाल बहु वचने करि पेख । पीलो इक वचने अवलोय, ए तृतीय भंग छै सोय || २०६. कदा इक व कृष्ण विशेष, नील बहु वच दोष प्रदेश तिके नील दोय नभ मांय, इक वच लाल पील कहिवाय ॥ २७६ भगवती जोड़ Jain Education International १९० २. सिय कालए य नीलए य लोहियगा य, १९१. ३. सिय कालए य नीलगाय लोहियए य, १९२. ४. सिय कालए य नीलगाय लोहियगा य १९३. ५. सिय कालगा य नीलए य लोहियए य, १९४. ६. सिय कालगा य नीलए य लोहियगा य, १९५. ७. सिय कालगा य नीलगा य लोहियए य, १९७. सिय कालए य नीलए य हालिए य, एत्थ वि सत्त भंगा, १९८. एवं कालग - नीलग- सुक्किलएसु सप्त्त भंगा, कालगलोहिय- हालिद्देसु ७, १९९. कालग - लोहिय-सुविकलेसु सुनिकले ७, २००. नीलग - लोहिय- हालिद्देसु ७, सत्त भंगा, २०१. नीलम हा विकले सुक्किले वि सत्त भंगा २०२. एवमेते तियासंजोएणं सत्तरि भंगा । ७, कालगलि नीलग-लोहिय- सुक्किले सु ७, लोहिय- हालिद्द २०३. जइ चउवण्णे ? १. सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिए २०४२. सिकाए व नीलए य सोविए प हालिगा For Private & Personal Use Only य, २०५. ३. सिय कालए य नीलए य लोहियगा य हालिद्दगे य, २०६. ४. सिय कालए य नीलगाय लोहियगे य हालिद्दगे य www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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