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________________ सोरठा १०८. एक कृष्ण इक नील, इक इक प्रदेश में रह्या । दोष लाल संमील ते पिण एक प्रदेश में ॥ १०९. कदा कृष्ण एक वचनेह, नील इक वचनेज कहेह | लाल बहु वचने करि ताहि, रह्या च्यार प्रदेश रं मांहि ॥ । J सोरठा ११०. एक कृष्ण इक नील, इक इक प्रदेश में दोय लाल संजील, बे नभ प्रदेश में १११. "कदा कृष्ण एक वच जोय, नील वह बच करिनं लाल इक वचने कहिवाय, रह्या प्यार प्रदेश रे सोरठा । ११२. एक प्रदेश में काल, नील वर्ण प्रदेश बे वे प्रदेश में भाल, एक प्रदेशे लाल इक ॥ ११२. *कदा कृष्ण बहु वचनेह, नील इक बचने करि जेह लाल इक वचने कहिवाय, रह्या चिउं नभ प्रदेश मांय || । सोरठा ११४. बे नभ प्रदेश मांय, कृष्णज इक इक प्रदेश पाय, एक ११५. *कृष्ण नील नैं लाल संघात, वर्ण प्रदेश वे । नील इक लाल फुन ।। कह्या भांगा च्यार विख्यात । इम कृष्ण नील ने पील, पूर्ववत चिहुं भंग समील ।। ११६. कृष्ण नील शुक्ल पिण एम चिहुं भांगा पूर्व जेम । कृष्ण लाल नैं पील संघात, इम भांगा च्यार विख्यात || ११७. कृष्ण लाल शुक्ल करि धार, इम भांगा भणिवा च्यार । कृष्ण पील शुक्ल ई साथ, इम भांगा चिहुं अवदात || ११८. नील लाल पील संग जाण, इम भांगा प्यार बखाण । नील लाल शुक्ल संग सोय, इम भांगा च्यारज होय ।। ११९. नीलपी शुक्ल संघात इम भांगा बिहू अवदात लाल पील शुक्ल संग ताय, इम भांगा च्यार कहाय ।। त्रिसंयोगे १२०. दश एह. इक इक संयोग विषेह च्यार च्यार भांगा सुजगीस, थया भांगा सर्व चालीस || चतुष्कयोfre ५ मांगा ।. रह्या । रह्या ॥ होय । मांय || १२१. जो च्यार वर्ण तिणमें होय, कदा कृष्ण नील अवलोय । वलि लाल पीलो कहिवाय, चिहुं इक वच धुर भंग थाय ॥ १२२. कदा कृष्ण नील ने लाल, कदा कृष्ण नील ने पील, Jain Education International वलि सुक्कल ए द्वितीय निहाल । *लय : म्हारी सासू रो नाम छँ फूली २६६ भगवती जोड़ वलि सुक्कल ए तृतीय समील ॥ १०९. २. सिय कालए य नीलए य लोहियगा य, १११. ३. सिय कालए य नीलगाय लोहियए य, ११३. ४. सिय कालगा य नीलए य लोहियए य, ११५. एए मंगा ४ एवं कालानीसाहालिएहि गंगा ४. ११६. कालनीलक्किल ४ काललो हिपहालि ४, ११७. काल लोहियसुक्किल ४, कालहालिद्दसुक्किल ४, ११. नीलालिगा गंगा ४, नीललोहि४ ११९. नीलहालहक्कल ४ हालिि भंगा ४, १२०. एवं एए दसतियासंजोगा एक्केक्के संजोए चत्तारि भंगा, सब्वे एते चत्तालीसं भंगा । १२१. जइ चडवण्णे ? १. सिय लोहियएव हालिए प १२२. २. सिय कालए य नीलए य For Private & Personal Use Only कालए य नीलए य लोहियए य सुक्किलए य, ३. सिय कालए य नीलए य हालिद्दए य सुनिए प www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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