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३०. तथा सर्व उष्ण द्वं
प्रसिद्ध तिनमें एक एक प्रदेश लुक्षज जाण, ए द्वितीय भंग
३१. तथा दोनूं
स्निग्ध संगीत, तिणमें एक देश एक प्रदेश उष्णज होय, ए तृतीय भंग ३२. तथा दो लक्ष संगीत, एक प्रदेश उष्णज फास ए च्यार फर्श नों १ भांगो
ते
माहिलो छे चोथो भांगो
द्विप्रदेशिक खंधे वर्णादिक नां ४२ भांगा नो यंत्र-
| तित्ते
तित्ते
fani
१५ | द्विप्रदेशी खंध में वर्ण नां भांगा
१५
३३. जो च्यार फर्श तिण में होय, तो एक शीत एक उष्ण जोय । तेहिज एक निध एक लुक्ष, चिहुं फर्ण नों इक भंग वक्ष ।। ३४. वर्णनां परं गंध नां तीन रसनो पनरं भांगा सुचीन । फर्श नां नव भांगा जगीस द्विप्रदेशिक तो बयालीस |
इकसंयोगे वर्ण नां भांगा ५ पूर्ववत कहिवा
| द्विकसंयोगे भांगा १० कहै छे
नीलए
लोहियए
हालिए
१ कालए
२ कालए
३ कालए
४ कालए
५ नीलए
६ नीनए
| ७ नीलए
| ८ लोहियए
| ९ लोहियए
सुक्किलए
लोहियए
हालिए
सुक्किलए
हालिए
सुक्किलए
सुक्किलए
१० हालिए
३ | गंध नां ३ भांगा कहै छे
इकसंयोगे २ भांगा ते पूर्ववत कहिवा
द्विकसंयोगे १ भांगो
| सुगंधेदुभिगंधे
१५ | रस नां १५ भांगा कहे छं
इकसंयोगे भांगा ५ पूर्ववत
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1
प्रवेशज निद्ध । पहिछाण ||
हुवै शीत ।
अवलोय || शीत ।
सुविमास ||
। सीए
। सीए
एक
कडुए
कडुए
| कडुए
| कसाए
। उसिणे
| उसिणे
कसाए
अंबिले
कसाए
अंबिले
महुरे
अंबिले
कसाए
| अंबिले
९ । स्पर्श नां ९ भांगा कहै छे
द्विक्संयोगे ४ भांगा कहै छे
गिद्धे
सुबे
णिद्वे
महुरे
महुरे
लक्खे
त्रिसंयोगे ४ भांगा कहे छे
| सब्वे सीए देसे णिद्धे देसे लक्खे
। सब्वे उसिणे देसे जिद्धे देसे लुवखे सच्चे गिखे देसे सीए देगे
| सव्वे लुक्खे देसे सीए देसे उसिने
१ | चउक्कसंयोगे १ भांगो कहै छै -
१
देसे सीए देसे उसिणे देसे णि देसेलु
| एवं सर्व ४२ भांगा जाणवा!
| द्विकसंयोगे भांगा १० कहै छै| तित्ते कडुए त्रिप्रदेशिक स्कंध में वर्णादि भंग ३५. प्रदेशिक बंध भगवान! किता वर्ण इत्यादि विद्वान। शत अठारमे छठे निवास, कह्यो तेम जावत चिहुं फास ।। ३६. जो एक वर्ण तणमें होय, तो कदा कृष्ण वर्ण बिहं जोय जाय शुक्ल वर्ण हिं संच, इकयोगिक भंगा पंच ॥ ३७. द्विकयोगिक दश भंग होय, द्विप्रदेशिक जिम अवलोय । एक वर्ण तणां इम जाण, पूर्ववत पनर भंग आण ||
३०. २. सव्वे उसिणे देसे निले देसे लक्खे,
३१. ३. सच्चे निद्धे देसे सीए देसे उसिणे,
३२. ४. सब्वे लुक्खे देसे सीए देसे उसिणे ।
३३. जइ चउफासे ? १. देसे सीए देस उसिणे देसे नि एए नव मंगा फासे ( श० २०/२७)
देसेल
३५. तिपएसिए णं भंते ! खंधे कतिवण्णं ? जहा अट्ठारसमए खट्ट (१८११३) जाय उकासे पण ३६. जइ एगवण्णे ? सिय कालए जाव सुविकलए ।
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० २० उ० ५ ढा० ४०२ २५९
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