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१९. साओ गिहाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता,
पायविहारचारेणं एगेणं खंडियसएणं सद्धि संपरिडे
१९. पोता नां घर थकी नीकल ए,
नीकली विप्र विख्यात कै। पालो पग चालतो ए,
___एकसौ छात्र संघात के। २०. वाणिज ग्राम जे नगर ने ए, मध्य-मध्ये करि जास के।
नीकली आवतो ए, चैत्य ज्यां दूतिपलास के । २१. जिहा श्रमण भगवंत महावीर जी ए,
त्यां आवै आवी ने तहतीक के। ऊभो रही तदा ए,
नहीं अति दूर नजीक कै॥
२०. वाणियगामं नगरं मझमझेणं निग्गच्छइ,
निग्गच्छित्ता जेणेव दूतिपलासए चेइए, २१. जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ,
उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा
२२. समणं भगवं महावीरं एवं वयासी
(श०१८।२०५)
दूहा २२. सोमिल ब्राह्मण तिण समय, महावीर प्रति पेख ।
यावत बोले इह विधे, पूछ प्रश्न विशेख ॥ २३. *ए तीन सय छयांसीमी ढाल छै ए,
भिक्षु भारीमाल ऋषिराय कै। तास पसाय थी ए,
'जय-जश' हरष सवाय कै ॥
ढाल : ३८७
दूहा १. हे भदंत ! छै ताहरै, जात्रा प्रवर सुजान ।
संजम जोग विषे सखर, प्रवर्तवू पहिछान ।।
२. मोक्ष मार्ग प्रति जावतां, प्रेरणहार प्रधान । इंद्रयांदिक नो वस्यपणों, जबणिज्जं ते जान ।।
१. जत्ता ते भंते ? 'जत्त' त्ति यानं यात्रा-संयमयोगेषु प्रवृत्तिः
(वृ० प० ७५९) २. जवणिज्जं (ते भंते?)? 'जवणिज्ज' ति यापनीयं-मोक्षाध्वनि गच्छतां
प्रयोजक इन्द्रियादिवश्यतारूपोधर्मः ३. अब्बाबाहं (ते भंते ?) ? फासुयविहारं (ते भंते?) ?
(वृ० प० ७५९) 'अव्वाबाह' ति शरीरबाधानामभावः 'फासुयविहारं' ति प्रासुकविहारो-निर्जीव आश्रय इति,
(वृ०प० ७५९) ४. सोमिला ! जत्ता वि मे, जवणिज्ज पि मे,
३. अव्याबाध शरीर जे, बाधा रहित विचार।
आश्रय छै निर्जीव तुझ, प्रासुक तेह विहार ?
४. जिन भाखै सुण सोमिला ! जात्रा पिण छै मुझ ।
जवणिज्जं छै मांहरै, छै अति सखर सुबुज्झ ।। ५. अव्याबाधज पिण मुझे, छै मुझ प्रासुक विहार ।
इम भगवंत भाख्ये छते, सोमिल पूछ सार ।। ६. हे भदंत ! स्यं ताहरे, जात्रा अधिक उदार ।
इम सोमिल पूछथे थके, उत्तर दै जगतार ।। * लय : अरिहंत मोटका ए
५. अव्वाबाहं पि मे, फासुयविहारं पि मे।
(श०११२०६) ६. कि ते भंते ! जत्ता ?
श०१८, उ०१०, ढा० ३८६,३८७ १९१
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