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७. जाव परिसा पज्जुवासति।
(श० १८।२०४)
८. तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए
लट्ठस्स समाणस्स ९. अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए
संकप्पे समुप्पज्जित्था१०. एवं खलु समणे नायपुत्ते पुव्वाणुपुब्बि चरमाणे
७. यावत परषद आयन ए, त्रिविध जोगे करि जेह के।
सेव स्वामी तणी ए, हरष धरीने करेह के ।। ८. सोमिल विप्र तिण अवसरे ए, वीर पधारिया वन्न कै।
ए अर्थ कथा भली ए, लाधे थकेज सुजन्न कै ।। ८. एह एहवैज रूपे तदा ए, यावत ऊपनो वन्न कै ।
मनोरथ एहवो ए, सांभलजो धर कन्न कै ।। १०. इम निश्चै करिने इहां ए,
ज्ञात-सुत श्रमण कहिवाय के। पूर्व अनुपूर्वीये ए,
चालता देश रै मांय कै।। ११. ग्रामानुग्राम जाता थका ए,
सुखे-सुखे विचरता तास के । जाव आव्या इहां ए,
यावत दूतिपलास कै ॥ १२. यथाप्रतिरूप अवग्रह ग्रही ए,
यावत विचरै छै ताय के। ते भणी बाग में ए,
हूं तिहां जाऊं चलाय कै ।। १३. श्रमण जे ज्ञात-सुत नैं कनै ए, प्रगट था इहवार के।
कहिस्य जे आगलै ए, अर्थ जात्रादिक सार कै ॥
११. गामाणुगाम दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जाव
(सं० पा०) दूतिपलासए चेइए
१२. अहापडिरूवं जाव (सं० पा०) विहरइ । तं गच्छामि
१४. यावत प्रश्न बहु पूछसू ए, जो मुझ अर्थ नां ताह के।
जाब प्रश्नां तणां ए, उत्तर करिस्य निर्वाह के ।।
१३. समणस्स नायपुत्तस्स अंतियं पाउब्भवामि, इमाई च
णं एयारूवाई अट्ठाई 'इमाइंच णं' ति इमानि च वक्ष्यमाणानि यात्रायापनीयादीनि
(वृ० प० ७५९) १४. जाव (सं० पा०) वागरणाई पुच्छिस्सामि, तं जइ मे
से इमाइं एयारूवाइं अट्ठाई जाव (सं० पा०) वागर
णाई वागरेहिति १५. ततो णं वंदीहामि नमसीहामि जाव पज्जुवासीहामि,
१६. अह मे से इमाइं अट्ठाई जाव वागरणाई नो वागरे
हिती
१५. जाब दीधां छतां श्रमण नैं ए,
वांदिसू करिसूं नमस्कार के । जाव पर्युपासना ए,
हूं करिसू इहवार के।। १६. अथ मुझ एहिज अर्थ नां ए,
जाव प्रश्नां तणां ताहि के। निर्वाह करिस्य नहीं ए,
उत्तर देस्यै जो नांहि कै ।। १७. तो हूं ए अर्थ करी तसु ए,
जाव प्रश्ने करी वरण के। कष्ट करिसूं तदा ए,
निःपृष्ट प्रश्न व्याकरण के । १८. इम करी इम मन चितवी ए,
स्नान करी शुद्ध थाय के । जाव शरीर नै ए,
करि अलंकृत अधिकाय कै ।।
१७. तो णं एएहिं चेव अद्वैहि य जाव वागरणेहि य
निप्पट्ठपसिणवागरणं करेस्सामि
१८. इति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए जाव अप्प
महग्घाभरणालंकियसरीरे
१९.
भगवती जोर
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