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________________ 'सत्त' त्ति औदारिकादि-सप्तविधपुद्गलविषयत्वात्सप्तदण्डकाश्चतुर्विशतिदण्डका भवन्ति । (वृ० ५० ५६८) वा० --- एकत्वपृथक्त्वदण्डकानां चायं विशेषःएकत्वदण्डकेषु पुरस्कृतपुद्गलपरावर्ताः कस्यापि न सन्त्यपि, बहुत्वदण्डकेषु तु ते सन्ति, जीवसामान्यश्रयणादिति । (वृ० ५० ५६८) वा० --हिवं चउवीस दंडके बहु वचन आश्री कहै छै । एक वचन बहुवचन दंडक नै विषे एतलो विशेष -एक वचन के विषे इक-इक नेरिया प्रमुख नीं पूछा। तेहनों उत्तर प्रभु दीधो । पुद्गल-परावर्न गये काल अनंता कीधा अनै आगमिये काले कोइ एक जीव करस्यै, कोइ एक जीव न करस्य, एहवू कह्य । अनै बहुवचने नेरिया प्रमुख नै पुदगल-परावर्त गये काल अनंता कीधा अनै मागमिये काले अनंता करस्येज । जीव सामान्य आश्रयण थकी एहवं भाव कहै छै३३. बह वच नारक ने भगवंत जी ! थया गया काल रै मांहि । ओदारिक परावर्त-पुद्गल किता? जिन कहै अनंता ताहि ।। ३३. नेरइयाणं भंते ! केवइया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता ? अणंता। ३४. केवइया पुरेक्खडा? अगंता । एवं जाव वेमाणियाणं । ३५. एवं बेउब्वियपोग्गलपरियट्टावि । एवं जाव आणा पाणुपोग्गलपरियट्टा वेमाणियाणं । एवं एए पोहत्तिया सत्त चउव्वीसतिदंडगा। (श० १२१८७) ३४. काल आगमिये करिस्य केतला? जिन कहै अनंता थाय । एवं यावत वैमानिक लग सह, बह वचनारक समुदाय ।। ३५. एवं वैक्रिय पुद्गल-परावर्त्त छै, इम जाव उस्सास निस्वास। पुद्गल-परावर्त ए सातमों, कांइ वैमानिक नैं तास ।। इम पृथक' सप्त चउवीस दंडका ।। वा०-इम ए बहु वचने औदारिकादि पुद्गल-परावर्त्त सप्त प्रकारे चउवीस दंडक नै विषे हुवे, ते माट चउवीस दंडका कह्या । ३६. इक-इक नारक ने भगवंत जो ! कांइ नरकपणे वर्तमान । ओदारिक परावर्त-पुद्गल किता थया गया काल में जान? ३७. जिन कहै इक पिण तिहां हुवो नहीं, कांइ नरकपणे वर्तमान। ओदारिक पुद्गल ग्रहण करै नहीं, तेहथी इक पिण नहीं जान।। ३८. काल अनागत करिस्यै केतला? जिन कहै एक पिण नांय । आगल पिण नरकपणे वर्तमान में, ओदारिक द्रव्य न ग्रहाय ॥ ३६. इक-इक नारक नै भगवंत जी! कांइ असुरपणे वर्तमान । औदारिक परावर्त-पुद्गल किता थया गया काल में जान ? ४०. जिन कहै इक पिण तिहां हुओ नहीं, वलि आगल पिण नहिं हंत। __यावत इम थणियकुमारपणे तसु, जिम असुरपणे तिम मंत।। ४१. इक-इक नारक में भगवंत जी! कांइ पृथ्वीपणे वर्तमान । औदारिक परावर्त्त-पुद्गल किता थया गया काल में जान? ४२. श्री जिन भाखै इक-इक नरक नें, कांइ पृथ्वीपणे पिछाण। ओदारिक परावर्त्त-पुद्गल थया, कांइ वार अनंती जाण ।। ४३. काल आगमिये करसी केतला? जिन कहै कोइक नै थाय । कोइक नै नहीं ह ते पृथ्वीपणे विण ऊपजियां शिव पाय ।। ४४. पुद्गल-परावर्त जेहनै अछ, तसु जघन्य एक बे तीन । उत्कृष्ट संख असंख अनंत है, करिस्य कर्मी वस दीन ।। ४५. इमहिज यावत मनुष्यपणे अछ, व्यंतर जोतिषि विचार । वैमानिकपणे ओदारिक केतला?जिम असुरपणे तिम धार।। ३६. एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता? ३७. नत्थि एक्को वि। __'नत्थि एक्कोवि' त्ति नारकत्वे वर्तमानस्यौदारिक पुद्गलग्रहणाभावादिति । (वृ० ५० ५६८) ३८. केवतिया पुरेक्खडा? नत्थि एक्को वि। (श० १२१८८) ३९. एगमेगस्स णं भते। नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता? ४०. एवं चेव । एवं जाव थणियकुमारत्ते । (श० १२।८९) ४१. एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स पुढविक्काइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता ? ४२. अणंता। ४३. केवतिया पुरेक्खडा ? कस्सइ अत्थि, कस्सइ नत्थि । ४४. जस्सत्थि जहण्णेणं एक्को वा, दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । ४५. एवं जाव मणुस्सते वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियत्ते जहा असुरकुमारत्ते । (श० १२६९०) १. प्रत्येक ४२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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