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________________ एहवी करे विचारणा पाणी रे जोवा लागा ठाम ठाम रे । एक मोटो वनखंड आयो जोवतां रे लाल, जोवा जोग घणों अभिराम रे || || तिण वनखंड रा मझ देस में रे, तिहां एक मोटी जायगां जाण रे । च्यार वलगू हुंता तिण ऊपरां रे लाल, त्यांरा ऊंचा सिषर वखाण रे ।। १० ।। ते देखी ने हरख्या वानिया रे, सह भेला हुये कहै आग रे । इण वनखंड में च्यार वलगू अछे रे लाल, ऊंचा सिषर बंध वखाण रे ॥ ११ ॥ तो श्रेय कल्याण आपां भणी रे, प्रथम वलनू भेवां जाय रे । तिण मांसू निरमल पाणी नीकले रे लाल, ते पीधां सगलां रं साता थाय रे ।। १२ ।। त्यां मांहोमां करे विचारणा रे प्रथम सिपर फोड़यो आय रे । तिण मांस निरमल पाणी नीकल्यो रे लाल, जब हरख्या पणां मन मांय रे ।। १३ ।। त्यां पाणी तो पीधो निरमलो रे, वले वाहण भरिया तिणवार रे। बले बीजा सिषर फोडण तणों रे लाल कीधो माहोमा विचार रे ।। १४ ।। पहिलो सिषर फोड्या पाणी नीकल्यो रे, तो सोनो नीकलसी दूजा मांय रे । ए मिसलत माहोमां कीधी तिहां रे लाल, बीजोइ सिषर फोड्यो जाय रे ।। १५ ।। तिण मांसूं सोनो नीकल्यो रे, जब मन मांहे हरषत थाय रे । त्यां भाजन भरया गाडला भरया रे लाल, तीजी वार विचार मांहोमांय रे ॥ १६ ॥ पहिलो सिपर फोडां पाणी नीकस्यो रे, सोनो नोकरूयो बीजा मांय रे । तीजो फोडचा मणी रतन नीकले रे लाल, तो तीजोई सिपर फोडां जाय रे ।। १७।। जब तीजो सिखर त्यां भेदियो रे, मणी रतन नोकलिया तिण मांय रे । त्यां भाजन भरी भरचा गाडला रे लाल, ते मन मांहे हरषत थाय रे ॥ १८ ॥ बले लोभ लागो त्यारं अति घणों रे, जब कहे मांहोमां आम रे । काम रे ॥ १६ ॥ तिण मांय रे । चितवियां ज्यूं नीकल्या रे लाल, मनवंत सरिया वजर रतन नीकले लाल, तो कुमी रहै नहीं काय रे ॥२०॥ बंधणहार रे । तो चोथो सिषर फोड़यां वले रे, त्यां वजर रतनां सूं गाडला भरां रे इतलां महेि एक वाणियों रे, त्यांरा हित से त्यांने कहो अति लोभ न कीजिये रे लाल, चोथो सिषर म फोड़ो लिगार रे ॥ २१ ॥ पहिलो सिपर फोडया पाणी नीकल्यो रे, सोनो निक्स्पो बीजा गांव रे। मणी रतन तीजा मांसूं नीकल्या रे लाल, चोथो फोड़यां अवस दुख वाय रे ।। २२ ।। तिगरी कधी त्यां मान्यो नहीं रे, चोथो सिर फोड़ो जाय रे तिण मांसूं कालो सर्प नीकल्यो रे लाल, विष पण तिण मांय रे ।। २३ ।। संघट्यो हुवो तिण सर्प नों रे, जब कोप चढ्यो ते काल रे । भंड उपधि सहित सगला तभी रे लाल, बाले रास कोधी तत्काल रे ।। २४ ।। जिण वाणिये त्यांने वरच्या हंता रे, तिथ ने कुसले राख्यो तिणवार रे। तेरिध संपत ने आपरी रे लाल, कुसले आयो निज नगर मभार रे ।। २५ ।। वहा दोष । वाणियां ज्यूं थारांगुर में घणों, लोभ तणों अति जस कीरत व्यापी तीन लोक में, तो ही आयो नहीं संतोष ॥ १ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only गोसाला री चौपई, ढा० १० ३९५ www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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