SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ए मोटी परखदा रै मझे, भाख्यो श्री भगवान । वीर गोसाला री उतपत कही, ते पड़ी घणां रै कान ।।१।। ए बात सुणी – परखदा, आई जिण दिस जाय। घणां लोक माहोमा इम कहै, सावत्थी नगरी रै माय ।।२।। गोसालो कहै हं जिण केवली, ते झूठ बोलै छै ताम । ओ तो मंखली-पुत्र डाकोतरो, लोक बात करै ठाम ठाम ।।३।। म्है वीर जिणेसर आगले, सुणी गोसाला री बात । ओ नहीं अरिहंत जिण केवली, यंही बोले झठ मिथ्यात ॥४॥ वीर जिणंद चोबीसमां, अ देवातदेव स्वमेव । ते निश्चै अरिहंत जिण केवली, त्यांने वांदै कीजै नित सेव ।।५।। ए लोक माहोमां बातां करै, ते सुणी गोसाले कान । जब कोप्यो सिघर उत्तावलो, वले हुवो धिगधिगायमान ।।६।। आतापभूम थी नीकल्यो, आयो सावत्थी नगरी मांय । हलाहल कुंभारी जायगां तिहां, पाछो आयो तिण ठाम चलाय॥७।। घणां सिषां सहीत परवरचो थको, अमरस धरतो अतंत। जाणे घात करूं इण वीर नीं, इसड़ो मन धेष धरत ।।८।। ढाल : १० (धीज कर सीता सती रे लाल) तिण अवसर श्री भगवंत – रे, अंतेवासी सिष सुवनीत रे। सुगण नर ! ते आणंद नामे थिवर हंतो रे लाल, तिणमें साध तणी रूड़ी रीत रे ।। सुगण नर ! सुणजो गोसाला री वारता रे लाल ॥१॥ बेले-बेले निरन्तर तप करै रे, पारणे पेहली पोहर सझाय रे । बीजे पोहर ध्यान ध्यावै सदा रे लाल, तीजे पोहर गोचरी नै जाय रे ।।२।। ते वीर तणी लेइ आगना रे, उठ्यो सावत्थी नगरी मांय रे। ते करै समूदाणी गोचरी रे लाल, तीनंई कूल में जाय रे ।।३।। हलाहल कुंभारी री जायगां थकी रे, नेडो जातो आणंद में देख रे । जब गोसाले बोलायो आणंद नै रे लाल, पिण अंतरंग मन मांहे धेख रे ।।४।। एक मोटो ओलंभो मांहरो रे, तूं सांभल आणंद ! इहां आय रे। जब आणंद थिवर इहां आवियो रे लाल, गोसालो कहै बात बणाय रे ।।५।। केई धन रा लोभी वाणिया रे, चाल्या मोटी अटवी मझार रे । त्यां अनेक बसतां तूं गाडला भर्या रे, वले असणादिक च्यारूं आहार रे ।।६।। मोटी अटवी में आगा गयां थकां रे, नीठ्या असणादिक च्यार आहार रे। जब माहोमां सर्व भेला हुआ रे लाल, करवा लागा विचार रे ।।७।। पाणी तो खूटो सर्वथा रे, तिण विना पाछा जासां केम रे । हिवै करो पाणी री गवेसणा रे, ज्यं घरे जावां कुसले खेम रे ॥८॥ ३९४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy