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________________ ए तिल पाके में नीपजे, के नहीं नीपज हो साम ! इणरा फूल जीव इहां थी चवी, उपजसी किण ठाम ?।।४।। तिण अवसर म्है गोयमा ! कह्यो गोसाला नै आम । इण तिल में निश्चै करी, तिल नीपजसी ताम ॥५॥ ए जीव सात फूलां तणां, छोड़े इहां थी ठिकाण। इण तिल रै होसी एक सूंगलो, तिहां सात तिल होसी आण ॥६॥ ० ० ० दूहा गोसाले तिण अवसरे, ए मूल न सरधी बात । परतीत मूल आणी नहीं, पड़िवजियो मिथ्यात ।।१।। ढाल : ८ (प्रभवो चोर चोरां ने समझाव) वीर सं गोसाले पड़वजियो मिथ्यात, ते वीर वचन नहीं मान रे। जब वीर समीप थी हलवे-हलवे, तिल कनै आयो छान-छाने रे । वीर सं गोसाले पड़िवजियो मिथ्यात ।।१।। आं० तिण तिल उखेलनै अलगो न्हाख्यो, वोर नै झठा घालण गोसालो रे । जब दिव-बादल हुवा तिण काले, पाणी बूठो ततकालो रे ।।२।। जड़ माटी सहित तिल उखणियो हुँतो, तिण पाणी थी पाछो थंभाणो रे। तिल फल फूल सहित नीपनों, वीर कह्यो जिम जाणो रे ॥३॥ वले गोसालो वीर साथे चाल्यो, ते मन माहे जाणे छै एमो रे। ए प्रतख झूठ बोले छै चोड़े, ओ तिल नीपजसी केमो रे ।।४।। हिवै तिहां थी चाल कूर्म गामे आया, तिहां कूर्म गाम रै बारै रे। तिहां वेसायण नामे बाल तपसी, तपसा करै छै तिण वारै रे ।।५।। ते बेले-बेले निरन्तर करतो, तेज़ लेस्या तिण माह्यो रे। सुय साहमी आतापना लेवै, ऊंची कर-कर बांह्यो रे ।।६।। तिणरै सूर्य री आताप थी जूआं, नीकल पडै छै बारो रे। त्यांरी अणकपा आण वेसायण तपसी, पाछी मेहलै सरीर मझारो रे ।।७।। तिण वेसायण तपसी नै देखै गोसालो, तिण कनै आयो वीर छाने रे। तिण नै कहै तूं मुनी के अमुनी ? ओ उत्तर दै तूं म्हांनै रे ।।८।। के तूं जूआं रो सेज्यातर छै? ओ उत्तर दे तूं पाछो रे। जब तपसी ए वचन नै आदर न दीधो, मन में पिण नहिं जाण्यो आछो रे ।।६।। वेसायण तपसी मून साझी जब, गोसालो कह्यो दोय-तीन बारो रे। तं मुनी के अमुनी छै तूं, के जूंआं नै सेज्या रो दातारो रे? ॥१०।। गोसाला री चौपई, ढा०५८ ३९१: Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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