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त्यां राग धेष दोय खय किया ए, बले नहिं किण री पखपात । निंद्या नहीं केहनी ए, नहीं य खसामदी री बात ।।३।। सावत्थी नगरी नी परषदा ए, वाणी सुणे हरषत थाय । वंदणा करे वीर नैं ए, आया था जिण दिस जाय ॥४॥ पहिले पोहर गोतम सझाय करी ए, बीजे पोहर ध्यानज ध्याय । तीजे पोहर गोचरी ए, उठ्या सावत्थी नगरी रे माय ॥५॥ लोक सावत्थी नगरी तणां ए, ठाम-ठाम करै इम बात । गोसालो जिण केवली ए, चौबीसमों जगनाथ ।।६।। ए वचन गोतम सामी सांभल्यो ए, पाछा आया भगवंत पास। आहार देखाय ने ए, हिवै प्रश्न पूछे आण हुलास ॥७।। हूं आप तणी लेई आगना ए, गयो सावत्थी नगरी रै माय । तिहां लोक बातां करै ए, कहै गोसालो छै जिनराय ।।८।। जो इच्छा हुवै सामी आपरी ए, तो किरपा करे कहो जगनाथ । उठाणपरिया' एहनी ए, मांड कहो सहु बात ॥६॥
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गोतमादिक सह साधां भणी, बोलाय कहै भगवंत । जे गोसाला ने तीर्थंकर कहै, ते झूठ बोल छै एकंत ।।१।।
ओ मंखलीपुत्र डाकोतरो, डाकोतरा री जात । हिवै धुर सु उतपत तेहनी कहूं, ते सुणजो विख्यात ।।२।।
ढाल : ३
[कपूर हुवं अति ऊजलो जी] मखली भिख्याचर डाकोतरो जी, पाटिया दिखाले चित्राम । आजीवका करतो फिर जी, तिणरै भद्रा अस्त्री नो नाम हो ।
गोतम ! सुण गोसाला रो विरतंत ॥१॥ आं० ते गर्भवती भद्रा हुई जी, ते गोसालो गर्भ में ताम। तिण अस्त्री नैं साथे लियां फिर जी, गांव परगाम ठाम-ठाम हो ।।२।। तिण काले नैं तिण समे जी, सरवण नामे सनीवेस । तिहां सुखिया लोक वसै घणां जी, त्यांरै रिध रो घणो परवेस हो ।।३।। तिहां गोबहल नामे ब्राह्मण वस जी, तिण रै रिध घणी घर मांहि । ते च्यार वेद रो जाण थो जी, त्यांरा अनेक सास्त्र जाण ताहि हो ।।४।। तिण ब्राह्मण रै गउसाला ती जी, ते मोटो घणी थी ताहि ।
मंखली भद्रा सहित फिरतो थको जी, आय उतरियो तिण मांहि हो ।।५।। १. उठाणपरियाणिय-आद्योपान्त वृतांत
गोसाला री चौपई, ढा०३ ३८५
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