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________________ अंग' फुरके डावो जीमणो, तेहनां पिण अर्थ नों जाण स्वर कागादिक तेहनां ते पिण लिया पिछाण मस तिलकादिक बंजणा", लषण' सास्त्र जाणें ताम ए आठ महानिमत्त सास्त्र भण्यो, ते परूप रह्यो ठाम ठाम जी || 5 || तिणसूं छह वागरणा मुख वागरै, जोतक भाखै अनेक जी । तिणस लोक मत में पड़या घणां, इहलोक रा अर्थी विशेष जी ॥ ६ ॥ ते लाभ' अलाभ' परूपतो, सुख दुख परूपै छै तेह जी । जीवन * मरण परूपती, आ मुदे सिद्धाई छ एह जी ।।१०।। तिणसूं कहे सावरची नगरी मझे, हूं जिण वीतराग स्वमेव जी हूं अरिहन्त छू केवली, हूं सतवादी देवातदेव जी ।। ११।। गोसालो नहीं अरिहंत केवल झूठावोलो छ साख्यात ओ छै साख्यात पिण जिण अरिहंत ज्यू पूजावतो, संके नहीं तिलमात पण लोक मांहोमांहि इम कहे, आजूणां काल रे मांय गोसालोजी तोर्थंकर चोबीसमों, कोइ संक म राखजो कांय जी ।।१३।। सावस्थी नगरी में फैलियो, गोसाला रो गूढ मिध्यात घणां लोक गोसाला रा मत म ते किण री सरघं नहीं बात जी । जी || १२ | ॥ जी । जी । जी ।।१४।। ॥ दूहा तिण काले नैं तिण समे, भगवंत श्री महावीर । ते तीर्थंकर चोवीसमां विचरत साहस धीर ॥१॥ गांवां नगरां विचरता करता पर उपगार | सावत्बी नगरी पधारिया, साथै साधां से बहु पिरवार ॥ २ ॥ सावस्थी नगरी रे बाहिरे, इसाण कूण रे माय तिहां कोटग नामे दाग थो, ते छहूं रित सुखदाय ||३|| तिण बाग मांहे वीर ऊतर्था भव जीवां रे भाग । मारग दिखायें मोख से उपजावं बैराग || ४ || रो, [अरिहंत मोटका ए] समझावै नर-नार नैं ए. भगवंत भलांइ पधारिया ए भव जीवां रा तारणहार । उतारं भव-जल पार || सावत्थी नगरी में फेलियो ए, ते काढण आविया ए. २०४ भगवती जो ढाल : २ Jain Education International जी । जी ॥७॥ जी । भगवंत भला आविया ए ॥ | १ || आं० गोसाला से गुड़ मिथ्यात । सयमेव श्री जगनाथ ||२॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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