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७४. बहुमत बहु नैं इष्टपणां थी, तथा बहु कार्य कृतानं । अनुमत बिगड़या कार्य नै, पिण एह सुधारै जानं ॥ ७५. आभरण तणां करंडिया सरियो, रखे शीत मुझ लागे । रखे उष्ण पिण लागे मुझ नैं, जत्न करां धर रागे ॥ ७६. रखे क्षुधा ने तृषा मुझ लागे, रखे सर्प चटकावे । तसकर रखे दिये दुख मुझ में रखे दंस मंस खावे || ७७. रखे वाय पित्त श्लेषम कफ, सन्निपात त्रिदोषज सोय । विविध रोग आतंक परीसह, उपसर्ग परिसह कोय | ७८. एहवो तनु पिण चरम उस्सास निस्सासे करि वोसिरावां । इम कहि लेखणा तनु दुर्बल भूषणा सेवन भावां ॥ ७८. भात पाणी पचखी पाजवगमन, अणसण ज्यां लोधा । विचरै काल मरण अणवंछता, अडिगपर्णे मन कीधा ॥ ८०. परिव्राजका तिके तिण अवसर, घणां भक्त नां धामी । अणसण छेदं आलोवी, पड़िकमी समाधिज पासी ॥ ८१. काल करी ने पंचम कल्पे, देवपर्णेज उपन्ना । दश सागर स्थिति वर परलोक तणां आराधक जन्ना ||
८२. शत चवदम अष्टम नुं नाम ए, ढाल तीन सय एकं । भिक्खु भारीमाल ऋषिराय प्रसादे,
'जय - जश' हरष विशेखं ॥
ढाल : ३०२
अम्मड चर्या पद
परूपणा अवदात ॥
१. हे प्रभु ! बहु जन अण्णमण्ण, एहवा वच आख्यात | भाखे ने पन्न बली, २. अम्मद इम निश्चै करी, कंपिलपुर में सौ घरां
परिवाजक पहिचाण । जिम उबवाई जान || तणी, जावत दडपइन्न । क्षेत्र विदेह सुचिन्न ॥ इहां कहीजे लेश । गोतम सुण पूछेस ॥ आहार प्रति आहरंत । ए सम काल करंत ॥
३. वक्तव्यता अम्मड़
करिस्यै अंतज दुःख नौं, ४. विस्तर उववाई विषे, कंपिलपुर में जन कनै ५. अम्मड़ सौ घर में विषे, सौ घर वसवो सूयवो, २५२ भगवती जोड़
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दूहा
७४. बहुम अनुम
७५. भंड-करंडग- समाणं मा णं सीयं मा णं उन्हं,
७६. मा णं खुहा, मा णं पिवासा, माणं वाला, मा णं चोरा, मा णं दंसा, मा णं मसगा,
७७. माणं वाइय-पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइय विविहा रोगा का परीसहोवसग्गा फुसंतु
७८. त्ति कट्टु एयंपि णं चरिमेहि ऊसासनीसासेहि वोसिरानिति कट्टु नेणा-या
७९. भत्तपाण- पडियाइक्खिया पाओवगया कालं अणवकखमाणा विहति ।
तणं ते परिव्वाया बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदेंति, सेदिता आलोय-पतिसमाहिता
८१. कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए
८०.
उववण्णा ।
तेसि णं भंते! देवाणं दससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ?
हंता अत्थि ।
(१० १४० १०९)
१. बहुजणे णं भंते! अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ ।
२. एवं खलु धम्म परिव्यय कंपिल्सपुरे नगरे घरसए एवं जहा ओववाइए
३. अम्मडस्स वत्तव्वया जाव (सं० पा० ) दढपइण्णो अंतं काहिति ।
४५. एवं जहे' त्यादिना यत्सूचितं तदर्थतो सेशेनैवं दृश्यं - भुङ क्त वसति चेति एतच्च श्रुत्वा गौतम आह—
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