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________________ २०. से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ-दव्वतुल्लए दव्वतुल्लए। २१. गोयमा ! परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स दव्वओ तुल्ले। २२. परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलवइरित्तस्स दव्वओ नो तुल्ले । २३. दुपएसिए खंधे दुपएसियस्स खंधस्स दवओ तुल्ले । २४. दुपएमिए खंधे दुपएसियवइरित्तस्स खंधस्स दव्वओ नो तुल्ले । २५. एवं जाव दसपएसिए । २०. किण अर्थे भगवंत जी! इम कहिये एह । द्रव्य तुल्य द्रव्य तुल्य जे? जिन भाखै तेह ॥ २१. परमाणु पुद्गल तिको, परमाणु पुद्गल पेख । द्रव्य थकी सरिखो अछ, द्रव्य तुल्य ए देख । २२. तथा पुद्गल परमाणुओ, परमाण थी ताहि। अन्य पुद्गल द्रव्य तेहन, द्रव्य थी तुल्य नांहि ।। २३. दोय प्रदेशिक खंध ते, द्विप्रदेशिक नैज । द्रव्य थकी ए सारिखो, द्रव्य तुल्य कहैज ॥ २४. दोय प्रदेशिक खंध ते, द्वि प्रदेशिक थीज। अन्य खंध नैं द्रव्य थी, सरीखो न कहीज ।। २५. इम यावत दश प्रदेशिया, खंध लग कहिवाय । सरिखो तुल्य कहीजिये, असदृश्य तुल्य नाय ।। २६. तुल्य संख्यात प्रदेशियो, दूजो तुल्य संख्यात । प्रदेशिक जे खंध नैं, द्रव्य थी तुल्य थात ।। २७. तुल्य संखेज प्रदेशियो, दूजो तुल्य संख्यात । तेह थकी जे अन्य में, तुल्य नहीं कहात ।। २८. इम तुल्य असंख प्रदेशियो, इम वलि तुल्य कहत । अनंत प्रदेशिक खंध नों, पूरववत वृतंत ॥ २६. तिण अर्थे करि गोयमा ! इम कहिये जगीस । द्रव्य तुल्य द्रव्य तुल्य ए, वलि पूछ शीस ।। ३०. किण अर्थे भगवंत जी! इम कहिये बात । क्षेत्र तुल्य क्षेत्र तुल्य ए? तब भाखै नाथ ।। ३१. एक प्रदेश अवगाहिया, पुद्गल अवलोय । एक प्रदेश अवगाढ नैं, क्षेत्र थी तुल्य होय ।। ३२. एक प्रदेश अवगाढ ते, दूजो एक प्रदेश । अवगाह्या थी अन्य नैं, क्षेत्र तुल्य न लेश ।। ३३. एवं जावत जाणिय, दश आकाश प्रदेश । अवगाह्या पुद्गल तिके, पूर्व रीत कहेस । ३४. तुल्य संख्यात आकाश नां, प्रदेश पिछाण । अवगाह्या पुद्गल तणो, पूर्व रीत वखाण ।। २६. तुल्लसंखेज्जपएसिए खंधे तुल्लसंखेज्जपएसियस्स खंधस्स दव्वओ नो तुल्ले । २७. तुल्लसंखेज्जपएसिए खंधे तुल्लसंखेज्जपएसियवइरि तस्स खंधस्स दवओ नो तुल्ले । २८. एवं तुल्लअसंखे ज्जपएसिए वि, एवं तुल्लअणंतपएसिए वि। २९. से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-दव्बतुल्लए दव्वतुल्लए। ३०. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-खेत्ततुल्लए खेत्ततुल्लए? ३१. गोयमा ! एगपएसोगाढे पोग्गले एगपएसोगाढस्स पोग्गलस्स खेत्तमओ तुल्ले। ३२. एगपएसोगाढे पोग्गले एगपएसोगाढवइरित्तस्स पोग्गलस्स खेत्तओ नो तुल्ले । ३३. एवं जाव दसपएसोगाढे । ३४. तुल्लसंखेज्जपएसोगाढे पोग्गले तुल्लसंखेज्जपएसो गाढस्स पोग्गलस्स खेत्तओ तुल्ले, तुल्लसखेज्जपएसोगाढे पोग्गले तुल्लसंखेज्जपएसोगाढवइरित्तस्स पोग्गलस्स खेत्तओ नो तुल्ले । ३५. एवं तुल्लअसंखेज्जपएसोगाढे वि । ३५. एवं तुल्य आकाश नां, असंख्यात प्रदेश । अवगाह्या पुद्गल अपि, कहिवा सुविशेष ।। ३६. ते तिण अर्थे जाव ही, क्षेत्र तुल्य संवेद । किण अर्थे कहिये तिको, काल तुल्य संभेद ।। ३७. पुद्गल एक समय स्थिति, वलि द्वितीय कहीज। एक समय स्थितिक तिणे, तुल्य काल थकीज ।। ३८. पुद्गल एक समय स्थिति, वलि दूजो कहाय । घणां समय नी स्थितिक नैं, काल थी तुल्य नाय ।। ३६. से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ--खेत्ततुल्लए खेत्ततुल्लए । से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-कालतुल्लए कालतुल्लए? ३७. गोयमा ! एगसमयठितीए पोग्गले एगसमयठितीयस्स पोग्गलस्स कालओ तुल्ले ।। ३८. एकसमयठितीए पोग्गले एगसमयठितीयवइरित्तस्स पोग्ग लस्स कालओ नो तुल्ले । २६६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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