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________________ ३६. एवं जावत जाणिय, दश समय स्थितीक । तुल्य संख्यात समय स्थिति, एवं चेव कथीक ।। ४०. तुल्य असंख समय स्थितिक, एवं चेव कहाय । तिण अर्थे जाव काल थी, तुल्य कहिये ताय ।। ४१. किण अर्थे भगवंत जी! भव तुल्य कहाय ? जिन भाखै सुण गोयमा ! भव तुल्य नों न्याय ।। ४२. नेरइयो द्वितीय नारक तिणे. भवार्थे तुल्य थाय । नेरइयो अनारक तिणे, भवार्थे तुल्य नांय ।। ४३. इमहिज तिर्यंच जोणियो, एम मनुष्य अवदात । __ सुर पिण कहिवो इह विध, तिण अर्थे आख्यात ॥ ३९. एवं जाव दससमयठितीए, तुल्लसंखेज्जसमयट्ठितीए एवं चेव । ४०. एवं तुल्लमसंखेज्जसमयद्वितीए वि । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-कालतुल्लए-कालतुल्लए। ४१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-भवतुल्लए भवतुल्लए ? गोयमा ! ४२. नेरइए नेरइयस्स भवट्ठयाए तुल्ले, नेरइयवइरित्तस्स भवट्ठयाए नो तुल्ले। ४३. तिरिक्खजोणिए एवं चेव, एवं मणुस्से, एवं देवे वि । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-भवतुल्लए भवतुल्लए। ४४. से केणठेणं भंते! एवं बुच्चइ--भावतुल्लए भावतुल्लए? गोयमा ! ४५. एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगस्स पोग्गलस्स भावओ तुल्ले। ४६. एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालावइरित्तस्स पोग्ग लस्स भावओ नो तुल्ले । ४७. एवं जाव दसगुणकालए, ४८. एवं तुल्लसंखेज्जगुणकालए पोग्गले, ४४. किण अर्थे भगवंत जी! भाव तुल्य कहाय ? जिन भाख सुण गोयमा ! भाव तुल्य नों न्याय ।। ४५. पुद्गल इक गुण कृष्ण जे, वलि द्वितोय कहीज । पुद्गल इक गुण कृष्ण ने, तुल्य भाव थकीज ।। ४६. पुद्गल इक गुण कृष्ण जे, वलि द्वितीय कहाय। बहु गुण कृष्ण पुद्गल तणे, भाव थी तुल्य नाय ।। ४७. इम जावत दश गुण कृष्ण हि, दश गुण कृष्ण साथ । भाव तुल्य कहिये तसु, अन्य गुण थी न थात ॥ ४८. तुल्य संख गुण कृष्ण ते, तुल्य संख गुण काल । भाव तुल्य सम गुण थकी, अन्य गुण थी म न्हाल ।। ४६. तुल्य असंख गुण कृष्ण हि, तुल्य असंख गुण साथ । भाव थी तुल्य कहीजिय, अन्य गुण थी न थात ।। ५०. तुल्य अनंत गुण कृष्ण हि, तुल्य अनंत गुण काल । भाव तुल्य कहियै तसु, अन्य गुण थी म न्हाल ।। ५१. कृष्ण वर्ण जिम आखियो, नील लोहित एम । पीत शुक्ल इमहीज छ, सुगंध दुर्गंध तेम ।। ५२. एवं तिक्त जाव मधुर ही, इम कर्कश फास । इम जाव लूक्ष फर्श लगै, पूर्व रीत प्रकाश ।। ५३. उदय भाव उदय भाव नैं, भाव थी तुल्य थाय । उदय भाव अन्य भाव न, भाव थी तुल्य नांय ।। ४९. एवं तुल्लअसंखेज्जगुणकालए वि, ५०. एवं तुल्लअणंतगुणकालए वि । ५१. जहा कालए, एवं नीलए, लोहियए, हालिद्दए, सुक्किलए। एवं सुब्भिगंधे, एवं दुब्भिगंधे । ५२. एवं तित्ते जाव महुरे । एवं कक्खडे जाव लुक्खे। ५३. ओदइए भावे ओदइयस्स भावस्स भावओ तुल्ले, ओदइए भावे ओदइयभाववइरित्तस्स भावस्स भावओ नो तुल्ले। ५४. एवं ओवसमिए, खइए, खओवसमिए, पारिणामिए । ५४. इम उपशम क्षायक कह्यो, क्षयोपशम जाण । परिणामिक ए पंचमो, पूर्व रीत पिछाण ।। ५५. सन्निपात सन्निपात नैं, इमहिज कहिवाय । तिण अर्थ इम आखियो, भाव तुल्य नं न्याय ॥ वा०-उदय ते कर्म नो विपाक, तेहिज क्रिया मात्र अथवा उदय करी नीपनो ते उदय भाव-नारकत्वादि पर्याय विशेष । ते औदयिक भाव नै नारकत्वादि भाव थकी भावतुल्ले-भाव सामान्य आश्रयी - तुल्य–सरीखो । एवं उदइये । ओदयिक भाव ओदयिक भाव थी व्यतिरिक्त-अनेरा नै भाव थी तुल्य नहीं। ५५. सन्निवाइए भावे सन्निवाइयस्स भावस्स भावओ तुल्ले, सन्निवाइए भावे सन्निवाइयभाववइरित्तस्स भावस्स भावओ नो तुल्ले। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-भावतुल्लए-भावतुल्लए। वा०-'उदइए भावे' त्ति उदयः-कर्मणां विपाक: स एवौदयिक:-क्रियामात्रं अथवा उदयेन निष्पन्नः औदयिको भावो-नारकत्वादिपर्यायविशेषः औदयिकस्य भावस्य नारकत्वादेर्भावतो-भावसामान्यमाश्रित्य तुल्यः समः, श० १४, उ०७, ढा० २९८ २६७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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