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________________ ७. तए णं बीतीभये नगरे सिंघाडग "जाव परिसा पज्जुवासइ। (श० १३।१०६) ८. तए णं से उद्दायणे राया इमीसे कहाए लठे समाणे ९. हट्ठतुढे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! १०. वीयोभयं नगरं सब्भितरबाहिरियं । ११. जहा कूणिओ ओववाइए (सूत्र ५५-६९) . ७. तब नगर वीतभय नैं विषे, संघाडग जन वन्द । यावत आवी परषदा, वंदी सेव करंद ।। उदायन को दीक्षा की स्वीकृति ८. *राय उदायन ताम, कथा एहवीज सुणी। लाधै अर्थ अमाम, पधारया तीर्थधणी। तीर्थधणीजी तसु कीत्ति घणी, अद्भुत संपति प्रभु वीर तणी। म्हैं तो जासां-जासां वंदन वीर, धीर गुण हीरमणी॥ ६. पायो हरष संतोष, पोष नप अति उमही। आज्ञाकारी पुरुष, सद्दावै तुरत सही। तुरत सही जी, नृप एम कही, देवानुप्रिया ! तुम्ह शीघ्र वही। म्हैं तो जासां-जासां वंदन वीर, करो ए कार्य लही।। १०, नगर वीतभय मांय, अनै पुर बार वली। कचर काढ जल ल्याय, करो शुद्ध गली-गली। . गली गली जी, पुल आज भली, जिनराज आयां थइ रंगरली। म्हैं तो जासां-जासां वंदन वीर, संपदा आय मिली। ११. सूत्र उवाई मांहि, कोणिक संबंध कह्यो। तेम इहां पिण ताहि, सर्व विस्तार लह्यो। विस्तार लह्यो जी, नृप अति उमह्यो, चतुरंग सेन ले वंदन गयो। म्हैं तो जासां-जासां वंदन वीर, आज दिन सफल भयो। १२. जाव करै पर्युपास, तास त्रिहं जोग सिरै। तन मन अति लहलीन, क्षीण अघनेज करै। अधनेंज करै जी, दुख-हेतु हरै, जगनाथ दर्श करि हरष धरै। म्हारै आज दिहाड़ो धिन्न, नृपति वच इम उचरै ।। १३. पद्मावती प्रमुख, तिमज यावत सेवा । धर्म-कथा पीयूष, सरस जिन-वच मेवा। वच मेवा जो, भिन-भिन सेवा, प्रभु देव थकी अधिका देवा। म्हारै आज दिहाड़ो धिन्न, स्वाम शिव सुख लेवा ।। १४. चिउ गति कारण च्यार-च्यार भाख्या स्वामी। शिव-मग च्यार उदार, कह्या जिन विधि धामी। विधि धामी जी, नर सुख कामी, बच हियै धार साता पामी। म्हारै आज दिहाड़ो धिन्न, आप अंतरजामी ।। १५. जिम भवसागर रुले, दुकृत फल स्वाम कह्या। दुख संकट थी टलै, सुकृत फल तेह लह्या! तेह लह्याजी, गुण सुजन गह्या, जन बूझै तिम जिन भेद कहा। म्हारै आज दिहाड़ो धिन्न, कृतारथ आज थया । १६. राय उदायन स्वाम, वयण सुण चित धरिया। हरष सतोष सुपाम, आज अघ-दल हरिया। अध-दल हरिया जी, वांछित फलिया, मुझ मंहमांग्या पासा ढलिया। म्हारै आज दिहाड़ो धिन्न, प्रभू पारस मिलिया। १२. जाव पज्जुवासइ। १३. पउमावती पामोक्खाओ देवीओ तहेव (ओव० सू०७०) जाव पज्जुवासंति । धम्मकहा। (श० १३३१०७) पाम, बयण १६. तए णं से उद्दायणे राया समणस्स भगवओ महा वीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुझे सतोष अ *लय : स्वाम भिक्ष कहै एम, संजम सुख पावा दो श० १३, उ०६, ढा० २८३ १९३ Jain Education Intemational on Interational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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