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________________ १८. एहवा श्रमण तपस्वी मोटा, भगवंत ईश्वर सह जन में । १६. महावीर कर्म काटण शूरा, क्षमावंत उपसर्ग खमै ।। २०. पूर्वानुपूर्व चालता प्रभुजी, ग्रामानुग्राम जाव जन' में। २१. विचरंता प्रभुजी इहां आवै, समवसरै इह विपिनन में । २०,२१. जइ णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे इहमागच्छेज्जा इह समोसरेज्जा, २२,२३. इहेव वीतीभयस्स नगरस्स बहिया मियवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता २४. संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरेज्जा, २५-३०. तो णं अहं समणं भगवं महावीरं वंदेज्जा नमंसेज्जा जाव पज्जुवासेज्जा। (श०१३।१०४) २२. एहिज वीतिभय नगर बाहिर जे, मृगवन नाम उद्यानन में ।। २३. यथाजोग्य अवग्रह प्रति ग्रही नै, आज्ञा ले प्रभु वागन में ।। २४. संजम तप कर आतम भावित, विचरै जे प्रभुजी वन में ।। २५. तो हूं भगवंत श्रमण वीर प्रति, वंदं वच-स्तुति तन में ।। २६. नमस्कार करूं शिर नामी, वलि सतकृत सनमानन में ।। २७. कल्याणकारी प्रभुजी कहिये, मंगल विघ्न-मिटावन में ।। २८. देवयं कहितां त्रैलोक्य अधिपति, देवाधिदेव पंच देवन में ।। २६. चित्त अहलादकारी प्रभु चैत्यं, सुप्रशस्त मन हेतु जन में ।। ३०. एहवा प्रभु नी सेव करूं हूं, आ हूंस घणी म्हारा मन में ।। ३१. एहवी भावना भावै महिपति, पोसह ले मध्य रात्रिन में ।। ३२. शतक तेरम अर्थ अनुपम, छठो उद्देशो देशन में। ३३. ढाल दोयसौ ऊपर दाखी, दोय असीमी उदायन में । ३४. भिक्षु भारीमाल ऋषिराय प्रसादे, 'जय-जश' सुख संपति गण में ।। ढाल २८३ वीतिभय में महावीर का आगमन दहा १. भगवंत श्री महावीर जी, पूरणज्ञानी देख । राय उदायन तेहनां, जाण्या भाव विशेख ।। २. प्रभ चंपा नगरी थकी, साथै बह परिवार । पूर्णभद्रज चैत्य थी, विहार कियो तिणवार ।। ३. पूर्वानुपूर्वे प्रभु! यावत विहार करंत । ज्यां सिंधु सौवीर छै, त्यां आवै भगवंत।। ४. जिहां वीतभय नगर छै, जिहां मृगवन उद्यान । त्यां आवै आवी करी, यावत विचरै जान ।। १. तए णं समणे भगवं महावीरे उद्दायणस्स रण्णो अयमेयारूवं अज्झत्थियं जाव (सं० पा०) समुप्पन्न वियाणित्ता २. चंपाओ नगरीओ पुण्णभद्दाओ चेइयाओ पडिनिक्ख मइ । ३,४. पुव्वाण पुदि चरमाणे गामाणुगामं जाव (सं० पा०) विहरमाणे जेणेव सिंधूसोवीरे जणवए जेणेव वीतीभये नगरे, जेणेव मियवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । (श० १३।१०५) ५. नगर वीतभय चंप बिच, कोस सात सय भाल । परंपरा मांहै कहै, नदी खाल गिरि न्हाल । ६. गोतम स्वामी आदि बहु, वारु संघ सुवृद । राय उदायन तारवा, आया देव जिणंद ।। १. जनपद १९२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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