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________________ ७२,७३. तथा यस्तस्योपर्यधस्ताद्वा प्रदेशस्तस्यापि पुद्गलद्वयर्शनेन नयमतादेव भेदाद् द्वाभ्यां, (वृ० प० ६११ ७४,७५. तथा पार्श्वप्रदेशावेकैकमणुं स्पृशतः परस्पर व्यवहितत्वाद् इत्येवं जघन्यपदे षड्भिर्धर्मास्तिकायप्रदेशैद्वयं णुकस्कन्धः स्पृश्यते, (वृ०प० ६११) ७२. ऊपर अथवा हेठ, ग्रहिवो इक बिहुं मांहिलो। तेहनै पिण जे नेठ, बे प्रदेश फर्शवै करी ।। ७३. नय मत थकीज जोय, भिन्नपणां करिकै तसु । वंछयो थकीज सोय, फर्श बे प्रदेश करि ।। ७४. अथवा जे बिहं पास, बे प्रदेश छै तेह पिण। इक-इक अणु प्रतिफास, माहोमांहि व्यवहितपणे ।। ७५. जघन्यपदे इम जाण, धर्म-प्रदेशज षट करी। द्वि प्रदेश खंध माण, फर्श छै इह रीत सं ।। ७६. ए नय मत अवलोय, अंगीकार जो नहिं करै। तदा जघन्य थी जोय, च्यार प्रदेशिक फर्शणा ।। ७७. ऊपर तल वा एक, बिहं पासे बे मध्य इक । ए विउ फर्शण पेख, लोकांते ए जाणवो।। ७८. इम धर्म-प्रदेशज च्यार, तास संचाते फर्शणा। इम कह्यो चूर्णिकार, हिव वृत्तिकार निज मत कयूं । ७६.बे परमाणू पेख, दोय प्रदेश कह्या तसु। उर रह्या संग एक, परै रह्या संग एक फुन ।। ७६. नेयमतानङ्गीकरणे तु चतुभिरेव द्वयणुकस्य जघन्यतः स्पर्शना स्यादिति (वृ०प०६११) ७८. वृत्तिकृता त्वेवमुक्तम् - (वृ० प० ६११) ७९. इह यविन्दुद्वयं तत्परमाणुद्वयमिति मन्तव्यं तत्र चार्वाचीनः परमाणुर्धर्मास्तिकायप्रदेशेनार्वाक्स्थितेन स्पृष्टः, परभागवर्ती च परतः स्थितेन एवं द्वौ, (व०प०६११) ८०. तथा ययोः प्रदेशयोर्मध्ये परमाणू स्थाप्येते तयोरग्रे तनाभ्यां प्रदेशाभ्यां तो स्पृष्टी (वृ०प०६११) ८१. एकेनको द्वितीयेन च द्वितीय इति चत्वारः (वृ० प० ६११) ८२,८३. द्वो चावगाढ़त्वादेव स्पृष्टावित्येवं षट् । (वृ० प० ६११) ८०. तथा बे प्रदेश रै मांहि, थाप्या बे परमाणुआ। तास आगला ताहि, फर्श धर्म-प्रदेश बे।। ८१. एक संघाते एक, बीजो द्वितीय संघात जे। इम च्यारूं संपेख, धर्म-प्रदेशज फर्शता ॥ ८२. अनै परमाणु दोय, दोय धर्म-प्रदेश नं। रह्या अवगाही सोय, तास संघाते फर्शणा ।। ८३. कह्यो वृत्ति रै मांय, द्वयणुक खंध इम जघन्य थी। षट धर्मास्तिकाय-प्रदेश साथे फर्शणा॥ वा०-अनै वृत्तिकार तो इम कह्यो-तत्र उरै वर्तमान परमाणओ उरै रह्या प्रदेश संघाते फर्श अनै पेले पासे रह्यो परमाणुओ पेलै कानी रह्या प्रदेश नं फर्श । इम बिहं पासे बे तथा वे प्रदेश नं मध्ये परमाणु दोय स्थाप्या । तेहना आगला दोय प्रदेश करि बिडं फयों-एक संघाते एक, बीजो बीजा संघाते । इम च्यार अनै दोय परमाणुआ बे प्रदेश अवगाही रह्या छै। इम द्वयणुक स्कंध जघन्यपदे छह धर्मास्तिकाय-प्रदेश फर्श । एहनी स्थापना ८४. 'उक्कोसपए बारसहि' ति, कथं ? (वृ० प० ६११) ५४. उत्कृष्टपदे विशेष, दोय प्रदेशी खंध ते । द्वादश धर्म-प्रदेश, तेह संघाते फर्शणा ।। १ ते आकाशास्ति नां प्रदेश नै । २. दोय प्रदेश खंध नो इक-इक प्रदेश प्रति । ३. आकाशास्ति रा। १६८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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